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ब्राह्मी सृष्टि में कश्यप की पत्नियों में अदिति से देवता, दिति से राक्षस और दनु से दानव उत्पन्न हुए थे। एकसमय देवासुर संग्राम में देवताओं की घोर पराजय हुई । अपने पुत्रो को पराजित, हतभाग्य और दु:खी देख अदिति ने अपने पुत्रों के मंगल के लिए सूर्य की घोर उपासना की थी जिससे प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने उन्हें वर दिया था – ‘मैं तुम्हारे गर्भ से सहस्रांशु होकर जन्म लूँगा और तुम्हारे पुत्रों का नाश करूंगा’।

सूर्यदेव का आशीर्वाद पाकर अदिति तत्काल गर्भवती हो गईं। तेजस्वी पुत्र के लिए अदिति अनेकानेक तप करते हुए गर्भ का पालन करने लगीं। उन्हें इस तरह कठोर तप करते हुए देख कर कश्यप ऋषि ने एकदिन क्रोधित होकर कहा -‘तुम क्यों इस तरह कठोर तप करके गर्भ का नाश करने पर तुली हुई हो ?” अदिति ने कहा -‘यह गर्भांण्ड नष्ट नहीं होगा अपितु शत्रुओं के नाश का कारन बनेगा’ यह कहकर अदिति ने तेज:पुंज गर्भाण्ड का परित्याग कर दिया।

गर्भाण्ड के बाहर निकलते ही उसके तेज से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड जलने लगा। भयभीत कश्यप ऋषि ने तब वैदिक मन्त्रों से सूर्य की स्तुति की, स्तुति से प्रसन्न सूर्य देव रक्त कमल की आभा लिए बालक के रूप में प्रकट हुए। उसी समय आकाशवाणी हुई -‘ कश्यप ! तुमने कहा कि क्यों गर्भाण्ड को मार रही हो, इसलिए इस पुत्र का नाम मार्तण्ड होगा (मारिताण्ड) , यह पूर्ण होकर सूर्य के अधिकार का सभी कार्य करेगा और देवताओं के शत्रुओं का संहार करेगा’ ।

इस आकाशवाणी को सुन हर्षित देवता होकर सामने प्रकट हुए और असुर तथा दैत्य बलहीन हो गये। पुन: देवदानव संघर्ष शुरू हुआ जिसमे असुर मार्तण्ड के तेज से जलकर भस्म हो गये और देवताओं को विजय श्री मिली।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
ॐ आपो ज्योती रसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरोम् ॥