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भारत का नाम राजा भरत के नाम पर पड़ा लेकिन वास्तव में भारत के संस्थापक ऋषियों के वंशज थे. भरत का कोई वंश नहीं था, उनका वंश दत्तक पुत्र भारद्वाज से चला था. भागवत पुराण में देवगुरु बृहस्पति पुत्र भारद्वाज ऋषि के वंश का वर्णन है. यह वंश ही भारत का संस्थापक है. देव लोक से ऊपर ब्रह्म लोक से नीचे स्थित सिद्ध ऋषियों के लोक में एकदिन घटना घटी. गुरु बृहस्पति ने काम के गहरे प्रभाव में एकदिन अपने भाई की पत्नी ममता के साथ सम्भोग किया जिसे भारद्वाज का जन्म हुआ था. भारद्वाज का प्रसव मरुत देवताओं ने किया था इसलिए उनका नाम वितथ भी पड़ा. ममता ने भरद्वाज को जन्म होते ही बृहस्पति के यहाँ ही छोड़ दिया और चली गई. बृहस्पति के पुत्र भारद्वाज को देवताओं ने घेर लिया और देखभाल करने लगे. महाराज भरत के 3 पुत्र थे लेकिन तीनों को रानियों ने मार दिया था. देवताओं ने भारद्वाज को महाराज भरत को सौंप दिया, इस प्रकार महाराज भरत के दत्तक पुत्र भरद्वाज ही भरत वंश का विस्तार करने वाले हुए.

गर्गाच्छिनिस्ततो गार्ग्य: क्षत्राद् ब्रह्म ह्यवर्तत ।
दुरितक्षयो महावीर्यात् तस्य त्रय्यारुणि: कवि: ॥ १९ ॥
पुष्करारुणिरित्यत्र ये ब्राह्मणगतिं गता: ।
बृहत्क्षत्रस्य पुत्रोऽभूद्धस्ती यद्धस्तिनापुरम् ॥ २० ॥

गर्ग से शिनि नामक पुत्र उत्पन्न हुआ और उसका पुत्र गार्ग्य था. यद्यपि गार्ग्य क्षत्रिय थे, फिर भी उनसे ब्राह्मणों की एक पीढ़ी उत्पन्न हुई. महावीर से दुरितक्षय नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिनके पुत्र त्रैय्यारुणि, कवि और पुष्करुणि थे. हालाँकि दुरितक्षय के इन पुत्रों ने क्षत्रियों के वंश में जन्म लिया, फिर भी उन्होंने ब्राह्मण का पद प्राप्त किया. बृहत्क्षत्र का हस्ति नाम का एक पुत्र था, जिसने हस्तिनापुर [अब नई दिल्ली] शहर की स्थापना की.

वितथस्य सुतान् मन्योर्बृहत्क्षत्रो जयस्तत: ।
महावीर्यो नरो गर्ग: सङ्‍कृतिस्तु नरात्मज: ॥ १ ॥
शुकदेव गोस्वामी ने कहा: चूँकि भारद्वाज का प्रसव मरुत देवताओं द्वारा हुआ था, इसलिए उन्हें वितथ के नाम से जाना जाता था. वितथ का पुत्र मन्यु था, और मन्यु से पाँच पुत्र उत्पन्न हुए – बृहत्क्षत्र, जया, महावीर्य, ​​नारा और गर्ग. इन पांचों में से, जिसे नारा के नाम से जाना जाता था, उसका संस्कृति नाम का एक बेटा था.

श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के बाद महर्षि गर्ग ने उनका गुप्त रूप से नामकरण संस्कार किया और बताया कि ये पुराण पुरुष हैं जिनका हर युग में जन्म होता रहा है. गर्ग ऋषि वासुदेव के कुलगुरु थे. उन्होंने नामकरण के बाद कृष्ण के जीवन के बारे में अनेकों भविष्यवाणी ज्योतिष शास्त्र के अनुसार की थी जो अक्षरशः सही रही. महाभारत में गर्ग ऋषि ने बताया है कि शिव के आशीर्वाद से उन्हें दस सहस्र वर्ष की आयु प्राप्त है. गर्ग ऋषि भारद्वाज की दूसरी क्षत्रिय पत्नी के गर्भ से अवतरित हुए थे, ये भक्ति के परमआचार्य और बाद में स्वतंत्र गोत्र संस्थापक हुए.