ऋषियों की कुछ उपलब्ध संहिताओं में बहुत सूक्ष्म स्तर की ज्योतिष का फल कहा गया है जैसे लडकी का रजोधर्म पहली बार जब हुआ तो किस नक्षत्र में हुआ, उस अनुसार वह स्त्री का स्वभाव ग्रहण करेगी.
दक्षिण भारत में तो प्रथम रजोदर्शन का समय वैसे हो नोट करती है लडकी की मां जैसे जन्म हुआ हो ..क्योंकि लड़की स्त्री बनती है रजोदर्शन होने पर और चन्द्रमा स्त्री का सबसे बड़ा कारक है ..स्त्री के लिए सबसे महत्वपूर्ण चन्द्रमा होता है. चन्द्रमा सही है तो स्त्री को सभी सुख प्राप्त होते हैं.

कश्यप ऋषि का कहना है कि ज्येष्ठ नक्षत्र में पहली बार रजोदर्शन हो तो वह धैर्यहीन, निन्दित, छुपाकर व्यसन करने वाली, दूसरों को कष्ट देने वाली, निरन्तर घुमने की इच्छा वाली, दूसरे के संतानों से द्वेष करने वाली, बड़ी पापिनी होती है. प्रथम रजोदर्शन का सभी नक्षत्रों में फल का वर्णन शास्त्रों में मिलता है.
यदि लड़कियों की माताएं पहले रजोदर्शन की तिथि और समय को लिख लें तो इससे लड़की के भविष्य के बारे में बहुत कुछ बताया जा सकता है. यद्यपि इस तरह जातिका के भविष्य को किस हद तक सही सही बताया जा सकता है, कहना थोड़ा कठिन है. इस तरह का फलादेश और ज्ञान द्वारा पुराण पंडे शोषण और दमन का कारण बने थे, वे इस तरह के ज्ञान का दुरुपयोग करते रहे हैं.

