मध्ययुग में लिखे गये पुराणों में पिता दक्षसे अपमानित होनेके कारण देवी सती के अग्निकुंड में प्राण त्याग दिये जाने की कथा है. यह कथा मध्य युग में लिखी गई, महाभारत में बताया गया है कि कोई सती दाह नहीं हुआ था. पुराण गपोड़शंख के अनुसार – सती के यज्ञ में प्राण त्याग देने के बाद शिव ने क्रोधित होकर अपने होठ चबाते हुए, उग्र रूप धारण किया और अपनी एक जटा उखाड़ ली और ज़ोर से गंभीर अट्टहास करते हुए उस जटा को ज़मीन पर पटक दिया. इससे तुरंत ही एक बहुत बड़ा और लंबाचौड़ा पुरुष उत्पन्न हुआ. उसका शरीर इतना विशाल था कि वह स्वर्ग को छू रहा था. उसकी हजार भुजाएँ थीं, उसका रंग बादल की तरह काला था, और उसकी तीन जलती हुई आँखें सूर्य की तरह चमक रही थीं. उसकी भयानक दाढ़ें थीं, और उसके लाल-लाल बाल अग्नि की लपटों की तरह दिख रहे थे. उसके गले में नरमुंडों की माला थी और हाथों में तरह-तरह के अस्त्र-शस्त्र थे. जब उस पुरुष ने हाथ जोड़कर पूछा, “भगवान! मैं क्या करूँ?” तब शिव बोले, “वीर रुद्र! तू मेरा अंश है, इसलिए मेरे पार्षदों का नेता बनकर तुरंत जा और दक्ष और उसके यज्ञ को नष्ट कर दे।” जब भगवान शंकर ने गुस्से में यह आज्ञा दी, तो वीरभद्र ने उनकी परिक्रमा की और यज्ञ स्थल की तरफ गया. उसने यज्ञशाला को तहस-नहस कर दिया—कुछ ने खंभों को तोड़ा और यज्ञ के पात्रों को फोड़ दिया। कुछ ने अग्नियों को बुझा दिया, कुछ ने यज्ञकुंड में पेशाब किया, और कुछ ने मुनियों और स्त्रियों को डराया. वीरभद्र ने दक्ष को कैद कर लिया, और बाकी सेवकों ने ऋषियों और देवताओं को पकड़ लिया. भृगु हवन कर रहे थे, और वीरभद्र ने उनकी दाढ़ी और मूंछें नोंच लीं, क्योंकि उन्होंने प्रजापतियों की सभा में महादेवजी का उपहास किया था. फिर क्रोधित होकर वीरभद्र ने भग देवता को ज़मीन पर पटक दिया और उनकी आँखें निकाल लीं, क्योंकि जब दक्ष महादेवजी को शाप दे रहे थे, तब भग देवता ने उन्हें उकसाया था. इसके बाद वीरभद्र ने पूषा के दांत तोड़ दिए. यजमान दक्ष का सिर धड़ से अलग कर दिया और दक्ष का सिर यज्ञ की अग्नि में डाल दिया और यज्ञशाला में आग लगाकर यज्ञ को नष्ट कर दिया.

यदि महाभारत को इतिहास माना जाय और महाभारत की कहानी को ही सत्य माना जाय तो सती दाह नहीं हुआ था. महाभारत पुराणों से प्राचीन हा. कृष्ण ने अश्वत्थामा के प्रसंग में पांडवों को बताया कि अश्वथामा ने कैसे शिविर में सबकी हत्या कर दी . दौपदी के 5 पुत्र मारे गये थे. कृष्ण ने कहा कि यह शिव की कृपा के बिना नहीं हो सकता. कृष्ण ने बताया अश्वथामा ने आवश्य शिव का आह्वान किया होगा. उन्होंने शिव की यज्ञ विध्वंश वाली कथा बताई. इस कथा में कोई वीरभद्र नहीं है और न ही सती दाह हुआ था. खुद शिव ने यज्ञ विध्वंश किया था. यदि सती दाह नहीं हुआ तो शक्ति पीठ भी पुराण पुजारियों का मिथ्या पौराणिक प्रपंच ही सिद्ध होता है. सती वाली कथा 9-10वीं शादी में लिखे पुराणों में लिखी गई.

