Spread the love

आदिशंकराचार्य के बिना वर्तमान सनातन हिन्दू धर्म की कल्पना नहीं की जा सकती है. भगवान शिव के अवतार आदि शंकर ने भगवान राम और कृष्ण की तरह ही सनातन धर्म की स्थापना के लिए जन्म लिया था. शंकर 8 वर्ष की आयु में ही सन्यासी बने, 16 की आयु में ही उन्होंने बद्रिकाश्रम में उपनिषदों, ब्रह्म सूत्र और भगवदगीता पर भाष्य कर लिया था. कुल 33 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने बहुत बड़े असम्भव काम कर डाले थे. उन्होंने भारत के कोने कोने में यात्राएं की और उस समय बौद्ध, जैन और अन्य मतों के दिग्गज आचार्यों को शास्त्रार्थ में पराजित कर अद्वैत मत की स्थापना की. उन्होंने उपनिषदों में वर्णित सत्य को परम सत्य के रूप में स्थापित किया. बौध धर्म का युग इसी के साथ सदैव के लिए खत्म हो गया. सनातन धर्म का परचम एक बार फिर सम्पूर्ण भारत मे लहराने लगा था, वेद मंत्रों की गूंज ने फिर से चारों दिशाओं को गुंजायमान कर दिया था. बौद्ध धर्म के पराजित होने के बाद उन्होंने भारत के चार कोणों में चार मठों की स्थापना की ताकि सनातन धर्म की रक्षा के साथ सनातन धर्म के आध्यात्म की अक्षुण्ण धारा हमेशा प्रवाहित होती रहे. इन चार मठों की स्थापना के पीछे उनकी सोच देश के चार आम्नायों में सामंजस्य स्थापित करना था और चार वेदों के अनुसार उनका शासन करना था. ये चार मठ गायत्री के चार पादों के अनुसार स्थापित किये गये, यथा –
ऋग्वेदोऽस्याः प्रथमः पादो भवति । यजुर्वेदो द्वितीयः पादः । सामवेदस्तृतीयः पादः । अथर्ववेदश्चतुर्थः पादः ।
पूर्वा दिक् प्रथमा कुक्षिर्भवति । दक्षिणा द्वितीया कुक्षिर्भवति । पश्चिमा तृतीया कुक्षिर्भवति । उत्तरा चतुर्थी कुक्षिर्भवति ।
ऊर्ध्वं पञ्चमी कुक्षिर्भवति । अधः षष्ठी कुक्षिर्भवति । 

इन चार मठों के वेद, देवता और पहले आचार्य का नीचे वर्णन दिया जा रहा है- 

1-गोवर्धन मठ 

गोवर्धन मठ आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित पहला मठ है. यह मठ भारत के पूर्वी भाग में ओडिशा राज्य के जगन्नाथ पुरी में स्थित है. इस मठ का महावाक्य है ‘प्रज्ञानं ब्रह्म’ तथा यह ‘ऋग्वेद’ का प्रतिनिधित्व करता है. इस मठ के प्रथम मठाधीश आदि शंकराचार्य के प्रथम शिष्य पद्मपादाचार्य हुए. वर्तमान में इस मठ के शंकराचार्य बड़े प्रज्ञ और विद्वान् जगदगुरु स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी हैं.

देवता: इस मठ के शिव जगन्नाथ हैं और शक्ति विमला हैं. यह पूर्वाम्नाय पीठ है. 
पीठ रहस्य – औड्रपीठं पश्चिमे तु तथैवोड्रेश्वरीं शिवाम्।
कात्यायनीं जगन्नाथमोड्रेशं च प्रपूजयेत।।
विरजा ब्रह्मरुपिणी -योगशोखोपनिषद

उत्कले नाभिदेशस्तु विरजाक्षेत्रमुच्यते ।
विमला सा महादेवी जगन्नाथस्तु भैरव: ।।
पीठ में यह ओड्यान पीठ के नाम से ख्यात है. कामाख्या शक्ति पीठ भी इसके अंतर्गत आता है.

गोवर्धन मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले सन्यासियों के नाम के बाद ‘वन’ ‘पुरी; ‘अरण्य’ सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है. पुरुषोत्तम क्षेत्र है.

2-श्रृंगेरी मठ

श्रृंगेरी मठ भारत के दक्षिण में चिकमंगलुुुर में स्थित है. स्थापना क्रम में यह दूसरा मठ है. वेदों के चार महावाक्यों में इस मठ का महावाक्य ‘अहं ब्रह्मास्मि’ है. यह मठ  ‘यजुर्वेद’ का प्रतिनिधित्व करता है. इस मठ के प्रथम आचार्य सुरेश्वर अर्थात सुरेश्वराचार्य थे, जिनका पूर्व में नाम मण्डन मिश्र था जिन्हें शंकर ने शास्त्रार्थ के बाद मिथिला में शिष्य बनाया था. इस मठ के वर्तमान शंकराचार्य जगदगुरु श्री श्री भारती तीर्थ हैं.

श्रृंगेरी मठ के अन्तर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले संन्यासियों के नाम के बाद सरस्वती, तीर्थ, भारती तथा अरण्य सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है.

देवता: शक्ति कामाक्षी, आदि वराह देवता 
कामाक्षी गंधमादने – देवी भागवत से इसकी स्थिति सिद्ध है.
पीठ में यह पूर्णशैल पीठ के नाम से ख्यात है.

यह दक्षिणाम्नाय पीठ है. रामेश्वरम क्षेत्र है.

3-शारदा मठ

शारदा (कालिका) मठ गुजरात में द्वारकाधाम में स्थित है. यह क्रमानुसार तीसरा मठ है. इस मठ का महावाक्य है ‘तत्त्वमसि’ , यह ‘सामवेद’ का प्रतिनिधित्व करता है. शारदा मठ के प्रथम मठाधीश हस्तामलक (पृथ्वीधर) थे. हस्तामलक शंकराचार्य जी के प्रमुख चार शिष्यों में से एक थे. वर्तमान में यहाँ के शंकराचार्य जगदगुरु स्वामी सदानंद सरस्वती हैं.

शारदा मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले सन्यासियों के नाम के बाद ;सरस्वती’, ‘तीर्थ’ और ‘आश्रम’ सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है.

देवता: भद्रकाली, सिद्धेश्वर शिव
विकूटे भद्रसुन्दरी – देवीभागवत के अनुसार इसकी स्थिति सिद्ध है.
पीठ में यह पूर्णगिरी पीठ के नाम से ख्यात है.

यह पश्चिमनाय पीठ है. द्वारका क्षेत्र है.

4-ज्योतिर्मठ

उत्तरांचल के बद्रीनाथ धाम में स्थित है ज्योतिर्मठ. यह क्रमानुसार चौथा और अंतिम मठ है.  इस मठ का महावाक्य ‘अयमात्मा ब्रह्म’ है. यह मठ अथर्ववेद का प्रतिनिधित्व करता है. ज्योतिर्मठ के प्रथम मठाधीश त्रोटकाचार्य बनाए गए थे. वर्तमान शंकराचार्य जगद्गुरु स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती हैं.

ज्योतिर्मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले संन्यासियों के नाम के बाद ‘गिरि’, ‘पर्वत’ एवं ‘सागर’ सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है.

देवता: शक्ति पूर्णगिरी, देवता नारायण 
पीठ में यह जालन्धर पीठ है.

यह उत्तराम्नाय पीठ है. बद्रिकाश्रम क्षेत्र है. 

नोट- ( गुप्त पीठ के सन्दर्भ में चारों पीठ का पूर्ण सामजस्य मुझे नहीं मिला है लौकिक पीठानुसार इनके पीठ लिखे हैं. यदि सामंजस्य किया जाय तो क्रम से ही किया जा सकता है. तीनों ही मठ में शक्तिपूजा प्रधान है इसलिए कोई न कोई ग्रन्थ इन मठों में हैं जिसमे इसका रहस्य लिखा होगा. )