 
									जीसस क्रिस्ट के उपदेशों में यह एक महत्वपूर्ण उपदेश है –
-Matthew 6:26
Behold the fowls of the air: for they sow not, neither do they reap, nor gather into barns; yet your heavenly Father feedeth them. Are ye not much better than they?
आकाश के पक्षियों को देखो! वे न बोते हैं, न काटते हैं, और न खत्तों में बटोरते हैं; फिर भी तुम्हारा स्वर्गीय पिता उनको खिलाता है। क्या तुम उनसे अधिक मूल्य नहीं रखते?
-मत्ती 6:26
यदि मनुष्य संग्रह करता है एवं उसी के लिए अपना लौकिक जीवन पूरी तरह नियोजित कर देता है तो वह तीन पाप करता है=एक है कल पर अविश्वास, दूसरा ईश्वर पर अश्रद्धा तथा तीसरा भविष्य की अवज्ञा। जब पिछला कल भलीभाँति निकल गया, हमें जीवित रहने के लिए जितना जरूरी था, उतना मिल गया तो कल क्यों नहीं मिलेगा? यदि जीवन सत्य है तो यह भी सत्य है कि जीवनोपयोगी पदार्थ अन्तिम साँस चलने तक मिलते रहेंगे। नियति के द्वारा उसकी श्रेष्ठतम व औचित्य की परिधि में व्यवस्था पहले से ही है। तृष्णा एक ऐसी ही बौद्धिक जड़ता है, जो निर्वाह के लिए आवश्यक साधन उपलब्ध रहने पर भी निरन्तर अतृप्तिजन्य उद्विग्नताओं में जलाती रहती है।
जो ईश्वर पर विश्वास रखते हैं, वे निजी जीवन में उदार बनकर जीते हैं। बादल बरस कर अपना कोष नहीं चुका देते। वे बार-बार खाली होते हैं, फिर भर जाते हैं। नदियाँ उदारतापूर्वक समुद्र को देती हैं वे समुद्र भाप बनाकर उन्हें बादलों को लौटा देता है, इस विश्वास के साथ कि यह प्रवाह चलता रहेगा। वृक्ष प्रसन्नतापूर्वक देते हैं व सोचते हैं कि वे ठूँठ बनकर नहीं रहेंगे। नियति का चक्र उन्हें सतत् हरा-भरा बनाए रखने की व्यवस्था करता ही रहेगा।
हवा की झोली में सौरभ भरने वाले खिलते पुष्पों से तथा दूध के बदले कोई प्रतिदान न माँगने वाली गायों से हम शिक्षण लें एवं उदारता को जीवित रख हँसते-हँसाते जीवन के दिन पूरे करें।


 
					 
					 
																			 
																			 
																			 
																			 
																			 
																			 
																			