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वृष लग्न में बृहस्पति अष्टमेश और एकादशेश होकर पाप-मारक ग्रह होता है. कहा गया है “जीवशुक्रेन्दव: पापा:”वृष लग्न में बृहस्पति, शुक्र, चन्द्र पापी ग्रह होते हैं जबकि शुक्र लग्नेश है. यही बात मेष लग्न में मंगल के लिए नहीं कही गई है “समौ सोम-कुजावेव मेष लग्नोदभवे फलम” जबकि ज्यादा अशुभ अष्टम हॉउस का स्वामी भी होता है. मेष लग्न में मंगल मारकेश के साथ युत होकर ही अशुभ फल देता है या मारक होता है. साथ में वृष लग्न के लिए यह भी कहा गया है कि “पापा: सन्ति मारक लक्षणा” मंगल के साथ उपरोक्त पाप ग्रह मारक भी होते हैं. यह परिभाषा लग्न को समग्रता से देखने के बाद दी गई होगी. यदि प्रत्येक भाव के हिसाब वृष लग्न में बृहस्पति को देखें तो कुंडली में स्थिति के अनुसार उसके अलग अलग तरह से फल मिलेंगे. इस लग्न में बृहस्पति, लग्न लार्ड शुक्र और भाग्येश शनि दोनों से सम है इसलिए यह धन कारक और राज्यकारक तभी बनता है जब यह शुक्र, शनि और बुध से कोई सम्बन्ध बनाये. सम्बन्ध चार प्रकार के बताये गये हैं. इस लग्न में चन्द्रमा राशि से बृहस्पति की एक राशि छठवें और दूसरी नवें स्थान पर पडती है तो चन्द्र से भी बृहस्पति का शुभ सम्बन्ध अच्छा फल करता है. यदि चन्द्रमा और शुक्र की युति 6वें और मंगल-गुरु की युति 11th में हो तो बृहस्पति की दशा धनदायक होती है. बुध-गुरु का परस्पर सम्बन्ध धनदायक होता है लेकिन यदि बुध-मंगल बृहस्पति से सम्बन्ध बनाएं तो अक्सर ऋणग्रस्त करते हैं.
यदि महारानी विक्टोरिया की कुंडली देखें तो नीच का बृहस्पति नवम भाव में बैठ कर उसके भाग्योदय कराने वाला बन गया है लेकिन यहाँ बृहस्पति की नीचता गौड़ हो गई और भाग्येश शनि से राशि परिवर्तन महत्वपूर्ण हो गया.

भाग्येश और बृहस्पति का लग्न में उच्च के चन्द्रमा और चतुर्थेश पर दृष्टिचारो दिशाओं  से लाभ और भाग्यकारी हैं. मीन राशि में एकादश भाव में बैठे राहु की महादशा में बृहस्पति की भुक्ति में राजकुमारी विक्टोरिया 28 June 1838 को ब्रिटेन की महारानी बनीं. शनि और वृहस्पति का यह सम्बन्ध इतना शक्तिशाली है कि शनि की महादशा में ही ये भारत की महारानी भी बनीं. राज्य के बावत तो बृहस्पति योगकारी हुआ परन्तु रानी के मांगल्य के लिए निःसंदेह अशुभ था. बृहस्पति-शुक्र दशा में 14 December 1861 को पति मिस्टर अल्बर्ट की मृत्यु हो गये. अष्टम भाव स्त्री का मांगल्य होता है. शनि-बृहस्पति का सम्बन्ध तो राज्य, पराक्रम , लाभ इत्यादि के सम्बन्ध में लाभकारी हुआ परन्तु लग्न के सुख के लिए ठीक नहीं रहा. अष्टमेश अन्ततोगत्वा अशुभ फल देकर ही रहता है. यह वैदिक ज्योतिष में एक स्वर से विद्वान् कहते हैं कि अष्टम लार्ड जिस हॉउस में बैठता है उसका नाश करता है लेकिन यह भी कहा गया है कि नवम भाव सबसे शक्तिशाली शुभ भाव है इसलिए वहां जो भी ग्रह बैठता है वह शुभ हो जाता है. इस कुंडली में तो नवमेश के साथ राशिपरिवर्तन करने शक्तिशाली योग में है. इसके बाद भी यदपि की बृहस्पति बहुत लाभकारी रहा लेकिन उसने पति को मार दिया. लोक में यही कहा जाता है कि स्त्री भाग्यवान वही होती है जो विधवा नहीं हुई. पति की मृत्यु के बाद लम्बे समय तक रानी विक्टोरिया बाहर नहीं निकली और ब्रिटेन में ‘widow of Windsor’ के नाम से जानी जाने लगी.

एक दूसरी कुंडली से इसी चीज को कन्फर्म करते हैं. यह कुंडली महत्वाकांक्षी स्वामी अभेदानंद की कुंडली है –

कुंडली में बृहस्पति नीच का होकर लग्न, नवांश, द्रेष्काण और द्वादशांश में वर्गोत्तम है. लग्न कुंडली में बृहस्पति की पूर्ण दृष्टि पंचमेश और सूर्य पर है और चन्द्र पर भी है. पंचम भाव का नवांश उदित है और शनि-बृहस्पति का राशिपरिवर्तन योग है. बृहस्पति और बुध द्वादशेश मंगल द्वारा दृष्ट हैं. बुध महादशा और बृहस्पति की भुक्ति में अभेदानंद 1996 में लन्दन गये और 1997 में अमेरिका में वेदांत सोसाइटी का कार्यभार सम्भाला.
यदि नवांश में शनि उत्तम वर्गों में हो तो भी नीच का बृहस्पति योग उत्पन्न करने में सक्षम होता है और जातक के लिए भाग्यकारक बन जाता है. वृष लग्न में बृहस्पति एकादश में शुभ फल नहीं करता जबकि वह उसका ही हॉउस है. यहाँ ज्यादातर मामले में जातक की इच्छाओं की पूर्ति में बाधक बनता है. इस लग्न में बृहस्पति क्या करेगा उसको समग्रता में देखने के बाद ही उसके चरित्र और स्वभाव के साथ उसके शुभत्व और अशुभत्व का निर्णय लेना चाहिए.