वैदिक ज्योतिष मूलभूत रूप से नक्षत्र ज्योतिष है. ज्योतिष में सताईस नक्षत्रों को उनके स्वभाव और गुण के अनुसार दो वर्गों में विभाजित किया गया है. सत्ताईस नक्षत्रों में उत्तरायण के नक्षत्र कृत्तिका से विशाखा तक देव नक्षत्र कहे गये हैं और दक्षिणायन के नक्षत्र अनुराधा से भरणी तक यम नक्षत्र कहे गये हैं.
अन्य वैदिक आचार्यों के अनुसार 28 नक्षत्रों के द्विधा विभाजन में रेवती से हस्त तक 14 नक्षत्र देव मंडल के नक्षत्र हैं और चित्रा से उत्तरभाद्र पर्यन्त आसुर मंडल के 14 नक्षत्र हैं. सृष्टि के प्रारम्भ में जब देवताओं नें पंच देव नक्षत्रों में स्वाग्नि का आधान किया तो उत्तर फाल्गुनी के पास कालकांजा नामक असुर नें उसका अपहरण करने की चेष्टा की थी जिसका इंद्र ने चित्रा के पास बध किया था. इन सताईस नक्षत्रों के स्वामी महर्षि पराशर की विंशोत्तरी दशा के अनुसार नवग्रह क्रमशः केतु, शुक्र, सूर्य, चंद्र, मंगल, राहु, गुरु, शनि और बुध हैं.
इन सत्ताईस नक्षत्रों में सबकी दशा मनुष्य के 120 वर्ष की परमायु में चलती है. सभी नक्षत्र तारे ही हैं लेकिन वैदिक ज्योतिष में शुभ और अशुभ का गणित जन्म नक्षत्र से होता है. ऐसाअनुभव से देखा गया है कि जन्म नक्षत्र के सापेक्ष पहले नव नक्षत्र 9 प्रकार से शुभ अशुभ फल देते हैं. जन्म नक्षत्र से 10वें नक्षत्र से अगले नौ नक्षत्रों में तथा पुनः 19वें नक्षत्र से अगले नौ नक्षत्रो में क्रम से उन्हीं फलों की पुनरावृत्ति होती है.
इन नक्षत्रों के फलानुसार ही इनके सम्पत, बिपत इत्यादि नाम रखे गये हैं. इस प्रकार कुल 27 नक्षत्र 9 समूहों में बंट जाते हैं, जिनके तीन चक्र होते हैं. इन नक्षत्र समूहों को तारा कहते हैं. इनके नाम इस प्रकार हैं-
जन्म सम्पद् विपत् क्षेम प्रत्यरिः साधको वधः। मैत्रं तथातिमैत्रं च तारा नामसदृक् फलाः ।।
जन्म, सम्पत, विपत,क्षेम,प्रत्यरि,साधक,बध,मित्र एवं अतिमित्र ये नव तारायें हैं. ये नाम अनुरूप ही फल प्रदान करती हैं. इनमे 3, 5, 7 ताराएँ अशुभ और शेष शुभ मानी गई हैं. यात्रा, विवाह, चिकित्सा इत्यादि में अशुभ तारा का त्याग करना चाहिए.
अशुभ तारा दोष का निवारण –
गर्गाचार्य के अनुसार इन तारों के दोष निवारण के लिए निम्नलिखित चीजों का दान करना चाहिए.
विपद तारे गुडं दद्यात शाकं दद्यात त्रिजन्मसु ।
प्रत्यरौ लवणं दद्यात निधनं तिलांचकनम ।।
विपत तारा के लिए गुड़ का दान करें (खांड ), जन्म तारा के लिए साग शब्जी, प्रत्यरि तारा के लिए नमक और निधन या वध तारा के लिए तिल पात्र सहित तिल का दान करें.
चन्द्रमा यदि उच्च का हो, षडवर्गों में हो और अत्यंत बलवान हो तो तारा दोष की निवृति हो जाती है. सर्वत्र चन्द्र बल देखना चाहिए. चन्द्रमा बलवान हो तो सब सुख देने वाला होता है.

