
यह नवग्रह कवच यामल तंत्र से लिया गया है. इस नवग्रह कवच का पाठ प्रत्येक दिन श्रद्धापूर्वक करने से व्यक्ति को रोग, कष्ट, ग्रहों के दोष, अशुभ प्रभाव, शत्रु बाधा आदि से मुक्ति तत्काल मिलती है. किसी रोगी के शरीर को स्पर्श कर इसका पाठ करने से भी उसे रोग से मुक्ति मिलती है. सूर्यग्रहण में इसको भोजपत्र पर लिख कर इसका 108 बार पाठ करके उसे ताबीज में भर लें और भुजा में बाँध लें. इससे ग्रह पीड़ा से मुक्ति मिलती है.
अथ कवचं –
ॐ शिरो मे पातु मार्तण्ड: कपालं रोहिणीपति:।
मुखमङ्गारक: पातु कण्ठं च शशिनन्दन:।।
बुद्धिं जीव: सदा पातु हृदयं भृगुनंदन:।
जठरं च शनि: पातु जिह्वां मे दितिनंदन:।।
पादौ केतु: सदा पातु वारा: सर्वाङ्गमेव च।
तिथियोऽष्टौ दिश: पातु नक्षत्राणि वपु: सदा।।
अंसौ राशि: सदा पातु योगश्च स्थैर्यमेव च।
इसका फलश्रुति में इससे रोग, ग्रह पीड़ा, शत्रु पर विजय और यहाँ तक कि काकबंध्याकरण से मुक्ति भी होती है, ऐसा कहा गया है.