
पहले एक लेख में घनश्याम पण्डे उर्फ़ नीलकान्त वर्णी के बारे में संक्षिप्त में लिखा था क्योंकि विस्तार से लिखने के लिए समय नहीं मिला. यहाँ देखें वह लेख. ये धूर्त बताते हैं कि स्कंद पुराण में स्वामिनारायण के अवतार के संकेत मिलते हैं, जिसका द्वारका पीठ निवर्तमान शंकराचार्य ने खंडन कर दिया है. स्वामी नारायण सम्प्रदाय ४ मुख्य वैष्णव सम्प्रदाय के अंतर्गत नहीं आता और न ही इनका कोई विशेष ग्रन्थ है तथा शास्त्रीय आधार है. स्वामिनारायण का एकमात्र ग्रन्थ शिक्षापत्री है जिसमें किसी ग्रन्थ जैसा कुछ ख़ास नहीं है. ऐसी किताबे संस्कृत में करोड़ों की संख्या में उपलब्ध हैं. भारत के प्रमुख सम्प्रदाय संस्थापकों ने प्रस्थान त्रयी पर स्वतंत्र भाष्य किया है साथ में इनके ग्रन्थों की फेहरिश्त बहुत बड़ी है.
स्वामी नारायण सम्प्रदाय प्रवर्तक घनश्याम पण्डे ने पंच देव उपासना का उपदेश शिक्षा पत्री में किया और वहीं स्वयं को अनेक बार भगवान बताया है. प्रारम्भ के श्लोक में भगवान कृष्ण को प्रणाम भी करता है. ऐसा पूर्व में किसी आचार्य ने नहीं किया कि अपने ग्रन्थ में खुद को भगवान बताये. उन आचार्यों के महाप्रस्थान के उपरांत उनके महान कर्म, ज्ञान और सनातन धर्म में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए जनता ने उन्हें भगवान कहा.