स्वामी विवेकानंद के बारे में श्री रामकृष्ण परमहंस ने जो कुछ भी कहा है उसका संक्षिप्त विवरण आज उनकी जयंती के अवसर पर पाठकों के लिए दिया जा रहा है. इन प्रसंगों को प्रमुख रूप से श्री महेन्द्रनाथ गुप्त (श्री म ) के श्री श्री रामकृष्ण कथामृत से लिया गया है. रामकृष्ण को पूर्ण रूप से गुरु मान कर शरणागति लेने से पूर्व विवेकान्द दक्षिणेश्वर आते जाते रहते थे. उनकी आध्यात्मिक यात्रा के प्रारम्भिक दिनों में हुई कुछ बातें महत्वपूर्ण हैं। नरेंद्र दक्षिणेश्वर में मास्टर, गिरीश, रखाल, विजय, महिमा इत्यादि शिष्यों के साथ नये नये सिद्ध हुए रामकृष्ण के उपदेश सुनते, किसी किसी के साथ तार्किक बहस करते, रामकृष्ण के उपदेश के बीच में भी कुछ कह पड़ते. रामकृष्ण उनके आपस में धर्म के विषयों पर वार्तालाप, उनके तर्क वितर्क को मजा लेकर सुनते थे, बीच बीच में उन्हें रोक कर कहते – अरे, ऐसा नहीं वैसा है ! नरेंद्र की तीक्ष्ण बुद्धि को प्रारम्भ से ही वे देख-समझ रहे थे और भीतर भीतर समझते थे कि यह लड़का ही उनका काम करने में पूर्ण सक्षम हो सकता है.
नरेंद्र के न आने पर रामकृष्ण परेशान होते थे, अक्सर व्याकुल हो जाते थे. यह व्याकुलता स्त्रैण चित्त की व्याकुलता थी. रामकृष्ण कहते थे -“नरेंद्र पुरुष है, गाड़ी पर तभी तो दाई तरफ बैठता है। भवनाथ का स्त्री भाव है, तभी उसे दूसरी ओर बैठने देता हूँ।”
रामकृष्ण स्वयं भी नरेंद्र को पुरुष मानते थे- ” नरेद्र सभा में रहता है तो मेरा बल होता है।”
नरेंद्र एक पुरुष कबूतर है, मैसकुलिन है, पुरुषवादी है और उसकी धार्मिक सोच में भी यह मैस्कुलिन भाव है. सब तरफ पुरुष की सत्ता है. नरेंद्र के प्रति रामकृष्ण का भाव एक स्त्री का भाव है.
नरेंद्र और दूसरे लडके – गिरीश, राम, हरिपद, मास्टर, रखाल, बलराम इत्यादि को नारायण मानते हैं, नित्य सिद्ध कहते थे. नरेंद्र में पुरुषत्व अधिक देखते और उसकी काबिलियत पर ‘वाह वाह ‘ करते.
एकदिन अवतार विषय पर चर्चा होने लगी- नरेंद्र, गिरीश, राम, हरिपद, मास्टर, रखाल, बलराम इत्यादि शिष्य उपस्थित थे. नरेंद्र नहीं मानते कि ईश्वर मानवदेह में अवतार लेता है, गिरीश का पक्का विश्वास है कि ईश्वर युग युग में अवतार लेते हैं.
रामकृष्ण यह देख बोले-” दोनों थोडा अंग्रेजी में विचार करो, मैं देखूंगा।”
नरेंद्र बोले- “ईश्वर अनंत है. उनकी धारणा करने की सामर्थ्य हम लोगों में कहाँ? वे सबके भीतर हैं; कोई एक जन के भीतर आये हैं, ऐसा नहीं है !?”
रामकृष्ण उनपर स्नेह दर्शाते बोले-” उसका जो मत है, मेरा भी यही मत है। वे सर्वत्र हैं। परन्तु एक बात है -शक्ति विशेष है। वे कहीं पर अविद्या शक्ति के प्रकाश में हैं, कहीं पर विद्या शक्ति के प्रकाश में हैं। किसी आधार में शक्ति अधिक है, किसी आधार में शक्ति कम है। इसलिए सब मनुष्य समान नहीं हैं। “
(इस प्रकार तर्क होता रहा। रामकृष्ण को तर्क अच्छा नहीं लगता था फिर भी विरक्त मन से सुन रहे है।)
गिरीश नरेंद्र को सम्बोधित कर कहते हैं – मनुष्य -अवतार में ईश्वर न आयें तो कौन समझाएगा? मनुष्य को ज्ञान-भक्ति देने के लिए वे देहधारण करके आते हैं। न हो, तो कौन शिक्षा देगा?
नरेंद्र -क्यों? वे अंतर में समझा देंगे !
रामकृष्ण (नरेंद्र के प्रति सस्नेह) – हाँ ! हाँ ! अन्तर्यामी रूप में वे समझायेंगे! (फिर घोरतर्क चलता है .. रामकृष्ण इससे बौखला जाते हैं, उन्हें यह सब पसंद नहीं है )
रामकृष्ण (मास्टर के प्रति) -देखो, ऐसी बातें मुझे अच्छी नहीं लगतीं! वे ही सब बने हुए हैं, मैं सब देख रहा हूँ … एक अवस्था में अखंड में मन-बुद्धि खो जाते हैं. नरेंद्र को देख मेरा मन अखंड में लीन हो जाता है.

