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सूर्य देव अशुभ फलदायक हों निम्नलिखित वस्तुओं का दान करना चाहिए – स्वयं के वजन के बराबर गेहूं या यव (जौ), लाल-पीले मिले हुए वस्त्र, लाल फल, गुड़ , लाल फूल, घी, सामर्थ्य के अनुसार रत्न माणिक्य ,सोना , ताम्बा, केसर ,लाल चन्दन, कषाय वस्त्र, नूतन गृह, कमल, ताम्बुल और लाल गाय का दान करना चाहिए.

इसके अतिरिक्त प्रतिदिन मैनसिल, मुलेठी, खस, केसर, देवदारु , रक्त कमल, रक्त पुष्प, रक्त चंदन को जल में मिलाकर उस जल से ॐ आदित्याय नम: बोलते हुए स्नान करना चाहिए.

बेल (श्री फल ) की जड़ रविवार के दिन सूर्य के नक्षत्र में लाल धागे में दायें बाजू में बांधना चाहिए. अर्क पर भी सूर्य का अधिकार माना जाता है. इसे पहनने तथा आकड़े की लकड़ी से हवन करने से सूर्य प्रसन्न होते हैं. केशर, कमलगट्टा, जटामांसी, इलायची, मैनसिल, खस, देवदारू और पाटल का चूर्ण जल में डालकर स्नान करने से भी सूर्यजनित दोष समाप्त होते हैं और ग्रह का दुष्प्रभाव कम होता है.

अर्घ्य प्रदान करने की विधि – सूर्य देव को अर्घ्य प्रदान करने से अनेक दोषों का निवारण होता है.
भगवान सूर्य को अर्घ्य प्रदान करने के लिए इन चार मन्त्रों में किसी का भी उपयोग किया जा सकता है अथवा सिर्फ गायत्री से भी अर्घ्य दिया जा सकता है जो शास्त्र विहित है –
प्रथम मंत्र- ॐ घृणि सूर्य आदित्य: ॐ
द्वितीय मन्त्र -ॐ आदित्याय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात्
तृतीय मन्त्र -ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः
चतुर्थ मन्त्र- ‘ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
यह गायत्री मन्त्र वेद विहित है, इससे अर्घ्य दें और इसी मन्त्र से सूर्योपस्थान भी कर सकते हैं. परन्तु इस मन्त्र के साथ कुछ शर्ते हैं, जिसका जनेऊ हुआ हो, जिसको यह गुरु से प्राप्त हो उसे ही इसके उच्चारण और जप का अधिकार है. भगवान सूर्य के अर्घ्यदान की विशेष महत्ता है. प्रतिदिन प्रात:काल सूर्योदय के समय देना चाहिए अर्थात सात बजे से पूर्व देना चाहिए, बेहतर सदैव उदित सूर्य को अर्घ्य देना है. अर्घ्य देने के लिए रक्तचन्दनादि से मण्डल बनाकर तथा ताम्रपात्र में जल, लाल चन्दन, चावल या तिल, रक्तपुष्प और कुशादि डाल कर सूर्य मंत्र का जप करते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य दें ( यथासम्भव जल में प्रविष्ट होकर अर्घ्य अंजुली से देना चाहिए) या जल पात्र रख कर उसमे अर्घ्य देना चाहिए, अर्घ्य जल को बाद में तुलसी मूल में या पीपल मूल में डाल दें. प्रातः पूर्व दिशा में अर्घ्य दें, मध्याह्न को उत्तर दिशा में और सायं को पश्चिम दिशा में अर्घ्य प्रदान करें. अर्घ्य प्रदान करते समय अंजुलि बनाएं तो अंगूठे को अलग हटा कर रखें, हथेली से सटा न हो, पात्र पकड़े तो हथेली के बीच पात्र रखें, अंगूठों को अलग हटा कर रखें. सुबह थोड़ा झुक कर खड़ा होकर अर्घ्य दें, दोपहर को सीधे खड़े होकर अर्घ्य प्रदान करें और सायं को बैठ कर अर्घ्य दें. सुबह और दोपहर को तीन बार अर्घ्य दें, सायं को एक बार अर्घ्य दें.

सूर्यार्घ्य का मंत्र:
ॐ एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर
अर्घ्यदान से प्रसन्न होकर भगवान सूर्य आयु, आरोग्य, धन-धान्य, यश, विद्या, सौभाग्य, मुक्ति- सब कुछ प्रदान करते हैं.
यदि अर्घ्य देने विलम्ब हो जाए अर्थात सूर्योदय या सूर्यास्त से ४५ मिनट देर हो तो एक अर्घ्य और प्रदान करना चाहिए.