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सूर्य आयुष्य का कारक है यह भारत के ऋषियों को पता था और यह सिद्ध है. सूर्य की साम्ब स्तुति में “श्रीः आरोग्यकरः चैव धनवृद्धियशस्करः ” कहा गया है कि सूर्य आरोग्य प्रदान करता है और धन तथा यश की वृद्धि करता है. साम्ब को सूर्य की अराधना से ही कुष्ठ जैसे रोग से मुक्ति मिली थी. सूर्य की पूजा से रोगों से मुक्ति मिलती है. यह सिद्ध है.
आधुनिक समय में नील्स रेबर्ग फिन्सेन( Niels Ryberg Finsen) ने इसे सिद्ध किया. फिन्सेन को 1903 में सूर्य चिकित्सा में नोबेल पुरस्कार मिला था. उन्होंने सूर्य की केंद्रीकृत किरणों से ल्यूपस वल्गेरिस का इलाज किया था. ल्यूपस वल्गेरिस  (जिसे ट्यूबरकुलोसिस ल्यूपोसा  के रूप में भी जाना जाता है) गांठदार उपस्थिति के साथ दर्दनाक त्वचीय तपेदिक त्वचा के घाव हैं , जो अक्सर नाक, पलकें , होंठ, गाल, कान और गर्दन के आसपास चेहरे पर होते हैं. यह सबसे आम माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस त्वचा संक्रमण है. यदि उपचार न किया जाए तो घाव अंततः विकृत त्वचा अल्सर में विकसित हो सकते हैं.

यह चिकित्सा में एक नई बात थी. इनके बाद स्विटजरलैंड के एक डॉक्टर रोलियर ने सूर्य थिरेपी पर चालीस साल काम किया . इस पर विशेष काम करने के बाद रोलियर ने 1000 बेड का हस्पताल खोला जहाँ उन्होंने सूर्य की किरणों से 1700-2500 लोगों को कई रोगों से मुक्ति दिलाई. रोलियर दिमाग के टीबी (skeletal tuberculosis ) के इलाज के लिए प्रसिद्ध हुए.

हिन्दू हजारों वर्षों से वेद के सूर्योःदेवता मंत्र खंड को सायं-प्रातः गाते आये हैं..

ॐ स्वस्ति नऽइन्द्रो वृद्धश्रवाः, स्वस्ति नः पूषा विश्वेवेदाः।
स्वस्ति नस्ताक्र्ष्योऽअरिष्टनेमिः, स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।  – २५.१९
ॐ पयः पृथिव्यां पयऽओषधीषु, पयो दिव्यन्तरिक्षे पयोधाः। पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम्॥  – १८.३६
ॐ अग्निर्देवता वातो देवता, सूर्यो देवता चन्द्रमा देवता, वसवो देवता रुद्रा देवता, ऽऽदित्या देवता मरुतो देवता, विश्वेदेवा देवता, बृहस्पतिर्देवतेन्द्रो देवता, वरुणो देवता॥  
 -१४.२०
ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष  शान्तिः, पृथिवी शान्तिरापः, शान्तिरोषधयः शान्तिः। वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः, शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः, सर्व œ शान्तिः, शान्तिरेव शान्तिः, सा मा शान्तिरेधि॥

प्रायः उन सभी लोगों का जिन्होंने धूप की रोग नाशक शक्ति के संबंध में अनुसंधान किया है, कहना है कि सूर्य किरण में पाई जाने वाली अल्ट्रावायलेट किरणें ही मनुष्य के विशेष काम की हैं. अधिक तादाद में अल्ट्रावायलेट किरणें उपजाने वाली मशीनें भी बना ली गई हैं पर देखा गया है कि इन मशीनों द्वारा प्राप्त किरणें उतनी लाभदायक नहीं होती जितनी सूर्य की किरणें. ऐसी भी मशीनें बनी हैं जो अल्ट्रावायलेट किरणें बिल्कुल ही नहीं देती वे केवल इन्फ्रारेड किरण डालकर रोगों पर अपना प्रभाव दिखाती हैं. घर में इस्तेमाल किए जाने वाले साधारण बल्ब में भी यदि कुछ खास तौर के रिफ्लेक्टर लगा दिये जायें तो उनके प्रकाश में भी कुछ न कुछ औषधगुण अवश्य उत्पन्न हो जायगा यद्यपि उनमें न अल्ट्रावायलेट किरणें होती हैं न इन्फ्रा रेड. इससे यह साबित होता है कि सूर्य की किसी भी अकेली किरण में चाहे वह सूर्य से ली जाय या किसी मशीन से पैदा की जाय वह प्रभाव नहीं होता जो सूर्य की सीधी इकट्ठी किरणों में.

अब किसी ऐसे व्यक्ति के शरीर पर ध्यान दीजिये जिसे अधिकतर धूप में रहना पड़ता है. उसकी तपे ताँबे की सी देह को उनकी देह से मिलाइये जो कपड़ों, छातों और ऊँचे-ऊँचे घरों की सहायता से अपने को धूप से दूर रखते हैं. पीली मुरझाई निस्तेज त्वचा में न तो ठंडक गर्मी बर्दाश्त करने की ताकत होती है और न रक्त की गंदगी को पसीने के रूप में बाहर निकाल डालने की शक्ति.

यह आवश्यक नहीं है कि हर समय धूप में ही रहा जाय. ऐसे अवसर का उपयोग अवश्य किया जाय जब दिन भर बाहर रहने का मौका मिले. पर दस पंद्रह मिनट रोज तो धूप ली ही जाय. इसके लिए खुले बदन धूप में लेटना चाहिये, केवल सिर ढ़का रहे. जो लोग देर से स्नान करते हैं वे धूप लेने के बाद स्नान करें तो उनके चर्म रोग होने की कभी संभावना ही न रहे. धूप लेने के बाद यदि स्नान न किया जा सके तो सारे बदन को गीले कपड़े से अवश्य ही पोंछ डालना चाहिये.

भोजन शास्त्री जब गरीबों के लिए भोजन बताने लगते हैं तो वे इस चक्कर में पड़ जाते हैं विटामिन डी. उनके भोजन में किस प्रकार दी जाय. और इस बावत वे दवा बेचते हैं जो जहर ही है. दूध, मक्खन, क्रीम, अंडे से दूर उनकी नजर नहीं जा पाती. यह काम धूप से पूरी तौर से लिया जा सकता है. धूप को गरीबों का दूध, मक्खन, क्रीम ही समझिये. स्कूलों में बच्चों को पाँचवें दर्जे से हाइजीन पढ़ाई जाती है जो व्यवहार के लिये नहीं है. यदि केवल धूप लेने की बात भी लोगों के गले उतर जाय तो यक्ष्मा और अनेकानेक skin के रोगो की व्यापकता कम हो जाएगी और रुक जाएगी.