
प्राचीन ज्योतिष ग्रन्थों में शारीरिक शास्त्र द्वारा भी सुख, सम्पत्ति और स्त्री-पुरुष के शुभत्व और अशुभत्व का वर्णन किया गया है. विशेष रूप से स्त्री जातकों के शरीर के अंगों के शुभत्व या अशुत्व का वर्णन मिलता है. यहाँ स्त्रियों में प्रमुख आकर्षण का केंद्र अंग उसके नितम्ब के बारे में ज्योतिष ग्रन्थ क्या कहते हैं दिया जा रहा है. परन्तु इससे पूर्व रामकृष्ण परमहंस के शारीरक शास्त्र के ज्ञान के बारे में चर्चा करते हैं.
रामकृष्ण परमहंस का स्त्रियों के बारे में ज्ञान अद्भुत था और उनके सूक्ष्म ओब्जर्वेशन थे. एक बार उन्होंने उपदेश में शिष्यों से कहा कि स्त्रियाँ दो प्रकार की होती हैं -विद्या रूपिणी और अविद्या रूपिणी. विद्यारूपिणी स्त्री पुरुष की मुक्ति में हेतु होती है, सहयोगी होती है जबकि अविद्या रूपिणी घोर सांसारिक, कामी और बंधन का कारण बनती है. उन्होंने स्त्रियों के अंगों के बारे में ज्योतिष से सम्बन्धित बातें ही कहीं और बताया कि जिस स्त्री के नितम्ब का आकार चींटी के समान हो वह दुराचारी, बहुपुरुषगामी और वेश्या होती है.

मीडिया के कैमरे एक्ट्रेसेज के नितम्बों पर ही टिके होते हैं और सम्बन्धित खबरें भी बनती रहती है. हिप्स को उभारने के लिए महिलाएं न जाने कितने एक्सरसाईज करती रहती हैं.
ज्योतिष शास्र में नितम्ब का वर्णन कुछ इस प्रकार है –
विस्तीर्णमांसोपचित नितम्ब: गुरुश्च धत्ते रशनाकलापम।
नाभिर्गम्भिरा विपुलांग्नानां प्रदक्षिणावर्तगता च शस्ता।।
जिस स्त्री का नितम्ब चौड़ा, मांसल और बड़ा हो तो वह करधनी सा सुशोभित होता है. यदि नाभि गंभीर, विपुल, प्रदक्षिणावर्त हो तो वह स्त्री प्रशस्त होती है. इसके विपरीत पुरुष को कष्टप्रद या दुखी करने वाली होती है.
अन्यत्र –
नितम्ब बिम्बों नारीणामुन्नतो मांसल: पृथु:
महाभोगाय सम्प्रोक्तस्तदन्योsशर्मगणे मत:
कपित्थ फलवद वृत्तौ मृदुलौ मांसलौ घनौ ..रतिसौख्यविवर्धनौ.
जिन नारियों का नितम्ब भाग स्थूल. मांसल और उन्नत हो वह अत्यधिक भोगो को देने वाला होता है. जिनका कपित्थ(कैथा) जम्बू फल के समान गोल, कोमल मांस युक्त हो ऐसा नितम्ब पुरुष को सुख देने वाली और रति सौख्य को बढ़ाने वाली होती है.

अन्यत्र यह भी कहा गया है त्रिकोणाकार नितम्ब वाली नारी अत्यधिक भोगी और बहुपुरुषगामी होती है. शरीर लक्षण शास्त्र का ज्योतिष से गहरा सम्बन्ध है. ज्योतिष यह मानता है कि मनुष्य का जन्म जिन राशियों से, नक्षत्रों से सम्बन्धित होता है वैसा ही वह होता है. उदाहरण के लिए यदि सप्तम भाव जल राशि है, जल तत्व प्रधान ग्रह बैठा हो या भाव जल तत्व प्रधान ग्रह से दृष्ट हो तो स्त्री का गुह्य अंग जलीय होगा, शुष्क राशि होगी तो शुष्क या कोई अग्निप्रधान ग्रह ऐसा हो तो भी उस तरह का प्रभाव प्रकट करता है.
दारेशे शुष्कराशिस्थे दारे वा शुष्क संज्ञके।
शुष्कग्रहेण संयुक्ते त्वनार्द्रंम गुह्यमादिशेत्।।
यदि सप्तम भाव का स्वामी शुष्क राशियों में हो अथवा सप्तम में शुष्क राशि हो अथवा सप्तमेश शुष्क ग्रह के साथ हो तो भग शुष्क या अनार्द्र रहती है.
ज्योतिष शास्त्र ने अपने विकास के उत्तरकाल में बहुत सारी चीजो को ज्योतिष का हिस्सा बनाया मसलन शकुन शास्त्र और शारीरक शास्त्र तथा आयुर्वेद से ज्योतिष पहले से गहरे युक्त रहा है तो उसे भी ज्योतिष ने अपना हिस्सा बनाया और आयुर्वेद ने भी ज्योतिष को अपना हिस्सा बनाया. दक्षिणभारत में ज्योतिष के विद्वान् आयुर्वेद की भी प्रेक्टिस करते रहे हैं. शारीरक शास्त्र का वर्णन वाल्मीकि रामायण में भी हुआ है. रामायण से ज्ञात होता है कि शारीरक शास्त्र और शकुन शास्त्र अति प्राचीन विद्या है. आयुर्वेद भी इसे समाहित करता है.