
य एष चन्द्रमसि पुरुषो दृश्यते सोऽहमस्मि-छान्दोग्योपनिषद्
चंद्रमा राजा है। चन्द्रमा की २७ पत्नियाँ हैं जो सत्ताईस नक्षत्रों के नाम से प्रसिद्ध हैं। चन्द्रमा की सबसे प्रिय रानी रोहिणी हैं। चन्द्रमा के अधिदेवता अप और प्रत्यधिदेवता उमा(पार्वती) हैं। चन्द्रमा पितृलोक में निवास करते हैं, मातृप्रेमी हैं इसलिए चतुर्थ भाव में दिग्बली रहते हैं। चतुर्थेश होने से निसर्गत: सुख कारक होता है चन्द्रमा। चन्द्रमा स्त्री का सबसे प्रमुख ग्रह है, स्त्री का चन्द्रमा खराब तो उसका सुख नष्ट हो जाता है। पौराणिक समुद्र मंथन की कथा के अनुसार हिन्दू धर्म में चन्द्रमा लक्ष्मी का सहोदर माना गया हैं। चन्द्रमा का पुत्र बुध है जो बृहस्पति की पत्नी तारा से उत्पन्न हुआ था। वेदों के अनुसार चन्द्रमा ब्राह्मण है और ब्राह्मणों पर इनका अधिपत्य है। कुछ ज्योतिष ग्रन्थों में चन्द्रमा को वैश्य भी बताया गया है।
सूर्य राजसत्ता का ग्रह है तो चन्द्रमा भी राजसत्ता का ग्रह है। जिस पवित्र जल से राजाओं का अभिषेक होता है इसके स्वामी चन्द्र देव ही हैं। अथर्ववेद में प्राप्त राज्याभिषेक सूक्त के देवता चन्द्रमा ही हैं-
भू॒तो भू॒तेषु॒ पय॒ आ द॑धाति॒ स भू॒ताना॒मधि॑पतिर्बभूव।
तस्य॑ मृ॒त्युश्च॑रति राज॒सूयं॒ स राजा॒ रा॒ज्यमनु॑ मन्यतामि॒दम् ॥ -अथर्वेद-४-८-१
स्वयं उत्पन्न होकर जो जड़ चेतन का पोषण करता है, वह सर्व भूतों का अधिपति है। उसके राजसूय के अनुरूप मृत्यु भी चलती है। वह सोम राजा मनुष्यों में राजा को मान्यता प्रदान करता है। चन्द्रमा के बिना कोई राजयोग नहीं होता।
पुराणों के अनुसार चन्द्र वंश का विस्तार उनके पुत्र बुध से हुआ है, जो क्रम से निम्नलिखित है – ब्रह्मा के मानस पुत्र अत्रि, अत्रि के पुत्र चन्द्रमा, चन्द्रमा के पुत्र बुध, बुध के पुत्र वैवस्वत मनु, प्रथम मनु की पुत्री इला (जो पुरुष बन कर सुद्युम्न नाम से प्रसिद्ध हुई थी), इला से सम्राट पुरुरवा, पुरुरवा के छह पुत्र हुए जिनमे महाराज नहुष विख्यात हुए। नहुष से ययाति, ययाति की दो पत्नियों शुक्राचार्य की पुत्री शर्मिष्ठा से एक पुत्री और देवयानी से तीन पुत्र हुए। इसी वंश के महाराज यदु के वंश में चन्द्रावतार भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था।
महर्षि पराशर ने भी श्री कृष्ण को चन्द्रमा का अवतार बताया है –
रामोSवतारः सूर्यस्य चन्द्रस्य यदुनायकः । नृसिंहो भूमिपुत्रस्य बुद्धः सोमसुतस्य च ।। वामनो विबुधेज्यस्य भार्गवो भार्गवस्य च । कूर्मो भास्करपुत्रस्य सैंहिकेयस्य सूकरः ।। केतोर्मीनावतारश्च ये चान्ये तेSपि खेटजाः। परात्मांशोSधिको येषु ते सर्वे खेचराभिधाः ।
सूर्य से श्रीराम का, चंद्रमा से श्रीकृष्ण का, मंगल से श्रीनृसिंह का, बुध से बुद्ध का, गुरु से वामन का, शुक्र से भार्गव परशुराम जी का, शनि से कूर्म का, राहु से वराह और केतु से मत्स्य अवतार हुआ है। इसके अतिरिक्त जितने भी अवतार हैं वे भी ग्रहों से ही अवतीर्ण हुए हैं। उनमें से जिसमे परमात्मांश अधिक है, वे खेचर अर्थात् देवता कहलाते हैं । भागवत महापुराण के अनुसार द्वापर में राजा दिलीप और शांतनु तक चन्द्र वंश चला तत्पश्चात चन्द्र वंश लुप्त हो गया। महाभारत काल के कौरव, पांडव और मगध नरेश जरासंध इत्यादि चंद्रवंशी शाखा के क्षत्रिय थे। पुनः चन्द्र वंश का विस्तार सतयुग में होगा। विष्णु पुराण के अनुसार कलियुग के प्रारम्भ से पूर्व तक वृष्णि वंश की जनसंख्या सैकड़ो करोड़ थी, संख्या का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि 3 करोड़ 88 लाख तो उन्हें धनुर्विद्या सिखाने वालों की संख्या थी। सम्भवत: श्री कृष्ण जनसंख्या कम करने के उद्देश्य से भी अवतरित हुए थे क्योंकि उनके स्वलोक प्रस्थान से पूर्व ही वृष्णि वंश खत्म हो गया था। चन्द्रमा ब्राह्मण हैं और ब्राह्मणों के शाप से वृष्णि वंश का नाश भी हुआ।