सूर्य अच्छी अवस्था में हो जातक को श्रेष्ठ चीजें प्राप्त होती हैं. सूर्य अच्छा हो तो जातक को राजसत्ता से लाभ प्राप्त होता है. सूर्य यदि नीच होगा तो जिन चीजों का कारक है, उससे सम्बन्धित समस्या हो सकती है. सूर्य में एक सत्व होता है इसके नीच होने पर मन में पवित्रता और सत्व की कमी होती है. कोई साधक की कुंडली में सूर्य नीच हो तो मन्त्र सिद्धि नहीं होगी. नीच होने पर मन्त्र सिद्धि के लिए सूर्य को उसका पर्यावरण नहीं मिलेगा. ऐसे में यह नीच सूर्य मन्त्र सिद्धि के लिए आवश्यक सत्व न मिलने से उस चीज को खराब करने पर आ जायेगा. वह नीच साधनों की तरफ उन्मुख हो जायेगा. यही बात अन्य नीच के ग्रहों पर भी लागू होता है. सूर्य के नीच होने पर जातक राज्य या प्रशासन द्वारा पीड़ित हो सकता है. उच्च के ग्रह सद्गुणी, सत्व रखने वाली, उच्च कुलोत्पन्न स्त्री से शादी करवाते हैं, नीच के ग्रह नाचने वाली, दुश्चरित्र, सत्वहीन, निम्न प्रकृति, जिसका गोत्र क्षीण हो गया हो उससे शादी करा सकते हैं. यद्यपि नीच के ग्रहों का नीच भंग हो तो भौतिकवादी जीवन में कारगर होते देखें जाते हैं और कलियुग में नीच प्रकृति सफल भी होती देखी जाती है. यदि नीचभंग हो तब सूर्य के स्वभाव में गुणात्मक परिवर्तन आ जाता है. पश्चिम के ज्योतिषी नीचभंग को नहीं मानते, उनके अनुसार जो ग्रह नीच का है वह अपने स्वभाव के अनुसार ही कार्य करता रहता है. ज्योतिष में जो बातें कही गई हैं वो आदर्श जीवन के सन्दर्भ में कही गई हैं. नीच के ग्रह मनुष्य को उच्चतर जीवन नहीं देते. उच्चतर जीवन के सन्दर्भ में ही नीच ग्रहों का विश्लेषण करना चाहिए. आदर्श जीवन की प्राप्ति और मुक्ति -यह भारतीय संस्कृति का आदर्श है. जो मनुष्य यह प्राप्त करता है वही धन्य है.
भारतीय ज्योतिष के अनुसार सूर्य निम्नलिखित चीजों का कारक है-
आत्मा , शक्ति , तीक्ष्णता, दुर्ग , राज्य, ऐश्वर्य, प्रभाव, प्रसिद्धि या कीर्ति,राजा, राज पताका, अग्नि, पिता-पुत्र, पिता का पराक्रम, आत्म साक्षात्कार, वेद ज्ञान, विद्या, उत्साह, हड्डी, वृत्त, मनुष्य लोक, देवयान, देश का अधिपत्य, प्रताप, राज्याश्रय, कटुता, डरपोक की सन्तान, भूमि, दुष्टता, आँख, कांटेदार वृक्ष, शिव भक्त , शिव पूजा , धैर्य, लाल कपड़ा, स्वर्ण, चौपाये , लाल चन्दन, पूर्व दिशा का स्वामी, ताम्बा, धन, पित्त, गर्मी , शहद, मन का सत्व, नेत्र के रोग, पेट, हृदय रोग, आत्म प्रत्यय, मृत्यु लोक,मन की पवित्रता, मन्त्र सिद्धि, आकाश का अधिपत्य, ब्रह्माण्ड का ज्ञान, सर्वाधिकारित्व, कोख, जंगल, अयन, नदी तट, मध्याह्न बेला, दीर्घ कोप, लोक सेवा, नाटा कद, केशर, कलह, ऊँची दृष्टि, गर्मी, दीर्घ प्रयत्न,महासागर, औषधि, ज्ञान का उद्गम,आरोग्य, मोटी रस्सी, कर्म क्षेत्र, जवाहरात, उर्जा, ग्रीष्म ऋतु, राजनीतिक शक्ति, राजतन्त्र, राज भाषा, कोप, माणिक्य, लाल चन्दन, क्षत्रिय, ऊनी कपड़े, ज्ञान का उद्गम, शस्त्र, शास्त्र, मन्त्र इत्यादि।
सूर्य सिंह राशि का स्वामी है. सूर्य का दिन रविवार और तिथि सप्तमी है. जो भी मौलिक, सत्व प्रधान ,पवित्र और महान कुंडली में है, उसका सूर्य प्रतिनिधित्व करता है.
राशि के अनुसार कारकत्व –
मेष- क्षात्र धर्म, संघटक, फोरमैन, तांबा, माणिक, प्रवाल, ऊनी कपड़े
वृष -दवाइयां, पशु, लकड़ी, किसान, नाच गाना, नाट्यगृह मिथुन-स्कुल मास्टर, जवाहरात, कोर्ट की भाषा, वकील
कर्क -बिजली, बिजली पर चलने वाले धंधे, नेत्र का डाक्टर, बिजली घर
सिंह -जैहरी, केशर, डिक्टेटर, राजा, राजकुल कन्या-मैनेजर, गिलट, अनाज, सार्वजनिक कार्यालय
तुला-सिविल अधिकारी, प्लेटिनम, राजदूत वृश्चिक -पत्थर, लाल चन्दन, चन्दन, कच्चे रेशम, शस्त्र, शरीरधारी
धनु-सोना, रेडियम, धर्म गुरु, विधि वेत्ता , जज
मकर-नगर का अध्यक्ष, कौंसिलर, असेम्बली, नगर पालिका, जिला, पंचायत
कुम्भ-विज्ञान, समाजशास्त्र, जीव विज्ञान, ज्योतिष, रेडियोलॉजी, इंजीनियरिंग, राजनीति, सामाजिक कार्य
मीन -एक्स-रे फोटोग्राफी, मोती, कला, प्रदर्शनी, धर्म गुरु, स्त्री बल्लभ
दि॒वो ध॒र्ता भुव॑नस्य प्र॒जाप॑तिः पि॒शङ्गं॑ द्रा॒पिं प्रति॑ मुञ्चते क॒विः।
वि॒च॒क्ष॒णः प्र॒थय॑न्नापृ॒णन्नु॒र्वजी॑जनत्सवि॒ता सु॒म्नमु॒क्थ्य॑म् ॥२॥ -ऋग्वेद-४-५३-२
यह जो सूर्य का प्रकाश है सम्पूर्ण लोको को धारण करने वाला है, यह प्रजापति है ।ये द्रष्टा हैं, इन्होने तेजयुक्त अपने स्वर्णिम कवच को जगत पर फैलाया है। अनेक प्रकार से जगत को प्रकाशित करने वाले, इसका विस्तार करने वाले, सब प्रकार से पूर्ण ये सविता देव ऐश्वर्य युक्त हैं और हमारे ऐश्वर्य का कारण हैं। इस परमेश्वर की उपासना कर हम सब सुख को प्राप्त हों ।

