Spread the love

शिंगणापुर का शनि मंदिर भारत का बहुत प्रसिद्ध मंदिर है. यह मन्दिर महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में शिरडी से 65 किलोमीटर की दूरी पर शिंगणापुर नाम के गाँव में स्थित है. यहाँ भगवान शनिदेव की कोई मूर्ति नहीं बस एक काले रंग का पत्थर है जो स्वयंभू कहा जाता है. यह पत्थर ही स्वयम्भू मूर्ति है जो 5 फुट 9 इंच ऊंची है और संगमरमर के एक चबूतरे पर स्थित है. शनिदेव अष्ट प्रहर धूप हो, आँधी हो, तूफान हो या जाड़ा हो, सभी ऋतुओं में बिना छत्र के खड़े हैं. मंदिर पूरे शनि कोप निवारण के लिए बेहद प्रसिद्ध है. इस मंदिर का नाम जिस शिंगणापुर गाँव के नाम पर पड़ा है उस पूरे गाँव में किसी भी घर में दरवाजे नहीं हैं. बिना दरवाजे के इन घरों में कभी चोरी नहीं होती. तीन हजार जनसंख्या के शनि शिंगणापुर गाँव में कहीं भी कुंडी तथा कड़ी लगाकर ताला नहीं लगाया जाता. यहाँ घर में लोग आलीमारी, सूटकेस आदि नहीं रखते. दर्शन करने वालों के भी सामान चोरी नहीं होते.

ग्रामीणों की मान्यता है कि यह स्वयंभू शनि देव हैं. स्वयंभू प्रतिमा के बारे में लोक मान्यता है कि कभी एक चरवाहे ने एक छड़ी से पत्थर को छुआ, तो पत्थर से खून बहने लगा. चरवाहे आश्चर्यचकित रह गए. जब खबर गाँव में पहुंची तो जल्द ही पूरा गाँव चमत्कार देखने के लिए इकट्ठा हो गया. उस रात चरवाहों के सपने में भगवान शनिश्वर प्रकट हुए. उन्होंने बताया कि वह “शनेश्वर” हैं, और अनोखा दिखने वाला काला पत्थर उसका स्वयंभू रूप है. चरवाहे ने प्रार्थना की और भगवान से पूछा कि क्या उन्हें उसके लिए एक मंदिर बनवाना चाहिए? इस पर शनिदेव ने कहा कि छत की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि पूरा आकाश उनकी छत है और वे खुले आकाश के नीचे रहना पसंद करते हैं. उन्होंने चरवाहे को प्रतिदिन पूजा और प्रत्येक शनिवार को ‘तैलाभिषेक’ करने को कहा. उन्होंने कहा वे यहाँ विराजेंगे इसलिए पूरे गांव में डकैतों और चोरों का कोई डर नहीं रहेगा. तब से स्वयंभू शनिदेव आकाश के नीचे बिना छत के ही विराजमान हैं. इतिहास के अनुसार यह स्वयंभू शनिदेव कलियुग के प्रारम्भ से यहाँ विराजमान हैं.

शनि शिंगणापुर के दर्शन के लिए अमावस्या का दिन सबसे उत्तम है. शनिवार के दिन अगर अमावस्या पड़ती है तो उस दिन शनि शिंगणापुर मंदिर के दर्शन के लिए भीड़ उमड़ती है. हर शनिवार के दिन यहाँ बड़ी संख्या में लोग शनि भगवान की पूजा, अभिषेक आदि करते हैं. यह कहावत सच है कि कोबरा का काटा और शनि का मारा पानी नहीं माँगता. शनि महादशा किसी की भी अच्छी नहीं होती, दशा का प्रारम्भ या अंत काफी कष्टदायी रहता है. शनि महादशा में शिंगणापुर शनि देव के दर्शन से तत्काल लांभ मिलता है और शांति होती है.

इस मन्दिर में महिलाओ के गर्भ गृह में प्रवेश, दर्शन अभिषेक को लेकर लम्बा कानून विवाद हुआ था. इस मन्दिर के गर्भगृह में 400 साल से महिलाओं का प्रवेश निषेध था. बॉम्बे हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि महिलाओं को मंदिर में प्रवेश से नहीं रोका जा सकता है. शनि शिंगणापुर मंदिर ट्रस्ट द्वारा महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने की घोषणा के बाद तृप्ति देसाई और उनकी भूमाता रणरागिनी ब्रिगेड ने 400 साल पुरानी परंपरा को तोड़ कर शनि का दर्शन और अभिषेक किया था. तृप्ति देसाई ने ही मन्दिर में घुसने का आन्दोलन शुरू किया था.

इस मंदिर में शनि देव को तेल चढानें के लिए पुरुषों को केसरिया रंग के ही वस्त्र धारण करने पडते है साथ ही इन्हीं कपड़ो में स्नान करने के बाद तेल चढाने की परंपरा है. यह भारत के सबसे प्रसिद्ध शनि मन्दिरों में एक है. वृन्दावन के कोकिला वन के शनि भगवान भी अत्यंत प्राचीन द्वापर युग के बताये जाते हैं.