
कुंजिका स्तोत्र दुर्गा सप्तशती का हिस्सा नहीं है. गीता प्रेस से छपी शप्तशती में यह अलग से दिया गया है. इस स्तोत्र का शिव ने पार्वती को रुद्रयामल के गौरी तंत्र में उपदेश दिया है. इस स्तोत्र का मूल मंत्र नवार्ण मन्त्र अर्थात “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” के साथ आरंभ होता है और स्तोत्र जो माला मन्त्र की तरह है, उसमें भी नवार्ण मन्त्र के बीजाक्षर सन्निहित हैं. कुंजिका स्रोत में अनेक बीज मंत्रों का समावेश है, जो उच्चारण में अत्यंत ही शक्तिशाली लगते हैं. स्तोत्र में कहा गया है कि इसके पाठ के लिए किसी न्यास इत्यादि की जरूरत नहीं है. नवार्ण मन्त्र की दीक्षा लेने वाला कोई भी उस स्तोत्र का अनुष्ठान कर सकता है. मन्त्र सदैव गुरुमुख प्राप्त करने पर ही सिद्धप्रद होते हैं. इस स्तोत्र के पाठ से नवार्ण मन्त्र में भी शक्ति का समावेश होता है और मन्त्र सिद्ध हो जाता है. कोई भी देवी दुर्गा की विधिवत पूजा सम्पन्न कर इस स्तोत्र का पाठ कर सकता है. कुंजिका स्त्रोत का पाठ करने वाले को अति शीघ्र ही मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है. इस स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से संधि काल में किया जाता है. संधि काल वह समय होता है जब एक तिथि समाप्त हो रही हो और दूसरी तिथि आने वाली हो. जब अष्टमी तिथि और नवमी तिथि की संधि हो तो अष्टमी तिथि के समाप्त होने से 24 मिनट पहले और नवमी तिथि के शुरू होने के 24 मिनट बाद तक का जो कुल 48 मिनट का समय होता है, इस काल में पाठ करना चाहिए. इसी संधि काल में माता ने देवी चामुंडा का रूप धारण किया था और चंड तथा मुंड नाम के राक्षसों का वध किया था. इस काल में कुंजिका स्तोत्र का पाठ करना सर्वोत्तम फलदायी माना जाता है. इस समय को नवरात्रि में अष्टमी का सबसे शुभ समय माना गया है क्योंकि इसी समय के समाप्त होने के बाद देवी वरदान देने को उद्यत होती हैं. इस स्तोत्र में कहा गया है कि इसके अनुष्ठान से मारण, मोहन इत्यादि सभी कर्म सिद्ध हो जाते हैं.
इस स्त्रोत्र का पाठ दिन में किसी भी शुभ समय में किया जा सकता है लेकिन विशेष रूप से ब्रह्म मुहूर्त के दौरान इसका पाठ करना सबसे अधिक प्रभावशाली माना जाता है. ब्रह्म मुहूर्त का 48 मिनट का समय बेहतर होता है. पंचांग में ब्रह्म मुहूर्त का समय दिया रहता है, अपने शहर के ब्रह्म मुहूर्त में दुर्गा पूजन के बाद इसका अनुष्ठान कर सकते हैं. इसका विषम संख्या में पाठ करे 3, 5, 7, 11 की संख्या में करें. इसका पाठ अष्टमी, त्रयोदशी और चतुर्दशी को प्रशस्त माना जाता है. अष्टमी और चतुर्दशी तिथि में इसका अनुष्ठान करने से जल्द ही इसकी सिद्धि मिल जाती है, कुछ शास्त्रों में नवमी को भी प्रशस्त माना गया है. जिस दिन विशेष ग्रहयोग प्राप्त हों उस दिन भी इसका अनुष्ठान किया जा सकता है. हर एक पाठ के बाद एक जवा पुष्प देवी को अर्पित करें या कमल का फुल अर्पित करें.
नोट- किसी भी मन्त्र या स्तोत्र की सिद्धि एक दिन में नहीं मिलती, इसके लिए कमर कस कर लम्बी साधना में उतरना आवश्यक है. जब तक सिद्धि न हो जाए तब तक साधना को नहीं छोड़ना चाहिए, सिद्धि मनुष्य के पुण्य कर्मों और देवता की अनुकम्पा से प्राप्त होती है.
॥सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम्॥
शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत॥१॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥२॥
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥३॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥४॥
॥अथ मन्त्रः॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥ ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा॥
॥इति मन्त्रः॥
नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥१॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि॥२॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥३॥
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥४॥
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥५॥
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥६॥
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥७॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥८॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥
इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु कुञ्जिकाया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥
इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्।
॥ॐ तत्सत्॥