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धन की अधिष्ठात्री देवी मां लक्ष्मी की शीघ्र कृपा पाने के लिए लक्ष्मी सूक्त पाठ करना बहुत लाभदायक है. आर्थिंक तंगी से छुटकारे के लिए यह अचूक प्रभावकारी माना जाता है. इस सूक्त में दो गायत्री मन्त्र हैं जिसके समस्त पूजन किया जा सकता है और उसका जप कर देवी को प्रसन्न किया जा सकता है.

अथ लक्ष्मी सूक्तं ॥

ॐ पद्मानने पद्मिनि पद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि ।
विश्वप्रिये विश्वमनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व ॥
हे लक्ष्मी देवी! आप कमलमुखी, कमल पुष्प पर विराजमान, कमल-दल के समान नेत्रों वाली, कमल पुष्पों को पसंद करने वाली हैं. सृष्टि के सभी जीव आपकी कृपा की कामना करते हैं. आप सबको मनोनुकूल फल देने वाली हैं. हे देवी! आपके चरण-कमल सदैव मेरे हृदय में स्थित हों.

पद्मानने पद्मऊरु पद्माश्री पद्मसम्भवे ।
तन्मे भजसिं पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम् ॥
हे लक्ष्मी देवी! आपका श्रीमुख, ऊरु भाग, नेत्र आदि कमल के समान हैं. आपकी उत्पत्ति कमल से हुई है. हे कमलनयनी! मैं आपका स्मरण करता हूँ,आप मुझ पर कृपा करें.

अश्वदायै गोदायै धनदायै महाधने ।
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे ॥
हे देवी! अश्व, गौ, धन आदि देने में आप समर्थ हैं.आप मुझे धन प्रदान करें. हे माता! मेरी सभी कामनाओं को आप पूर्ण करें.

पुत्रपौत्रं धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवेरथम् ।
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे ॥
हे देवी! आप सृष्टि के समस्त जीवों की माता हैं. आप मुझे पुत्र-पौत्र, धन-धान्य, हाथी-घोड़े, गौ, बैल, रथ आदि प्रदान करें. आप मुझे दीर्घ-आयुष्य बनाएँ.

धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्योधनं वसुः ।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणो धनमस्तु मे ॥
हे माता लक्ष्मी! आप मुझे अग्नि, धन, वायु, सूर्य, जल, बृहस्पति, वरुण आदि की कृपा द्वारा धन की प्राप्ति कराएँ.

वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा ।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः ॥
हे वैनतेय पुत्र गरुड़! वृत्रासुर के वधकर्ता, इंद्र, आदि समस्त देव जो अमृत पीने वाले हैं, मुझे अमृतयुक्त धन प्रदान करें.

न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभा मतिः ।
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जापिनाम् ॥
इस सूक्त का पाठ करने वाले की क्रोध, मत्सर, लोभ व अन्य अशुभ कर्मों में वृत्ति नहीं रहती, वे सत्कर्म की ओर प्रेरित होते हैं.

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक गन्धमाल्यशोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥

श्रीर्वर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते ।
धान्य धनं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ॥

ॐ महादेव्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि ।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥
हम महादेवी लक्ष्मी का स्मरण करते हैं. विष्णुपत्नी लक्ष्मी हम पर कृपा करें, वे देवी हमें सत्कार्यों की ओर प्रवृत्त करें.
ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे महश्रियै च धीमहि ।
तन्नः श्रीः प्रचोदयात् ॥
हम महालक्ष्मी का स्मरण करते हैं. लक्ष्मी हम पर कृपा करें, वे देवी हमें सत्कार्यों की ओर प्रवृत्त करें.

विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम् ।
लक्ष्मीं प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ॥
भगवान विष्णु की प्रिय पत्नी, माधवप्रिया, भगवान अच्युत की प्रेयसी, क्षमा की मूर्ति, लक्ष्मी देवी मैं आपको बारंबार नमन करता हूँ.

चन्द्रप्रभां लक्ष्मीमैशानीं सूर्याभांलक्ष्मीमैश्वरीम् ।
चन्द्र सूर्याग्निसङ्काशां श्रियं देवीमुपास्महे ॥
जो चंद्रमा की आभा के समान शीतल और सूर्य के समान परम तेजोमय हैं उन परमेश्वरी लक्ष्मीजी की हम आराधना करते हैं.

॥ इति श्रीलक्ष्मी सूक्तं सम्पूर्णम् ॥