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शरीर में कम्पन, अनिद्रा, रुदन, तिरछी नजर, मुख का रंग काला होना, अक्सर बुखार आना, बोलते समय स्वर भंग होना अंगो में जड़ता, दांत किटकिटाना, मूर्छा, चीत्कार, अतिसार, अकारण हंसना, उपर कि तरफ देखना, अंग सूखना, अद्विग्नता लम्बे समय तक होना, अपने आप आंखे ढंकना ..ये लक्षण बताते हैं कि जातक पर ग्रहों के कारक देवो का हमला है. भागवत पुराण में गोपियों ने पूतना के हमले के बाद यह स्तोत्र रक्षा स्तोत्र कहा था. यह स्तोत्र उसे कहना चाहिए जिस पर बाहरी भूतादि,यक्ष, राक्षस आदि का प्रकोप हो ..

॥ॐ केशवाय नम:॥
अव्यादजोऽङ्घ्रि मणिमांस्तव जान्वथोरू यज्ञोऽच्युतः कटितटं जठरं हयास्यः ।
हृत्केशवस्त्वदुर ईश इनस्तु कण्ठं विष्णुर्भुजं मुखमुरुक्रम ईश्वरः कम् ॥ १॥

चक्र्यग्रतः सहगदो हरिरस्तु पश्चात् त्वत्पार्श्वयोर्धनुरसी मधुहाजनश्च ।
कोणेषु शङ्ख उरुगाय उपर्युपेन्द्रस् तार्क्ष्यः क्षितौ हलधरः पुरुषः समन्तात् ॥ २॥

इन्द्रियाणि हृषीकेशः प्राणान्नारायणोऽवतु ।
श्वेतद्वीपपतिश्चित्तं मनो योगेश्वरोऽवतु ॥ ३॥

पृश्निगर्भस्तु ते बुद्धिमात्मानं भगवान्परः ।
क्रीडन्तं पातु गोविन्दः शयानं पातु माधवः ॥ ४॥

व्रजन्तमव्याद्वैकुण्ठ आसीनं त्वां श्रियः पतिः ।
भुञ्जानं यज्ञभुक्पातु सर्वग्रहभयङ्करः ॥ ५॥

डाकिन्यो यातुधान्यश्च कुष्माण्डा येऽर्भकग्रहाः ।
भूतप्रेतपिशाचाश्च यक्षरक्षोविनायकाः ॥ ६॥
कोटरा रेवती ज्येष्ठा पूतना मातृकादयः ।
उन्मादा ये ह्यपस्मारा देहप्राणेन्द्रियद्रुहः ॥ ७॥
स्वप्नदृष्टा महोत्पाता वृद्धबालग्रहाश्च ये ।
सर्वे नश्यन्तु ते विष्णोर्नामग्रहणभीरवः ॥ ८॥ ॥

॥ इति श्रीमद्भागवते दशमस्कन्धे गोपीकृतबालरक्षा समाप्ता ॥