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सनातन धर्म के वैष्णव सम्प्रदाय में मन्दिरों की भरमार है विशेषकर दक्षिण भारत में तो आठवी शताब्दी के बाद तो मन्दिर मानो मिशन के तहत बनाये गये. दक्षिण भारत के राजाओं ने राजकोष की सम्पत्ति का सबसे ज्यादा इस्तेमाल मन्दिर बनाने में किया. आठवीं शताब्दी के बाद दक्षिण में बड़े बड़े मन्दिर बने जिनमे शैव और वैष्णवों दोनों के मन्दिर बड़ी संख्या में बने. दक्षिण भारत में वैष्णवों और शैवों में घोर प्रतिस्पर्धा थी जिसके फलस्वरूप जहाँ वैष्णवों के 108 दिव्य देशम मन्दिर और 108 अभिमान क्षेत्रं मन्दिर हैं, वहीं शैवों के ज्योतिर्लिंग मन्दिरों के इतर प्रसिद्ध अष्ट विरत्त मन्दिर, पंच भूत स्थलम और पंच सभा स्थलम मन्दिरों की लिस्ट है. छोटे मन्दिरों की तो कोई गणना ही नहीं है. शैव और वैष्णवों की प्रतिस्पर्धा का जिक्र हमने अपने अजएकपाद पर लिखे आर्टिकिल में किया है. इस विषय पर फिर कभी समय मिला तो लेख लिखेंगे, यहाँ हम सीतापुर के नृसिंह मन्दिर के बारे में जानते हैं.

वैष्णवों के 108 दिव्य देशम मन्दिरों की श्रृंखला में चार मन्दिर उत्तर प्रदेश में स्थित हैं, जिनमें तीन- रामजन्म भूमि स्थल मन्दिर, कृष्ण जन्म भूमि स्थल मन्दिर, बद्रीनाथ मन्दिर तो विश्व प्रसिद्ध हैं लेकिन इस चौथे मन्दिर के बारे में हिन्दू भी कम ही जानते हैं. उत्तर भारत में भगवान नृसिंह का यह मन्दिर सबसे प्राचीन है. पुरे भारत वर्ष में कुछ 18 प्रसिद्ध नृसिंह मन्दिर हैं जिनमे चार प्रसिद्ध मन्दिर आन्ध्रप्रदेश में, चार कर्नाटक में, दो उड़ीसा में, दो तेलंगाना, दो तमिलनाडू, एक केरल, एक महाराष्ट्र, एक राजस्थान और एक उत्तर प्रदेश में है. वस्तुत: उत्तर प्रदेश में एक और गुमनाम प्राचीन नृसिंह मन्दिर है जो हरदोई के प्रहलाद घाट में स्थित है. पौराणिक मान्यता के अनुसार हरदोई हिरण्यकशिपु की राजधानी थी.

यूपी के सीतापुर में स्थित श्री नृसिंह नाथ मन्दिर पौराणिक मन्दिर है. यह मन्दिर पुराणों में प्रसिद्ध नैमिषारण्य के केंद्र में स्थित था. यह वैष्णवों का एक प्राचीन तीर्थ स्थल है. इस तीर्थ को चक्रतीर्थ भी कहा जाता है. पुराणों के अनुसार ऋषि दधीचि ने लोक कल्याण के लिए अपने देवराज इन्द्र को अपनी अस्थियां इसी स्थान पर प्रदान की थीं. नैमिषारण्य का नाम नैमिष नामक वन की वजह से पड़ा. यह वन बहुत विशाल था जो आधा पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरिद्वार, हरियाणा से होते हुए मथुरा तक जाता था. पौराणिक काल से बहुत पूर्व से यह वन वैष्णवों की तपःस्थली रही थी. पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत युद्ध के बाद साधु-संत कलियुग के प्रारंभ को लेकर काफी चिंतित थे. सभी सिद्ध ऋषि महर्षियों ने ब्रह्मा जी का आह्वान किया और उन्होंने ब्रह्मा जी से किसी ऐसे स्थान के बारे में पूछा जो कलियुग के प्रभाव से अछूता रहे. ब्राह्मणों के पिता ब्रह्मा जी ने एक पवित्र चक्र निकाला और उसे पृथ्वी की तरफ घुमाते हुए कहा कि जहां भी ये चक्र रुकेगा, वो स्थान कलियुग के प्रभाव से मुक्त रहेगा. ब्रह्मा जी का चक्र नैमिषारण्य में आकर रुका. साधु-संतों ने कलियुग के प्रभाव से बचने के लिए इस स्थान को ही अपनी तपोभूमि बना लिया. नैमिषारण्य के इन जंगलों में ही भागवत पुराण की कथा पहली बार कही गई थी. नैमिषारण्य का नाम नैमिषारण्य इस लिए पड़ा क्योंकि यहाँ निमिषिया ऋषि रहते थे. निमिष निमेष से आया जो समय की एक इकाई है. भारतीय वैदिक समय की गणना कुछ इस तरह हैं –

  • एक तॄसरेणु = 6 ब्रह्माण्डीय अणु.
  • एक त्रुटि = 3 तॄसरेणु, या सेकेण्ड का 1/1687.5 भाग
  • एक वेध =100 त्रुटि.
  • एक लावा = 3 वेध.
  • एक निमेष = 3 लावा, या पलक झपकना
  • एक क्षण = 3 निमेष.
  • एक काष्ठा = 5 क्षण, = 8 सेकेण्ड
  • एक लघु =15 काष्ठा, = 2 मिनट.
  • 15 लघु = एक नाड़ी, जिसे दण्ड भी कहते हैं। इसका मान उस समय के बराबर होता है, जिसमें कि छः पल भार के (चौदह आउन्स) के ताम्र पात्र से जल पूर्ण रूप से निकल जाये, जबकि उस पात्र में चार मासे की चार अंगुल लम्बी सूईं से छिद्र किया गया हो. ऐसा पात्र समय आकलन हेतु बनाया जाता है.
  • दण्ड = एक मुहूर्त.
  • 6 या 7 मुहूर्त = एक याम, या एक चौथाई दिन या रत्रि.
  • याम या प्रहर = एक दिन या रात्रि.

एक निमेष = 3 लव जो 1 बार पलक झपकने में लगे समय के बराबर होता है. तो नैमिषारण्य में रहने वाले ये ऋषि निमिष में रहते थे, उनका अवेयरनेस का स्तर यह था. जो ऋषि समय की इस सूक्ष्म इकाई में निवास करता हो उसके लिए निद्रा क्या चीज होती है ? वे पूर्ण जाग्रत थे. रामायण के अनुसार इसी स्थान पर भगवान श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ पूरा किया था और महर्षि वाल्मीकि, लव-कुश से भी उनका मिलन इसी स्थान पर हुआ था.

यहाँ चक्रतीर्थ, भेतेश्वरनाथ मंदिर,व्यास गद्दी, हवन कुंड, ललिता देवी का मंदिर, पंचप्रयाग, शेष मंदिर, क्षेमकाया, मंदिर, हनुमान गढ़़ी, शिवाला-भैरव जी मंदिर, पंच पांडव मंदिर, पंचपुराण मंदिर, रामानुज कोट आदि दर्शनीय स्थल हैं.