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हिन्दू मिथकों में जीता है. किसी सत्य को उसी तरह जैसा है उसे स्वीकार करने से उसमे कुछ रहस्य नहीं दिखता. मिथक ही सत्य है. किसी भी तथ्य का मिथकीकरण करने की गंदी प्रवृत्ति हिन्दू बाबाओं में कब आई ये नहीं पता, लेकिन यह एक सच है कि बाबा गपोड़शंख द्वारा तथ्य मा मिथकीकरण करते हैं. किसी महात्मा, गुरु या आचार्य की बायोग्राफी ऐसी नहीं जिसमे यह मिथकीकरण नहीं है. मसलन शिव को भांग क्यों चढ़ता है? इसका समुद्र मंथन से जुड़ा मिथकीय कारण है. महर्षि पतंजलि के जन्म की कथा में बताया गया है कि वे कुँवारी कन्या की अंजली में गिरे इसलिए उनका नाम पतंजलि हुआ. महान योगी गोरखनाथ गाय के गोबर में पाए गये इसलिए उनका नाम गोरख हुआ.

भगवान शिव को भांग धतुरा क्यों चढ़ता है? बाबाओं के अनुसार इसका कोई वैज्ञानिक कारण नहीं है, इसका कारण मिथकीय है. एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवताओं और असुरों के बीच अमृत की प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन हुआ तो, इस दौरान विष भी उत्पन्न हुआ. यह विष इतना भयानक था कि इस विष की अग्नि से दसों दिशाएं जलने लगीं. तब भगवान शिव ने इस विष का पान किया, ताकि इस विष से प्रकोप से सभी को बचाया जा सके. इस विष का प्रभाव इतना अधिक था कि इसके कारण से शिव जी का गला नीला पड़ गया और वह अचेत हो गए. इस स्थिति को देखकर समस्त देव व दानव चिंतित हो गए. तब भगवान शिव के सिर से हालाहल की गर्मी को दूर करने के लिए उनके सिर पर धतूरा और भांग रखा गया, जिससे विष शांत हुआ. तभी से शिव जी को भांग और धतूरा चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है. फिर पूछो कि शिव जी को जल का अभिषेक क्यों होता है? बाबा इसका भी कोई आध्यात्मिक कारण नहीं बतायेंगे. इसका भी कारण मिथकीय गर्मी ही है.

वास्तव में इसका योगिक और वैज्ञानिक कारण है, कोई मिथकीय कारण नहीं है. शिव को भांग या धतुरा जो मादक हैं इसलिए चढ़ाए जाते हैं क्योंकि योग साधना की स्थिति में जब साधक अपनी साधना से कुंडलिनी को जाग्रत करता है तो इसकी गर्मी असह्य होती है. यह साधक को’ रेस्टलेस कर देती है, उसकी निद्रा इत्यादि जाती रहती है. इससे साधक के भीतर अनेक प्रकार की दैहिक और मानसिक विकृतियाँ प्रकट हो सकती हैं. इसके लिए भंग या अफीम या धतुरा का सेवन औषधि के रूप में किया जाता है. यह कुंडलिनी को स्तम्भित कर देती है. यह कारण है कि योग के पहले आचार्य भगवान शिव को सिम्बोलिक रूप से ये दो औषधियां चढाई जाती हैं.

दूसरा कारण योगसूत्र में ही वर्णित है “जन्मौषधिमन्त्रतपःसमाधिजाः‌ ‌सिद्धयः‌ ‌” औषधियों के प्रयोग से भी साधक सिद्धियों को प्राप्त करता है. औषधि का अंग्रेजी अनुवाद ड्रग होता है. ऐसे ड्रग और औषधि हैं जो एड्रेनालाईन रश (adrenaline rush) जैसी प्रभावोत्पादकता से मनुष्य को अकस्मात उच्चतर मानसिक अवस्था में स्थापित कर देते हैं. सोम ऐसी ही उन्मादक औषधि थी जिस पर सबका अधिकार नहीं था. सोम वाक् को भी कहते हैं. गायत्री सोम में प्रतिष्ठित है इसलिए गायत्री के जप से भी एड्रेनालाईन रश की स्थिति बनती है. हिन्दू संस्कृति में यक्ष, किन्नर, विद्याधर जैसी योनियाँ औषधि का प्रयोग एल्केमी में करती थी और इसके प्रयोग से वे अनेक प्रकार की सिद्धियों के वे स्वामी बन जाते थे. इसका अनेक पुराणों में वर्णन मिलता है.