हिंदू धर्म में शीतला देवी एक पौराणिक देवी हैं. यह देवी उस समय की उत्पत्ति है जब देश में चेचक एक बहुत खतरनाक बीमारी थी. इस वायरस का संक्रमण होता था तो पूरा गाँव का गाँव इसकी चपेट में आ जाता था और इससे बहुत मृत्यु भी होती थी. उस समय शीतला माता की पूजा शुरू हुई थी. स्कंद पुराण में शीतला देवी का वाहन गर्दभ बताया गया है. इनके हाथो में जो भी वस्तुएं हैं वो सभी चेचक के निदान में प्रयोग की जाती थी. ये हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण करती हैं. इनके साथ अनेक वायरस चलते हैं -शीतला माता के संग ज्वरासुर- ज्वर का दैत्य, ओलै चंडी बीबी – हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण- त्वचा-रोग के देवता एवं रक्तवती – रक्त संक्रमण की देवी चलते हैं.
चैत्र महीने की कृष्ण अष्टमी को आज भी शीतला अष्टमी का व्रत और पूजन किया जाता है. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से व्रत और पूजन करने वालों के जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. इस व्रत को करने वाले रोग से मुक्त हो जाते हैं. इस साल शीतला अष्टमी का व्रत शनिवार, 22 मार्च 2025 के दिन रखा जाएगा.
पूजा मुहूर्त –
चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 22 मार्च 2025 को सुबह 4.23 बजे शुरू होगी. यह तिथि अगले दिन 23 मार्च 2025 को सुबह 5.23 बजे समाप्त होगी. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, शीतला अष्टमी का व्रत 22 मार्च को रखा जाएगा. शीतला अष्टमी के दिन माता की विधि-विधान से पूजा करके उन्हें बासी भोग लगाने की परंपरा है. इस व्रत का पारण भी माता को लगाए बासी भोग से किया जाता है. प्रसाद के रूप में बासी भोग बांटा जाता है.

