कार्तवीर्य अर्जुन या सहस्रार्जुन त्रेतायुग के शक्तिशाली राजाओं में शुमार था. यह एक क्रूर और अधर्मी राजा था. इसका राज्य मालवा था अर्थात आधुनिक मध्यप्रदेश तक सीमित था. पौराणिक गपोड़शंख में इसे विष्णु का मानस प्रपुत्र तथा सुदर्शन का अवतार बताया जाता है. पौराणिकों ने तो इसे धन और खोए राज्य, कीर्ति तथा बल इत्यादि का देवता भी बना दिया था. पौराणिक अंधकार के युग अर्थात मध्ययुग में इसके नाम पर तंत्र इत्यादि भी बनाये गये और इसकी पूजा भी बेचारे अज्ञानी हिन्दुओं से करवाई गई थी. पुराणों के अनुसार सहस्रार्जुन ने सात महाद्वीपों एवं ब्रह्मांड पर विजय प्राप्त कर इसने 85 हजार वर्षों तक शासन किया. इसमें एक हजार हाथी का बल बताया गया है. कुछ पुराण इसे एक हजार हाथ वाले देवता और भगवान दत्तात्रेय का महान भक्त बताते हैं. इसके सामने बल में राक्षस राज रावण कुछ भी नहीं था. एक बार रावण ने नर्मदा के तट पर सहस्रार्जुन को युद्ध में ललकारा था और इनके बीच मल्ल युद्ध हुआ, जिसमे इसने रावण को बंदी बना लिया था और छह महीने कारागार में रखा था. कथा के अनुसार शिव के महान भक्त परशुराम ने इसे बंदीगृह से मुक्त किया था. रावण और राक्षस कुल परशुराम को अपना गुरु मानता था. गौरतलब है कि परशुराम भी शैव थे और रावण भी शैव था. परशुराम ने शैवों को दीक्षित किया था और दक्षिण भारत में शैव आज भी उन्हें अपना गुरु मानते हैं.
पुराण के अनुसार हैहेय वंशी राजाओ का जन्म घोड़े और घोड़ी के सम्भोग से हुआ था. कथा के अनुसार, किसी काल में विष्णु जी लक्ष्मी को कुछ बता रहे थे लेकिन उस समय उनका ध्यान श्वेतरंग के उच्चैश्रवा घोड़े पर था. लक्ष्मी उच्चैश्रवा घोड़े पर मोहित हो रही थी और मन ही मन कामभावना से उसको देख कर आह, आह कर रहीं थी. यह देख कर विष्णु जी ने लक्ष्मी के मन को पढ़ लिया और क्रोधित होकर श्राप दे दिया ” हे मूढ़ औरत! जा मर्त्यलोक में घोड़ी बन जा.” लक्ष्मी जी तत्काल वैकुण्ठ छोड़ कर घोड़ी बन गईं. यह घोड़ी कमार्द्र हो समुद्र तट पर घोड़े की खोज करने लगी. यह देख कर देवता चिंतित हो गये कि लक्ष्मी रूप घोड़ी का कहीं लौकिक घोड़े से सम्भोग हो गया तो देव लोक नष्ट हो जायेगा. सभी देवता विष्णु जी के पास गये और उनसे अपनी चिंता व्यक्त की और कहा कि आप को भी घोडा बन कर जाना होगा अन्यथा पतन हो जायेगा. विष्णु जी आकर्षक स्वेत घोडा बन कर समुद्र तट पर घुमने लगे. घोड़ी ने जब इस घोड़े को देखा तो वह इस पर ही असक्त हो गई. दोनों घोड़ा-घोड़ी ने समुद्र तट पर सम्भोग किया जिससे हैहेय वंशी राजा पैदा हुए.
इस कथा में इन्सेस्ट सन्दर्भ भी है क्योकि उच्चैश्रवा लक्ष्मी के साथ ही समुद्र से उत्पन्न हुआ था. उच्चैश्रवा उनका भाई है. भाई को देख कर उससे सम्भोग की कामना इन्सेस्ट (कौटुम्बिक व्यभिचार) ही है. हैहेयवंशी अनेक राजा हुए. सहस्रार्जुन कोई पहला हैहेय वंशी राजा नहीं था. हलांकि इसके असली माता पिता मनुष्य ही थे. यह एक राजा कृतवीर्य (पिता) और रानी पद्मिनी (इक्ष्वकुवंशी राजा हरिशचंद्र की पुत्री) की सन्तान था. सहस्रार्जुन की राजधानी माहिष्मति थी. माहिष्मति में उसने रावण के अलावा नागों के राजा कार्कोटक नाग को भी हराकर बंदी बनाया था.
सहस्रार्जुन ने अपने साम्राज्य और क्षत्रियों के वर्चस्व के लिए शक्तिशाली ब्राह्मणों की हत्या करना प्रारम्भ कर दिया था. जब उसने महर्षि जमदग्नि को कामधेनु गाय न देने पर अनेक शिष्यों सहित उनकी हत्या कर दी और आश्रम उजाड़ दिया, तब भृगुवंशी शैव आचार्य परशुराम ने कार्तवीर्य अर्जुन के 995 पुत्र मार डाले और उसका भी वध किया. पुराण कथा के अनुसार पराशुराम का हैहयवंशी राजाओं से लगभग 36 बार युद्ध हुआ था जिसमे हैहेयवंशी राजा मारे गये थे. हैहेय वंश धीरे धीरे खत्म हो गया था. इस घटना के बाद ही परशुराम ने संकल्प पूर्वक धरती के सभीअधर्मी क्षत्रियों का २१ बार सम्हार प्रारम्भ किया. ऐसा बताया जाता है कि उन्होंने उनके रक्त से तालाब भर दिया था और उस तालाब के तट पर पितरों का रक्त से तर्पण किया था.

