Spread the love

वैष्णव धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है. एकादशी तिथि वैष्णवों के प्रमुख देवता विष्णु को समर्पित है. वैष्णवों का मानना है कि इस दिन व्रत के साथ पूजा करने से श्रीहरि और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है. यह तिथि मूलभूत रूप से ज्योतिषीय सन्दर्भ रखती है. वर्ष के बारह महीने का शासक बारह आदित्यों को माना गया है जो विष्णु रूप है. हर महीने की एकादशी विशेष ज्योतिष प्रभाव रखती है और यह वैष्णवों को समर्पित है. माघ का महीना पवित्र और पावन होता है, इस मास में व्रत और तप का बड़ा ही महत्व है. इस माघ माह में कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को षट्तिला कहते हैं. सूर्य के मकरगत होने के कारण इस माह में तिल का महत्व है. मकरसंक्रांति, सकट चतुर्थी,षट्तिला एकादशी सभी तिल केन्द्रित हैं. हर एकादशी में किसी अन्न, फल, फुल की विशेषता बताई जाती है क्योंकि वो अन्न, फल, वृक्ष इत्यादि उस माह, राशि, नक्षत्र विशेष से सम्बन्धित होते हैं. वैष्णव सम्प्रदाय के अनुसार षट्तिला एकादशी के दिन वैष्णवों को भगवान विष्णु के निमित्त व्रत करने चाहिए. व्रत करने वालों को गंध, पुष्प, धूप दीप, ताम्बूल सहित विष्णु भगवान की षोड्षोपचार से पूजन करना चाहिए. उड़द और तिल मिश्रित खिचड़ी बनाकर भगवान को भोग लगाना चाहिए.

षटतिला एकादशी मुहूर्त –

पंचांग के अनुसार, माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 5 फरवरी को शाम 5.24 बजे से शुरू होगी. यह 6 फरवरी को दोपहर 4.07 बजे खत्म होगी. उदयातिथि के अनुसार, षटतिला एकादशी 6 फरवरी 2024 को मनाई जाएगी. षटतिला एकादशी के दिन सुबह 8.50 बजे तक व्याघात योग रहेगा. फिर हर्ष योग 7 फरवरी को सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक है। ज्येष्ठ नक्षत्र सुबह 7.35 बजे तक है.
षटतिला एकादशी का व्रत पारण 7 फरवरी 2024 को सुबह 07.06 मिनट से सुबह 09.18 मिनट तक किया जाएगा.

इस व्रत में तिल का छ: रूप में दान करना उत्तम फलदायी होता है. जो व्रती जितने रूपों में तिल का दान करता है उसे उतने हज़ार वर्ष स्वर्ग में स्थान प्राप्त होता है. ऋषिवर ने जिन 6 प्रकार के तिल दान की बात कही है वह इस प्रकार हैं 1. तिल मिश्रित जल से स्नान 2. तिल का उबटन 3. तिल का तिलक 4. तिल मिश्रित जल का सेवन 5. तिल का भोजन 6. तिल से हवन. इन चीजों का स्वयं भी प्रयोग करें और किसी श्रेष्ठ ब्राह्मण को बुलाकर उन्हें भी इन चीज़ों का दान दें.

षटतिला एकादशी कथा-

नारद मुनि त्रिलोक भ्रमण करते हुए भगवान विष्णु के धाम वैकुण्ठ पहुंचे. वहां पहुंच कर उन्होंने वैकुण्ठ पति को प्रणाम करके उनसे अपनी जिज्ञास व्यक्त करते हुए प्रश्न किया कि प्रभु षट्तिला एकादशी की क्या कथा है और इस एकादशी को करने से कैसा पुण्य मिलता है. देवर्षि द्वारा विनित भाव से इस प्रकार प्रश्न किये जाने पर लक्ष्मीपति भगवान विष्णु ने कहा प्राचीन काल में पृथ्वी पर एक ब्राह्मणी रहती थी. ब्राह्मणी मुझमें बहुत ही श्रद्धा एवं भक्ति रखती थी. यह स्त्री मेरे निमित्त सभी व्रत रखती थी. एक बार इसने एक महीने तक व्रत रखकर मेरी आराधना की. व्रत के प्रभाव से स्त्री का शरीर तो शुद्ध तो हो गया परंतु यह स्त्री कभी ब्राह्मण एवं देवताओं के निमित्त अन्न दान नहीं करती थी अत: मैंने सोचा कि यह स्त्री बैकुण्ड में रहकर भी अतृप्त रहेगी अत: मैं स्वयं एक दिन भिक्षा लेने पहुंच गया.

स्त्री से जब मैंने भिक्षा की याचना की तब उसने एक मिट्टी का पिण्ड उठाकर मेरे हाथों पर रख दिया. मैं वह पिण्ड लेकर अपने धाम लौट आया. कुछ दिनों पश्चात वह स्त्री भी देह त्याग कर मेरे लोक में आ गयी. यहां उसे एक कुटिया और आम का पेड़ मिला. खाली कुटिया को देखकर वह स्त्री घबराकर मेरे समीप आई और बोली की मैं तो धर्मपरायण हूं फिर मुझे खाली कुटिया क्यों मिली है. तब मैंने उसे बताया कि यह अन्नदान नहीं करने तथा मुझे मिट्टी का पिण्ड देने से हुआ है.

मैंने फिर उस स्त्री से बताया कि जब देव कन्याएं आपसे मिलने आएं तब आप अपना द्वार तभी खोलना जब वे आपको षट्तिला एकादशी के व्रत का विधान बताएं. स्त्री ने ऐसा ही किया और जिन विधियों को देवकन्या ने कहा था उस विधि से ब्रह्मणी ने षट्तिला एकादशी का व्रत किया. व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया अन्न धन से भर गयी. इसलिए हे नारद इस बात को सत्य मानों कि जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है और तिल एवं अन्न दान करता है उसे मुक्ति और वैभव की प्राप्ति होती है.