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मृत्यंजय कल्प में वर्णित है यह औषधि. सतावर अथवा शतावर लिलिएसी कुल का एक औषधीय गुणों वाला पौधा है. इसे ‘शतावर’, ‘शतावरी’, ‘सतावरी’, ‘सतमूल’ और ‘सतमूली’ के नाम से भी जाना जाता है. यह भारत, श्री लंका तथा पूरे हिमालयी क्षेत्र में उगता है. इसका पौधा अनेक शाखाओं से युक्त काँटेदार लता के रूप में एक मीटर से दो मीटर तक लम्बा होता है. शतावरी एक ऐसी जड़ी बूटी है जिसमें एंटीऑक्सीडेंट और एंटी वायरल गुण पाए जाते हैं. यह महिलाओं के लिए फायदेमंद होते हैं. शतावरी मृत्यु को जीतने वाली औषधि बन जाती है जब यह निश्चित परिमाण में गाय के दूध और शहद के साथ सेवन की जाती है. इसका कम्बीनेशन नीचे दिया जा रहा है –

शुद्ध मधु ( छोटी मधुमक्खी का’)
गाय का शुद्ध देशी घी (देसी गाय का)
44 ग्राम शतावरी मिलाकर (लगभग चार तोला)
प्रति दिन सुबह शाम सेवन करें.

इसके प्रति दिन सेवन से आयु बढ़ जाएगी. शास्त्र दावा करते हैं कि बचपन से लेने वाले को पूर्ण आयु 120 वर्ष प्राप्त होती है।