वैदिक ज्योतिष में शतभिषा नक्षत्र को शुभ नक्षत्र माना गया है. यह कुम्भ राशि का मध्य है जहाँ राहु मूलत्रिकोण का माना जाता है. कुम्भ राशि राहु की मूलत्रिकोण राशि है और शनि इस राशि का स्वामी है. इस नक्षत्र का चतुर्थ पाद अत्यंत शुभ कहा गया है.
कुम्भ राशि में शतभिष नक्षत्र के चारो पाद स्थित हैं जिसका विस्तार 6:40:00 से से 20:00:00 अंश तक है। यह एक चर संज्ञक, उर्ध्वमुख नक्षत्र है। यह शुभ, तामसिक, नपुसंक नक्षत्र माना जाता है। इसकी जाति क्रूर शूद्र, योनि अश्व, योनि वैर महिष, गण राक्षस, नाड़ी आदि है। यह दक्षिण दिशा का स्वामी है।
नक्षत्र स्वामी : राहु
नक्षत्र देव : वरुण
राशि स्वामी : शनि
पुरषार्थ : धर्म
विंशोत्तरी दशा स्वामी : राहु
चरण अक्षर : गो, सा, सी, सू
वर्ण : शूद्र ( कसाई )
गण : राक्षस
योनि : अश्व
नाड़ी : आदि
पक्षी : रेवन
तत्व : आकाश
वृक्ष : कदम्ब
शतभिषा नक्षत्र आकाशमण्डल में मौजूद सौ तारों से बनी हुई आकृति है जिसे शततारिका भी कहते हैं। इस नक्षत्र मे एक महत्वपूर्ण तारा गामा-एक्वेरी (γ Aquarii) है जिसकी पहचान शतभिषा के रूप में की गई है। यह द्वितारा है जिसमे γ Aqr Aa तथा γ Aqr Ab हैं, इन दो तारों में γ Aqr Aa को ही शतभिषा कहा गया है। शतभिषा का दो अर्थ है- पहला अर्थ शत+भिषज अर्थात सौ वैद्य तथा दूसरा अर्थ शततारिका से है क्योंकि कुछ विद्वानों ने इसके सौ तारे माने हैं। इस नक्षत्र का शतभिषा नाम का सम्बन्ध औषधियों और आरोग्य से है अर्थात इस नक्षत्र में किसी तरह के रोग निवारण की शक्ति है। शततारिका नाम के अनुसार यह नक्षत्र कृत्तिका की तरह ही अनेक तारो से बना है, आधुनिक एस्ट्रोनोमी में इसको बायर कहते हैं। उदाहरण के लिए ओरियन एक १० तारों समूह है जिसे बायर कहते हैं जिसमे सबसे चमकीला तारा आर्द्रा है और सबसे कम चमकीला तारा कप्पा ओरियानिस है। इस नक्षत्र में राहु अपने सर्वोत्तम स्वरूप में स्थित होता है। इस नक्षत्र का प्रतीक चिन्ह एक खाली वृत्त है जो जेन के प्रतीक से मिलता जुलता है, इसका अर्थ शततारों के चक्र से भी लिया जाता है जो कदम्ब के पुष्प जैसा दिखता है। वृत्त या शून्य इसके आध्यात्मिक स्वरूप की तरफ इंगित करता है। इस नक्षत्र की शक्ति जातक को सहज ही अमूर्तन में ले जाने में सक्षम है। इस नक्षत्र का दूसरा प्रतीक शतपुष्पों का गुच्छा भी है। इस नक्षत्र के स्वामी राहु हैं और इस नक्षत्र के देवता वरुण हैं। वरुण देव सबसे महत्वपूर्ण वैदिक देवताओं में एक हैं जिनको जल पर स्वामित्व प्राप्त है। वरुण को चिकित्सा शास्त्र का देवता भी माना गया है।
शतभिषा नक्षत्र के जातकों के जीवन पर राहु व शनि देव का प्रत्यक्ष प्रभाव देखा जा सकता है। यह एक वायवी नक्षत्र है। इस नक्षत्र के जातकों में स्थिरता की कमी होती है और ये स्थायित्व के लिए संघर्ष करते दिखते हैं। यदि इस नक्षत्र की ऊर्जा का सही उपयोग किया जाय तो वज्र की तरह दृढ़ता और स्थिरता की प्राप्ति होती है जो आध्यात्म के लिए अति आवश्यक है। यह रहस्य विद्या, योग, दर्शन और मनोविज्ञान का एक अद्भुत नक्षत्र है।
शतभिषा जातक आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में छद्म युद्ध करने में सिद्धहस्त होता है। जातक परिस्थिति मे देर से अभ्यस्त होने के कारण सुरक्षित, गुप्त, दूसरो की पहुँच से बाहर, वैराग्य जनक, अंतर्मुखी, विलक्षण, समस्याओ को सुलझाने वाला, झूठ का पर्दाफाश करने वाला, वास्तु का अंदरूनी जानकर होता है। शनि का यदि प्रभाव गहरा हो तो ये जातक जीवन के प्रारंभिक काल में आलसी, वैरागी, मिजाजी, निराशावादी और दुराग्रही होता है। लेकिन यदि इन्हें सक्रिय बनने का माध्यम मिल जाये तो राहु सक्रिय हो जाता है और ये तूफान मचा देने वाले होते हैं। शतभिषा की जाति कसाई है, यह गुण भी इन जातकों में मिलता है। किसी काम को ये बेरहम होकर सम्पादित करते हैं। ये जातक अद्भुत उर्जा से परिपूर्ण होते हैं, यदि एक बार सक्रिय हुए तो फिर ये अन्तर्प्रज्ञा के अनुसार तेजी से आगे बढ़ते हैं और कुछ विशेष उपलब्धि हासिल करते हैं। इनका स्वभाव स्त्रैण होता है इसलिए भावुकता पर नियंत्रण करने वाले होते हैं। जातक धनवान, सुख सुविधाओं के साधनों से संपन्न होते हैं। ये जातक परस्त्रीगामी, अपने नियमो के पक्के, घात करने में निपुण, उद्यमी और ज्यादातर विदेश में रहने वाले होते हैं। इस नक्षत्र में भैषज शक्ति होती है इसलिए यह जातकों में भी प्रकट होती है। यदि लग्न कुंडली में राहु की स्थिति अच्छी हो तो जातक भविष्य को जानने वाला, सदाचारी, साधू संतों का सम्मान करने वाला और आध्यात्मिक प्रवृत्ति का होता है।
सबसे प्रभावशाली शतभिषा पाद 4- शतभिषा पाद-चार शुभ पुष्कर नवांश है और इसका 18:23 पुष्कर अंश है. यदपि कि यह षष्टम नवांश में पड़ता है. यदि चन्द्रमा धनु नवांश में हो और बृहस्पति अपने नवांश में हो तो जातक दीर्घायु होता है.

