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जन्म कुंडली में स्थित अच्छे या बुरे ग्रहों की स्थिति या उनके द्वारा निर्मित योगों का जातक सम्पूर्ण जीवन भर गहरा प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति की कुंडली में कुछ ग्रह सकारात्मक प्रभाव देकर उसे श्रेष्ठ जीवन प्रदान करने वाले होते हैं तो कुछ ग्रह नकारात्मक प्रभाव देकर परेशानियों में डालने वाले होते हैं।  कुछ ग्रह ऐसे भी होते हैं जो बेहद ही शुभ योग का  निर्माण करते हैं और जातक को महापुरुष कोटि तक उठा देते हैं। कुंडली में किसी ग्रह की उच्च स्थिति, मूलत्रिकोण और स्वगृही या मित्र राशि में स्थिति जातक के जीवन को निर्मित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, ऐसा ही एक शुभ योग है शश योग है । शश योग मुख्यत: कुंडली में शनि ग्रह के केंद्र में अपनी उच्च राशि या स्वगृही या मूलत्रिकोण राशि में स्थित होने के कारण बनती है।

शश योग उन महत्वपूर्ण राजयोगों में माना गया है जिसका किसी भी जन्म लग्न कुंडली में होने से पंच महापुरुष योग बनता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार  रूचक योग, भद्र योग, हंस योग, मालव्य योग एवं शश योग पंच महापुरुष योग के नाम से प्रसिद्ध हैं। शनि से निर्मित शश योग इन पंच महापुरुष योगों में से एक महत्वपूर्ण राजयोग प्रदान करने वाला योग है। जातक की कुंडली में यह योग अत्यंत शुभ फलकारी होता है। यदि किसी कुंडली में शनि लग्न से अथवा चंद्रमा से केंद्र के स्थानों में तुला, मकर या कुंभ राशि में स्थित हो तो ऐसी कुंडली में शश योग का निर्माण होता है। महर्षि पराशर ने शश योग पुरुष का लक्षण भी बतलाया है, जिसकी कुंडली में केंद्र में शनि तुला, मकर या कुम्भ में अपने अंशो में हो तो जातक शरीर, दांत, मुख से सामान्य आकार वाला, शूर, कमर पतली, बीच में रेशमी, सुंदर जंघा, बुद्धिमान, शत्रुओं का कमियों को जानने वाला, वन पर्वत या दुर्ग में रहने वाला, सेना का स्वामी, सामान्यतया ऊँचे दांत वाला, धातुवादी, स्त्री में अनुरक्त, एवं दूसरे के धन से यक्त लक्षण वाला होता है।  इसके हाथ पैर में माला, वीणा, मृदंग या शस्त्र के समान रेखा के चिन्ह होते हैं। यह पृथ्वी के अधिकतर भागों पर 70 वर्ष तक शासन करने के उपरांत देव लोक चला जाता है।