
हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व है. हर साल 4 नवरात्रि होती है जो माघ, चैत्र, आषाढ,अश्विन महीने में पडती हैं . चैत्र और शारदीय नवरात्र को प्रमुख माना गया है जबकि दो गुप्त नवरात्रि गौड़ मानी गई हैं. अश्विन मास के शुक्ल पक्ष में शारदीय नवरात्र मनाया जाता है, यह शरद ऋतू का प्रारम्भ है. इस दौरान देवी की उपासना का विशेष महत्व होता है. शारदीय नवरात्रि को बोधनाख्य कहते हैं क्योंकि इस नवरात्री में शक्ति का जागरण या बोधन होता है और यह देवताओं के बोधन या जागरण के पूर्व की नवरात्रि है इसलिए भी इसे बोधनाख्य कहा जाता है. शक्ति आराधना के इस महापर्व में 9 दिन तक देवी के अलग-अलग रूपों की आराधना की जाती है. पंचांग के अनुसार साल शारदीय नवरात्र पर्व 15 अक्टूबर से शुरू हो रहे हैं, जो 24 अक्टूबर तक चलेंगे. इसमें पंडों ने वारानुसार दुर्गा की सवारी तय कर दी है और शुभ अशुभ बना दिया है. बताते हैं कि हाथी पर आएँगी, मुर्गे पर जायेंगी, पंडों की इन मूर्खतापूर्ण बातों पर ध्यान न दें.
शारदीय नवरात्रि में देवी दुर्गा की उपासना करने से समस्त परेशानियों और दुखों का अंत हो जाता है और भक्तों की समस्त कामनाएं पूर्ण होती हैं, कहा गया है –
शरत्कालीनपूजां ये कर्तारो भक्तिभाविता:
तेषां दारासुतान्भोगान वित्तमारोग्यमुन्नितम.
शारदीय नवरात्रि का विधिपूर्वक पूजन से पत्नी, पुत्र, भोग, धन, आरोग्य इन सबकी प्राप्ति होती है, उपासक की उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है और सदा स्वर्ग लोक में रहता है अर्थात सदा स्वर्ग की वस्तुएं और भोग प्राप्त करता है. यदि इसी संसार में उपरोक्त वस्तुओं का सुख न मिले तो मनुष्य के लिए वही नरक है. यदि आरोग्य न हो, धन न हो, तो जीवन क्या नरक तुल्य नहीं होता?
माता की उपासना और पूजा स्वछन्द भाव से करना चाहिए. नवरात्रि में रात्रि जागरण कर देवी की महिमा, उनके भजन, कीर्तन करना चाहिए अथवा रात्रि जागरण कर सिर्फ पूजन और जप ही करना चाहिए. नौ दिन जीवन को संगीतमय रखते हुए प्रसन्नता पूर्व देवी की अराधना करें. जो परम्परा आपके यहाँ पहले से चली आ रही है उसी परम्परा से दुर्गा पूजन करें. देवी पूजन की परम्पराएँ चारों आम्नायों में अलग अलग है.
देवी पूजन की ये रात्रियाँ शास्त्रों में प्रसिद्ध हैं -कालरात्रि, महारात्रि, सिद्धरात्रि, घोर रात्रि, दारुण रात्रि, मोहरात्रि और वीररात्रि इत्यादि. इनमें कुछ रात्रियाँ विशेष रूप से विशेष साधनाओं के लिए प्रसिद्ध हैं. भाद्रपद की अष्टमी को मोहरात्रि कहा जाता है क्योंकि इस रात्रि में देवी ने चराचर जगत को मोह में डाल कर निद्रा में कर दिया था. भाद्रपद २०२३ की यह पूर्णिमा शुक्रवार को पड़ रही है इसलिए अत्यंत शुभ है क्योंकि शास्त्र इसे देवी पूजन की श्रेष्ठ तिथि बताते है “कुहूपूर्णेंदुशुक्रेषु”, लेकिन यह पूर्णिमा दिन में ही 15:26 पर खत्म हो जायेगी. अब ऐसे में पूर्णिमा की रात्रि में पूजन का सौभाग्य प्राप्त नहीं होगा इसलिए सुबह का पूजन महत्वपूर्ण है. भाद्रपद की षष्टि दुर्गा पूजन की उत्तम तिथि बताई गई है. अश्विन महीने में कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि देवी पूजन के लिए विशेष तिथि है. आप टीवी देखकर पूजन न करें, टीवी पर बैठे पंडे निहायत मूर्ख होते हैं और मूलभूत रूप से शनि का रूप हैं. गोदी मीडिया की तरह ही ये पंडेआसुरी प्रकृति के धूर्त हैं और जनता को पतित करने के उपाय बताते हैं. आप इसको यहाँ पढ़ कर समझें
नवरात्रि का मुहूर्त –
हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 14 अक्टूबर रात्रि 11 बजकर 24 मिनट से शुरू होगी और 16 अक्टूबर मध्य रात्रि 12 बजकर 32 मिनट पर समाप्त हो जाएगी. ऐसे में शारदीय नवरात्रि पर्व का शुभारंभ 15 अक्टूबर 2023, रविवार के दिन होगा. इसी प्रतिपदा तिथि में सूर्योदय के बाद किसी शुभ लग्न और मुहूर्त में घट स्थापना करें. बहुत परेशान होने की जरूरत नहीं हैं. यदि मुहूर्त बीत जाए तो किसी भी शुभलग्न में आप घट स्थापना कर सकते हैं, मुहूर्त में लग्न को ही प्रधानता है. शाक्त धर्म में पर्व का पूरा काल ही शुभ माना जाता है, उसमे कोई दोष नहीं होता.