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हिन्दू धर्म में शक्ति साधना विशेष रूप से अद्याशक्ति माँ दुर्गा की साधना के लिए नवरात्रि पर्व का विशेष महत्व है. नवरात्रि शक्ति साधना का पर्व है. इस दौरान साधक विभिन्न साधनो द्वारा माँ भगवती की विशेष पूजा सम्पादित करते हैं. देवी भागवत पुराण के अनुसार वर्ष में 4 बार नवरात्रि आती है जिसमे दो प्रमुख नवरात्रि है चैत्र मॉस की नवरात्रि और दूसरी शारदीय नवरात्रि. शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व है.

इस नवरात्रि के दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और पूजन करते हैं. इन नौ दिनों में देवी की अनुकम्पा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं. जो देवी भक्त साधना को नहीं जानते वो भी शुद्ध भावना से देवी की पूजा करके विशेष लाभ ले सकते हैं. देवी भावनागम्य है. इन नौ दिनों में सिर्फ रात्रि सूक्त द्वारा या सिर्फ ग्यारहवें अध्याय के पाठ से भी देवी की उपासना करने वाला देवी को प्रसन्न कर सकता है. किसी स्तोत्र के पाठ का भी अनुष्ठान लाभप्रद होता है. नवरात्रि में अष्टमी या नवमी के दिन कन्या-पूजन के साथ नवरात्रि व्रत का उद्यापन किया जाता है. नवरात्रि में दुर्गाशप्तशती का पाठ की परम्परा है, इस दिन सभी हिन्दू घरों में इसका पाठ किया जाता है. आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में शक्ति उपासना का महापर्व शारदीय नवरात्र ३ अक्टूबर गुरुवार को कलश स्थापना के साथ होगा. शारदीय नवरात्रि 03 अक्टूबर दिन गुरुवार से प्रारंभ हो रही है, जो 12 अक्टूबर 2024 को समाप्त होगी. इस दिन से घरों और पूजा पंडालों में दुर्गा सप्तशती का पाठ आरंभ हो जाएगा. नवरात्रि के प्रथम दिन हस्त नक्षत्र, ऐन्द्र योग व जयद योग में पूजन होगा. मां दुर्गा का आगमन इस बार पालकी पर और विदाई चरणायुध (मुर्गे) पर होगा. दुर्गा किस वहां पर सवार हो कर आएँगी ? इसका निर्णय वार के अनुसार किया जाता है.
शशि सूर्य गजरुढा शनिभौमै तुरंगमे।
गुरौशुक्रेच दोलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता॥ 
मंगलवार और शनिवार को नवरात्रि का आरंभ होता है तो मां दुर्गा की सवारी अश्‍व यानी घोड़ा मानी जाती है. यदि नवरात्रि गुरुवार और शुक्रवार को आरंभ होती है तो मां दुर्गा की सवारी डोली और पालकी मानी जाती है. यदि मां दुर्गा रविवार और सोमवार को आती हैं तो उनकी सवारी हाथी होती है। जो कि सबसे शुभ मानी जाती है. दुर्गा पालकी या डोली में सवार होकर धरती पर आती हैं तो इसे बहुत अच्छा संकेत नहीं माना जाता है.

नवरात्रि पूजा और कलश स्थापना मुहूर्त –

शारदीय नवरात्र आश्विन माह की प्रतिपदा तिथि 3 अक्तूबर दिन गुरुवार से अर्ध रात्रि 12 बजकर 18 मिनट पर शुरू हो रही है और चार अक्तूबर की रात 2 बजकर 58 मिनट तक रहेगी. इस बार कलश स्थापना का समय 3 अक्तूबर सुबह 6 बजकर 15 मिनट से 7 बजकर 22 मिनट तक रहेगा. इस तरह कलश स्थापना का समय कुल 1 घंटा 6 मिनट रहेगा. इसके अलावा कलश स्थापना अभिजीत मुहूर्त में भी की जा सकती है. अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 33 मिनट तक रहेगा.

कलियुग में शक्ति की देवी महिषासुर मर्दिनी मां दुर्गा की पूजा करने पर वे सभी को सुख-समृद्धि, ज्ञान और शक्ति प्रदान करती हैं.