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शनि देव का यह मंदिर राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के कपासन के आली गांव में स्थित है, जिसे शनि महाराज के नाम से भी जाना जाता है. यह सांवलिया सेठ प्राकट्य स्थल मंदिर, भादसोड़ा चौराहा से 8 किलोमीटर दूर है. इसे चमत्कारी मंदिर भी कहा जाता है. 

मन्दिर की कहानी के अनुसार शनि देव की यह मूर्ति मेवाड़ के महाराणा स्व. श्री उदयसिंह जी अपने हाथी की ओदी पर रखकर उदयपुर की ओर ले जा रहे थे कि अकस्मात शनि देव की मूर्ति हाथी की ओदी से गायब हो गयी. राजा के सेवकों ने बहुत खोजा लेकिन काफी ढूढ़ने पर भी नहीं मिली. सभी मन्दिरों की रहस्य कथा ऐसी ही है.

काफी वर्षो में बाद यहाँ ऊँचनार खुर्द निवासी जोतमल जाट के खेत में बेर की झाड़ी के निचे शनिदेव झांकते नजर आये. शनि देव की मूर्ति का कुछ हिस्सा बाहर प्रकट हुआ दिखा, इसे देख जहाँ पूजा अर्चना, सेवा शुरू हो गई. इन्हें तेल प्रसाद बालभोग आरम्भ किया गया उस समय यह स्थान काला भेरू के नाम से जाना जाता था.



उसी समय वहाँ एक बाबा पधारे और लोगों को शनि का सिर पकड़ कर खींचने के लिए कहा. उनके कहे अनुसार मूर्ति को ऊपर की ओर खिंचा तो उसका अधिकांश हिस्सा बाहर निकल आया था और कुछ अंदर ही रह गया. इसके बाद वह संत महात्मा वहाँ से कुछ दुरी पर जाकर गायब हो गये. ऐसा विश्वास हो गया कि यह शनि खुद थे. लोगो ने इसे मूर्ति का चमत्कार माना इसके बाद से ही यह स्थान श्री शनि महाराज के नाम से प्रसिद्ध हो गया.

यहाँ कई चमत्कार हुए है जिसमे एक प्राकृतिक तेल कुंड भी प्रकट हुआ जो आज भी है. यहाँ शनि देव पर चढ़ाया जाने वाल तेल इस प्राकृतिक तेल कुंड में ही इक्कठ्ठा होता है इस तेल का उपयोग चर्म रोगों के लिए ही होता है.
कई बार इस तेल कुंड के तेल को व्यवसायिक उपयोग हेतु निकला गया तो इसमें से तेल के गुण ही समाप्त हो गए वो मात्र तरल पानी हो गया. ऐसे कई प्रयास हुए लेकिन सफल नहीं हो पाए. यह भी शनिदेव का ही चमत्कार माना जाता है.

इस स्थान की पूजा अर्चना सर्वप्रथम स्व. श्री रामगिरि जी रेबारी ने प्रारम्भ की. श्री रामगिरी जी रेबारी ने मुख्य पुजारी के रूप में शनि देव की काफी वर्षो तक सेवा पूजा की. उनका देवलोक गमन होने के बाद उनकी समाधी स्थल के लिए नींव खोदने पर प्राकृतिक तेल निकला जिसको कुंड बनाकर रखा गया और पास में ही समाधी स्थल बनाया गया.

यहाँ प्रसादी में रूप में चुरमा-बाटी बनता है तथा इसका बालभोग लगने से पहले तक चींटिया भी शक्कर निर्मित चुरमे को खाना तो दूर छूती तक भी नहीं है. पिछले दिनों यहाँ चढ़ावा 48 लाख सिर्फ दान पेटी में से निकला था. जो मन्दिर के ट्रस्ट या ऑफिस में दिया जाता है वो भी एक-दो करोड़ रहता है.