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पीपल का पेड़ भगवान का विग्रह है अर्थात भगवान की विभूति है. भगवद्गीता में भगवान कृष्ण से जब अर्जुन ने पूछा कि हे भगवान आपकी किन किन रूपों में पूजा करनी चाहिए ? तब भगवान ने कहा कि हे अर्जुन मैं वृक्षों में अश्वत्थ हूँ. पीपल भगवान का विग्रह अर्थात साक्षात् मूर्ति है. पीपल पेड़ पर सृष्टि के प्रारम्भ से ही मृतक के लिए घंट बाँधने की परम्परा है. इसी घंट में तेरहवीं तक हिन्दू पितरों को जल प्रदान करता है. पेड़ की पूजा करने से साधक को कई तरह के कष्टों से छुटकारा मिल सकता है. जिस तरह हिन्दू धर्म में गौ, ब्राह्मण व देवता पूजनीय है, उसी प्रकार वृक्षों में पीपल पूजनीय है.
मूले ब्रह्मा त्वचा विष्णु: शाखा शंकरमेव च।
पत्रे पत्रे सर्वदेवाः वृक्ष राज्ञो नमोस्तुते।
पीपल की जड़ में भगवान विष्णु, मध्य में शिव तथा अग्र भाग में ब्रह्मा जी और पत्तों में सभी देवता निवास करते हैं, अतः पीपल को प्रणाम कर पूजा-अर्चना करने से समस्त देवता प्रसन्न हो जाते हैं. इस वृक्ष को ऋषियों का आशीर्वाद प्राप्त है. पिप्पलाद ऋषि और शनि का का गहरा सम्बन्ध इस दिव्य पेड़ से है. पीपल की पूजा से ग्रह-जनित कष्ट विशेषकर शनि दोष का निवारण होता है. अगर कोई व्यक्ति शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या महादशा या फिर अर्न्तदशा के विपरीत प्रभाव से ग्रसित अर्थात् शनि से पीड़ित है तो आठ शनिवार या आठ शनीचरी अमावस्या को पीपल की उपासना कर उसके नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाऐं तो शीघ्र शनि कष्ट समाप्त होता है. शनिवार को जब अमावस्या पड़े तो पीपल वृक्ष के पूजन और आठ परिक्रमा करने से तथा काले तिल से युक्त सरसों तेल के दीपक को जलाकर छायादान से शनि की पीड़ा का शमन होता है. शिवपुराण में बताया गया है कि पीपल वृक्ष के नीचे शनिवार के दिन पूजा करने से संकटों से छुटकारा मिलता है.

आज शनि जयंती है और अमावस्या है इसलिए आज पीपल की पूजा अत्यंत लाभकारी है. आज सुबह से लेकर सायं 7 बजे तक के बीच पीपल की पूजा करनी चाहिए और कमसे कम ग्यारह परिक्रमा करनी चाहिए. ज्येष्ठ अमावस्या है और इसी अमावस्या के दिन शनि का जन्म माना जाता है, शनि वृश्चिक राशि बहुत शक्तिशाली होता है. यदि यह 6-8-12 या मारक भाव में हो तो अपनी दशा अन्तर्दशा में अत्यंत कष्टकारी और मारक हो सकता है. ऐसे में पीपल की पूजा अत्यंत लाभकारी है.