उत्तर-प्रदेश के जनपद बलरामपुर (नेपाल की सीमा से मिला हुआ) की तहसील तुलसीपुर नगर से 1.5 कि॰मी॰ की दूरी पर सिरिया नाले के पूर्वी तट पर स्थित सुप्रसिद्ध सिद्ध शक्तिपीठ मां पाटेश्वरी का मंदिर स्थित हैं. सम्प्रदाय द्वारा प्रचारित किया जाता है कि सती का बायां त्रिक पाटन यहां गिरा था इसलिए यह स्थान देवी पाटन के नाम से प्रसिद्ध है. देवी पाटन को पतालेश्वरी शक्ति पीठ भी कहा जाता है. देवीपाटन देशभर में फैले 108 शक्तिपीठों में मुख्य स्थान रखता है. यह 51 शक्तिपीठों के अंतर्गत नहीं आता. पाटन देवी के मंदिर की स्थापना गोरक्षनाथ ने की थी. १८७४ का एक शिलालेख यहाँ है जिसपर यह श्लोक उत्कीर्ण है –
महादेव समाज्ञप्त: सती स्कन्ध विभूषितम्।
गोरक्षनाथो योगीन्द्रस्तेन पाटेश्वरीमठम ।
श्लोक में देवी गोरक्षनाथ द्वारा उपासित बताई गई हैं. यह मन्दिर गोरखमठ के अंतर्गत हैं और मठ द्वारा ही यहाँ का सारा प्रबंध किया जाता है.
माना जाता है कि पाटन देवी के वर्तमान मंदिर का राजा विक्रमादित्य ने जीर्णोद्धार करवाया था. इस शक्ति पीठ का जिक्र पुराणों में आया है.
स्कन्दपुराण महेश्वर खंड में यहाँ पट्ट गिरने का जिक्र है –
पटेन सहित: स्कन्ध: पतात यत्र भूतले ।
तत्र पाटेश्वरी नाम्ना ख्यातिमाप्ता महेश्वरी ।।

एक अन्य मान्यता के अनुसार देवी सती की दाहिनी जांघ यहां गिरी थी . पाटन देवी मंदिर देवी भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है. हलांकि विंध्यांचल की प्रसिद्धि के कारण पूर्वांचल में भी ज्यादातर हिन्दू इस मन्दिर के बारे में नहीं जानते. यहाँ गोरखपुर के आसपास के जिलों से हिन्दू परिवार बच्चों का मुंडन करवाने आते हैं. नवरात्र में मंदिर में दर्शन के लिए पड़ोसी देश नेपाल से भी बड़ी तादात में भक्त आते हैं.

मंदिर में एक प्रसिद्ध तालाब भी है जिसके बारे में माना जाता है कि इसे कर्ण ने बनवाया था. इस तालाब का नाम सूर्य कुंड है. कहा जाता है कि कर्ण ने अपने पिता भगवान सूर्य को श्रद्धा अर्पित करने के लिए इस तालाब का निर्माण किया था. कर्ण ने यहीं परशुराम से शस्त्र विद्या भी प्राप्त की थी. सूर्यकुंड अखंड ज्योति इसकी स्थापना के समय से ही जल रही है. इसमें मां दुर्गा की शक्तियों का वास माना जाता है.
देवी पाटन की देवी का दूसरा नाम पातालेश्वरी देवी के रूप में प्राप्त होता है. कहा जाता है कि माता सीता लोकापवाद से खिन्न होकर यहाँ धरती-माता की गोद में बैठकर पाताल में समा गयी थीं. इसी पातालगामी सुरंग के ऊपर देवी पाटन पातालेश्वरी देवी का मंदिर बना है. मन्दिर अंत:कक्ष में चाँदी जटित एक गोल चबूतरा है जिसमे देवी की पूजा की जाती है. चबूतरे पर कपड़ा बिछा रहता है, उसके ऊपर ताम्र क्षत्र है जिस पर शप्तशती के श्लोक उत्कीर्ण हैं.

चैत्र-मास के नवरात्रि-पर्व पर पीर रतन नाथ बाबा की सवारी नेपाल के जिला दांग चौधरा नामक स्थान से पदयात्रा करके मठ के महंतों द्वारा हर वर्ष पंचमी के दिन माँ पाटेश्वरी के दरबार पाटन में लायी जाती है. यह रतननाथ बाबा ने महायोगी गुरु गोरखनाथ से दीक्षा लेकर सिद्धि पाई थी और एक सिद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए थे.
देवी पाटन के निकट कुछ धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थल भी शामिल है जिनमें से सूर्यकुण्ड, करबान बाग, सिरिया नाला, धौर सिरी, भैरव मंदिर आदि प्रमुख है. यह पुण्य स्थल अपनी-अपनी जगह अहम भूमिका के लिए विख्यात हैं.

