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पौराणिक कथा के अनुसार केतु एक रूप में स्वरभानु नामक असुर के सिर का धड़ है. यह सिर समुद्र मन्थन के समय मोहिनी अवतार रूपी भगवान विष्णु ने काट दिया था. यह एक छाया ग्रह है इसे ध्वज या शिखी भी कहते हैं. क्योकि यह धड़ है इसलिए इसमें बुद्धि नहीं होती, यह बगैर सोचे कुछ भी कर डालता है. माना जाता है कि इसका मानव जीवन एवं पूरी सृष्टि पर अत्यधिक प्रभाव रहता है. कुछ मनुष्यों के लिये ये ग्रह ख्याति पाने में अत्यंत सहायक रहता है. केतु को प्रायः सिर पर कोई रत्न या तारा लिये हुए दिखाया जाता है, जिससे रहस्यमयी प्रकाश निकल रहा होता है.
पलाश पुष्प संकाशं, तारका ग्रह मस्तकं। रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तम के तुम प्रण माम्य्हम।
भारतीय ज्योतिष के अनुसार राहु और केतु, सूर्य एवं चंद्र के परिक्रमा पथों के आपस में काटने के दो बिन्दुओं के द्योतक हैं जो पृथ्वी के सापेक्ष एक दुसरे के उलटी दिशा में (१८० डिग्री पर) स्थित रहते हैं. ये परस्पर छः राशियों के अंतर पर स्थित रहते हैं . पराशर ऋषि के अनुसार ये ग्रह कोई खगोलीय पिंड नहीं हैं, इसलिए इन्हें छाया ग्रह कहा जाता है. केतू की कोई दृष्टि नहीं होती. सूर्य और चंद्र के ब्रह्मांड में अपने-अपने पथ पर चलने के कारण ही राहु और केतु की स्थिति भी साथ-साथ बदलती रहती है. केतु भारतीय ज्योतिष में उतरती लूनर नोड को दिया गया नाम है.  पूर्णिमा के समय यदि चाँद केतु (अथवा राहू) बिंदु पर भी रहे तो पृथ्वी की छाया पड़ने से चंद्र ग्रहण लगता है, क्योंकि पूर्णिमा के समय चंद्रमा और सूर्य एक दूसरे के विपरीत दिशा में होते हैं। ये तथ्य इस कथा का जन्मदाता बना कि “वक्र चंद्रमा ग्रसे ना राहू”. अंग्रेज़ी या यूरोपीय विज्ञान में राहू एवं केतु को क्रमशः उत्तरी एवं दक्षिणी लूनर नोड कहते हैं.

हिन्दू ज्योतिष में केतु अच्छी व बुरी आध्यात्मिकता एवं पराप्राकृतिक प्रभावों का कार्मिक संग्रह का द्योतक है. केतु विष्णु के मत्स्य अवतार से संबंधित है। केतु भावना भौतिकीकरण के शोधन के आध्यात्मिक प्रक्रिया का प्रतीक है और हानिकर और लाभदायक, दोनों ही ओर माना जाता है, क्योंकि ये जहां एक ओर दुःख एवं हानि देता है, वहीं दूसरी ओर एक व्यक्ति को देवता तक बना सकता है. यह व्यक्ति को आध्यात्मिकता की ओर मोड़ने के लिये भौतिक हानि तक करा सकता है. कुछ विद्वान् इसे तर्क, बुद्धि, ज्ञान, वैराग्य, कल्पना, अंतर्दृष्टि, मर्मज्ञता, विक्षोभ और अन्य मानसिक गुणों का कारक मानते है. माना जाता है कि केतु भक्त के परिवार को समृद्धि दिलाता है, सर्पदंश या अन्य रोगों के प्रभाव से हुए विष के प्रभाव से मुक्ति दिलाता है.

केतू को मारकेश का भी पद मिला है , किसी किसी के लिए ये मृत्यु देने वाला होता है. यह बड़े विस्फोटों और बड़े स्तर पर कत्लेआम का ग्रह भी माना जाता है क्योंकि इसकी प्रकृति मंगल की तरह ही मानी गई है “भौमवत केतु”. केतू सर्जरी का प्रतिनिधित्व करता है लेकिन यह  धन-संपदा और राज्य तक दिलाता है. मनुष्य के शरीर में केतु अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है. ज्योतिष गणनाओं के लिए केतु को ज्योतिषी तटस्थ अथवा नपुंसक ग्रह मानते हैं जबकि कुछ अन्य इसे नर ग्रह मानते हैं. राहू की तरह केतू भी जिनके साथ स्थित होता है उनका गुण प्रदर्शित करता है. यह मंगल की भांति ही एक क्रूर ग्रह हैं तथा मंगल के प्रतिनिधित्व में आने वाले कई क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व केतु भी करता है. केतु सभी ग्रहों में सबसे तीक्ष्ण व पीडा दायक ग्रह है. यह ग्रह तीन नक्षत्रों का स्वामी है: अश्विनी, मघा एवं मूल नक्षत्र. इसमें दो नक्षत्र गंडमूल नक्षत्र में गिने जाते हैं. राहु की तरह केतु भी जन्म कुण्डली में राहु के साथ मिलकर कालसर्प योग की स्थिति बनाता है.

केतु के अधीन आने वाले जातक जीवन में अच्छी ऊंचाइयों पर पहुंचते हैं, जिनमें से अधिकांश आध्यात्मिक ऊंचाईयों पर होते हैं. केतु पंचम, द्वितीय, नवम और एकादश भाव में सन्तान दोष भी पैदा करता है. केतु की पत्नी सिंहिका और विप्रचित्ति में से एक के एक सौ एक पुत्र हुए जिनमें से राहू ज्येष्ठतम है एवं अन्य केतु ही कहलाते हैं.

राशि स्वामित्व : किसी राशि का स्वामी नहीं है . 
दृष्टि : केतू की कोई दृष्टि नहीं होती 
नक्षत्र स्वामी ” अश्विनी , मघा , मूल
रत्न : लहसुनिया या कैट्स आई 
महादशा : 7 वर्ष 
मन्त्र : ॐ कें केतवे नमः