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अरट्टुपुझा पूरम, देवी-देवताओं का सबसे बड़ा संगम (देवसंगमम) है. पूरम को देवमेला के नाम से जाना जाता है (जिसे ‘सभी पूरमों की मां’ के रूप में जाना जाता है) इसका उत्सव केरल में सबसे बड़े उत्सवों में से एक है क्योंकि यह राज्य भर की परंपराओं की एक विस्तृत विविधता का प्रतिनिधित्व करते हैं. यहाँ पड़ोस के मन्दिरों के सभी देवता उपस्थिति होते हैं. पहले त्रिशूर जिले के विभिन्न हिस्सों से विभिन्न मंदिरों के कुल 108 देवता पूरम में शामिल होते थे , लेकिन अब केवल 23 देवता पूरम में शामिल होते हैं. इसे भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे पुराना मंदिर उत्सव माना जाता है. यह उत्सव थुइरुवुल्लाक्कवु श्री धर्म शास्ता मंदिर (Thiruvullakkavu Sree Dharma Sastha Temple) में मनाया जाता है.
मान्यता के अनुसार, हिंदू पौराणिक कथाओं के सभी 33 करोड़ देवता देवसंगम के दौरान उपस्थित रहते हैं. पूरे केरल में सबसे पुराना पूरम मंदिर उत्सव है. अराट्टुपुझा पूरम हर साल सात दिनों की अवधि के लिए त्रिशूर के श्री सस्था मंदिर में आयोजित किया जाता है. केरल के त्रिशूर जिले के अरट्टुपुझा में अरट्टुपुझा मंदिर स्थित है. उत्सव में शाम को सस्थविंते मेलम नामक समारोह के हिस्से के रूप में सुसज्जित हाथियों की एक सभा होती है और ताल संगीत नाट्य का मंचन होता है. आरत्तुपुझा सस्तवु का पंचरिमेलम Aarttupuzha Sasthavu किसी भी पूरम में कलाकारों का सबसे बड़ा कार्यक्रम होता है.


इस बार उत्सव इस उत्सव में लाये गये एक हाथी ने दूसरे पर हमला कर दिया जिससे उत्सव में भगदड़ मच गई, इसमें कई लोग घायल हो गये. देखें वीडियो ..