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सावन का महीना भगवान शिव का महीना है. इस महीने में शिव पूजन बड़ा महात्म्य है. जो शिव भक्त सोमवार व्रत कर रहे हैं उन्हें प्रदोष व्रत भी नहीं छोड़ना चाहिए. सावन महीने में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी गुरुवार 1 अगस्त को पड़ रही है, वहीं शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी शनिवार 17 अगस्त को पड़ रही है. शैव धर्म में हर माह की शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत किया जाता है. सावन प्रदोष व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. सावन के प्रदोष व्रत पर शिवजी का जलाभिषेक करने से हर प्रकार के संकटों से रक्षा होती है और शिव जी का वरद प्राप्त होता है. स्कंदपुराण के अनुसार -प्रदोष के समय महादेवजी कैलाशपर्वत के रजत भवन में नृत्य करते हैं और देवता उनके गुणों का स्तवन करते हैं. अतः धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की इच्छा रखने वाले पुरुषों को प्रदोष में नियमपूर्वक भगवान शिव की पूजा, होम, कथा और गुणगान करने चाहिए. दरिद्रता के तिमिर से अंधे और भक्तसागर में डूबे हुए संसार भय से भीरु मनुष्यों के लिए यह प्रदोषव्रत पार लगाने वाली नौका है. शिव-पार्वती की पूजा करने से मनुष्य दरिद्रता, मृत्यु-दुःख और पर्वत के समान भारी ऋण-भार को शीघ्र ही दूर करके सम्पत्तियों से पूजित होता है. सावन महीने कृष्ण त्रयोदशी पर अनेक योग बन रहे हैं जिससे यह अत्यंत पुण्यदायक बन गया है.

प्रदोष व्रत पूजन मुहूर्त –

सावन मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 1 अगस्त 2024 को दोपहर 03 बजकर 28 मिनट से शुरू हो रही है. इस तिथि का समापन 2 अगस्त को दोपहर 03 बजकर 26 मिनट पर होगा. पंचांग के अनुसार सावन का पहला प्रदोष व्रत 1 अगस्त, गुरुवार के दिन रखा जाएगा. गुरुवार के दिन पड़ने के कारण इसे गुरु प्रदोष व्रत कहा जाएगा. सावन कृष्ण प्रदोष व्रत की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त शाम 07 बजकर 12 मिनट से लेकर 9 बजकर 18 मिनट तक रहेगा.  सावन के पहले प्रदोष व्रत पर आर्द्रा नक्षत्र का भी योग बन रहा है जो शाम प्रदोष पूजन के समय रहेगा. भगवान शिव की पूजा के लिए यह अत्यंत शुभ है.

गुरु प्रदोष व्रत कथा –

एक बार इन्द्र और वृत्रासुर की सेना में घनघोर युद्ध हुआ. देवताओं ने दैत्य-सेना को पराजित कर नष्ट-भ्रष्ट कर डाला. यह देख वृत्रासुर अत्यन्त क्रोधित हो स्वयं युद्ध को उद्यत हुआ. आसुरी माया से उसने विकराल रूप धारण कर लिया. सभी देवता भयभीत हो गुरुदेव बृहस्पति की शरण में पहुंचे. बृहस्पति महाराज बोले- पहले मैं तुम्हे वृत्रासुर का वास्तविक परिचय देता हूँ , ध्यान से सुनो. वृत्रासुर बड़ा तपस्वी और कर्मनिष्ठ है. उसने गन्धमादन पर्वत पर घोर तपस्या कर शिव जी को प्रसन्न किया है. पूर्व समय में वह चित्ररथ नाम का राजा था. एक बार वह अपने विमान से कैलाश पर्वत चला गया. वहां शिव जी के वाम अंग में माता पार्वती को विराजमान देख वह उपहास पूर्वक बोला- हे प्रभो! मोह-माया में फंसे होने के कारण हम लोग तो स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं. किन्तु देवलोक में ऐसा दृष्टिगोचर नहीं हुआ कि स्त्री आलिंगनबद्ध हो सभा में बैठे! चित्ररथ के यह वचन सुन सर्वव्यापी शिव शंकर हंसकर बोले- हे राजन! मेरा व्यावहारिक दृष्टिकोण पृथक है. मैंने मृत्युदाता कालकूट महाविष का पान किया है, फिर भी तुम साधारण जन की भांति मेरा उपहास उड़ाते हो!
माता पार्वती क्रोधित हो चित्ररथ से संबोधित हुई- अरे दुष्ट! तूने सर्वव्यापी महेश्‍वर के साथ ही मेरा भी उपहास उड़ाया है. अतएव मैं तुझे दंड देती जिससे कि फिर तू संतों के उपहास का दुस्साहस नहीं करेगा. अब तू दैत्य स्वरूप धारण कर विमान से तत्काल ही नीचे गिर जा, मैं तुझे शाप देती हूं. जगदम्बा भवानी के अभिशाप से चित्ररथ राक्षस योनि को प्राप्त हो गया और त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न हो वृत्रासुर बना. गुरुदेव बृहस्पति आगे बोले- वृत्तासुर बाल्यकाल से ही शिव भक्त रहा है. अतः हे इन्द्र तुम बृहस्पति प्रदोष व्रत कर शंकर भगवान को प्रसन्न करो. देवराज ने गुरुदेव की आज्ञा का पालन कर बृहस्पति प्रदोष व्रत किया. गुरु प्रदोष व्रत के प्रताप से इन्द्र ने शीघ्र ही वृत्रासुर पर विजय प्राप्त कर ली और देवलोक में शान्ति छा गई.

प्रदोष व्रत में क्या करें –

1-दोनों पक्षों की प्रदोषकालीन त्रयोदशी को व्रत रहे. निर्जल तथा निराहार व्रत सर्वोत्तम है परंतु अगर यह संभव न हो तो नक्तव्रत करे. पूरे दिन सामर्थ्यानुसार या तो कुछ न खाये या फल ले. अन्न पूरे दिन न खायें. प्रदोष व्रत समापन के बाद सूर्यास्त के 72 मिनट बाद हविष्यान्न ग्रहण करें.

2-जितना संभव हो सके मौन धारण कर के रहें और श्वेत वस्त्र धारण कर प्रदोषकाल में शिव पूजन करें. शिव पूजन से पूर्व शिव पार्वती युगल दम्पति का ध्यान करके उनकी मानसिक पूजा अवश्य करें.

3-शास्त्रीय विधि से भगवान शिव की पूजा करें, दुग्ध या गंगा जल से अभिषेक करें तथा विल्व पत्र आदि अर्पित करें. पूजन सात्विक या राजसिक कर सकते हैं. भगवान को मधुर वस्तुओं कस भोग अर्पित करें.

4-प्रदोष काल भगवान शिव के लिए शुद्ध घी का एक दीपक जलाएं. दीपक बड़ा लेना चाहिए जिसमे पर्याप्त घी आ सके.

5-भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किसी स्तोत्र का पाठ अवश्य करें.