अश्विन कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि अमावस्या का विशेष महत्व है. पितरों के लिए अमावस्या में श्राद्ध तथा पूजन और तर्पण करना सबसे प्रशस्त माना गया है. सर्वपितृ अमावस्या को पितरों की विदाई का समय माना जाता है. सर्वपितृ अमावस्या के पूरे होने पर पितृ गण पितृलोक में लौट जाते हैं. इस तिथि पर परिवार के उन मृतक परिजनों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु तिथि हम भूल चुके हैं या फिर जिनकी मृत्यु अमावस्या, पूर्णिमा या चतुर्दशी तिथि पर हुई है. यह पितरो का त्राण करने वाली अमावस्या है. इस बार यह 2 अक्टूबर को है. श्राद्ध के आखिरी दिन उन पितरों के लिए विशेष कर्मकांड किये जाते हैं. पितृपक्ष के दौरान विशेष रूप से सर्वपितृ अमावस्या के दिन मांस, मछली, अंडा या मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिये. इस दिन सात्विक और साधारण भोजन का पालन करना श्रेयस्कर होता है. अमावस्या के दिन दान आवश्य करना चाहिए. यदपि कि भगवद्गीता में पितृपूजा को तामसिक और हेय माना गया है. भगवद्गीता के उपदेश ने अनार्योचित कहा है.
सर्वपितृ अमावस्या मुहूर्त –
आश्विन माह की अमावस्या तिथि 01 अक्टूबर, 2024 को रात 09 बजकर 39 मिनट पर शुरू हो रही है. इस तिथि का समापन 03 अक्टूबर को रात्रि 12 बजकर 18 मिनट पर होगा. ऐसे में बुधवार, 02 अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या मनाई जाएगी.
पितरों के श्राद्ध इत्यादि कर्म दोपहर के बाद करने का प्रावधान शात्रों में है. पितरों का श्राद्ध दोपहर 2 बजे के बाद करना चाहिए. मध्याह्न देवताओं का काल है और 2 बजे के बाद पितरो का काल माना गया है.

