Spread the love

जन्म कुंडली में सन्यास के कई योग हो सकते हैं और शास्त्रों में अनेक योगों का वर्णन है. जातक का सन्यास ग्रह के चरित्र के अनुसार कहा गया है. मंगल बलवान हो तो जातक लाल पीला वस्त्र धारण करने वाला सन्यासी होता है, बुध बलवान हो तो मठी साधु और उदम्भरी होता है, गुरु बलवान हो तो जातक भिक्षुक होता है, चन्द्रमा बलवान हो तो राज सम्पत युक्त यशस्वी साधु होता है या कपाली होता है, सूर्य बलवान हो बनवासी साधु होता है, शनि बलवान हो तो नग्न -दिगंबर होता है और शुक्र बलवान हो तो भ्रमण करने वाला साधु बनता है. सन्यास में भुक्ति स्वामी और महादशा स्वामी के नवांश स्वामी और द्रेश्काण स्वामी को देखना चाहिए. शनि एक प्रमुख प्रवज्याकारी ग्रह है क्योकि यह अलगाव कराने वाला प्रमुख ग्रह माना गया है. सभी अलगाव या विच्छेद कराने वाले ग्रहों की महादशा में सन्यास हो सकता है. शनि, मंगल, सूर्य, राहु -केतु ये सभी संसार से विच्छेद कराते हैं. सन्यास के लिए पंचमेश, नवमेश, दशमेश, अष्टमेश, द्वितीयेश और द्वादशेश की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है. शनि की दृष्टि चन्द्रमा या निर्बल चन्द्र राशि के स्वामी पर पड़े तो भी यह सन्यास कराने में सक्षम होता है. लग्न स्वामी पर शनि की दृष्टि भी सन्यास प्रदान करती है यदि लग्नेश कमजोर है. चतुर्थेश, अष्टमेश और द्वादशेश की दशा में भी सन्यास सम्भव होता है.

रजनीश ओशो – रजनीश का सन्यास राहु अंतर्गत बुध की अन्तर्दशा में 1970 में हुआ था. यह सन्यास स्व सन्यास था किसी परम्परा में यह सन्यास नहीं हुआ था. राहु अष्टमेश की राशि में है और अष्टमेश द्वारा दृष्ट है साथ में द्वादशेश मंगल द्वारा भी दृष्ट है. बुध शुक्र के नक्षत्र में है और मंगल तथा लग्न स्वामी शुक्र से युत है. प्रवज्या देने वाला ग्रह गुरु और बुध हैं. बुध पंचमेश है इसलिए यह ग्रह ही प्रवज्याकारी माना जायेगा अन्य ग्रह सहयोगी हैं. सन्यास योग की एक शर्त और पूरी हो रही है चन्द्रमा नवमेश शनि से युत है. कुंडली में पाप-मारक ग्रह बृहस्पति और चन्द्रमा में राशि परिवर्तन है जिसका गहरा प्रभाव गुरु दशा में रजनीश के पाप कर्मों में प्रकट हुआ था. प्रवज्याकारक बुध के अनुसार रजनीश एक मठवासी, भोगी और उदम्भरी सन्यासी हुए. शुक्र के कारण भोग वृत्ति प्रभावी रही और उसने सन्यास के वस्त्र खुद नहीं पहने. नवांश में राहु बुध की राशि में शुक्र से युत है और तीनो सहयोगी ग्रहों शनि, मंगल और गुरु द्वारा दृष्ट है. चन्द्रमा भी शुक्र की राशि में है,

द्रेश्काण कुंडली में भी महादशा स्वामी राहु मीन राशि में है और द्वादश मिथुन राशि में स्थित नवमेश शनि द्वारा दृष्ट है. बृहस्पति नीच का होकर भुक्ति स्वामी बुध और लग्न स्वामी शुक्र को देख रहा है. शनि यहाँ भी चन्द्रमा से युत है. स्पष्ट है प्रवज्या कराने वाला प्रमुख ग्रह बुध ही है बाकि ग्रह सहयोगी है. गौरतलब ये है कि महादशा स्वामी राहु बृहस्पति की राशि में है और उसके द्वारा दृष्ट है और लग्न कुंडली में यह उच्च का है . अष्टमेश की महादशा में ही रजनीश की दुनियाभर में दुर्गति हुई, देश से निष्कासन हुआ, जेल हुआ और क्रिमिनल केस हुए तथा इसी दशा में जहर से मध्यायु पूर्ण करने से पहले ही मृत्यु हो गई. पंचमेश अष्टमेश की राशि में है जो शुभ नहीं है. अस्तु बुध की प्रवज्या शुभकारी नहीं थी. बुध की सप्तमेश और द्वादशेश मंगल से युति के कारण ही ओशो ने प्रवज्या में लाल कपड़े लोगो को पहनाये.