Spread the love

ज्योतिर्मठ के नये पीठासीन शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने सन्यासियों की विदेश यात्रा पर शास्त्रीय बात सामने रखी है. शास्त्रों में विदेशी ईसाई इत्यादि कौमों को म्लेच्छ कहा गया है क्योंकि उनमे किसी तरह की सुचिता नहीं होती है और वे मदिरापान करने वाले और गाय-बैल-सूअर खाने वाले होते हैं.

अब सवाल है कि ग्लोबलाईजेशन के दौर में क्या म्लेच्छ अब भी म्लेच्छ माने जाने चाहिए ?और तब जबकि अपवर्ड मोबिलिटी के मध्यवर्गीय हिन्दूओं के लिए म्लेच्छ ही सबसे बड़ा भगवान हो गया है? नेता, ब्यापारी अपनी बेटी म्लेच्छ में ब्याहते हैं ! यदि धर्म और परम्परा को देखा जाय तो ईसाई धर्म में पोप ईसाईयत के नियमों से प्रतिबद्ध है, वह उसके अनुसार ही चलता है. ईसाई धर्म में कोई भी स्वयम्भू बन कर धर्मगुरु नहीं बन सकता, इसके लिए वेटिकन का पूरा नियम और कानून है. वेटिकन मान्यता देगा तभी कोई धर्म गुरु बन सकता है. इस्लाम में भी ज्यादातर केस यही है. हिन्दू धर्म एकमात्र धर्म है जहाँ शास्त्रविहीन स्वयम्भू गुरु बन कर घूमते रहते हैं. ये शास्त्र को नहीं मानते हैं या अपनी सुविधानुसार रेशनल चीजे मानते हैं और ईसाईयों के अनुसार सनातन धर्म का नाश में भूमिका निभाते हैं. हिन्दू धर्म यदि ईसाईयों की चालबाजी के अनुसार खुद को बदलेगा तो उसका नाश हो सकता है, ऐसे में शंकराचार्यों की कट्टर बातों को समझा जा सकता है. यदपि कि ईसाईयत काफी कट्टर है, वहां संत बनना आसान नहीं है, संत बनने के लिए बड़ी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. लेकिन पिछले एक हजार साल में ईसाईयों ने अपने नियमों को समयनुसार बदला है, मसलन LGBT की शादी हिन्दू धर्म में स्वीकार्य नहीं है और ईसाई धर्म में भी स्वीकार्य नहीं था लेकिन समय के अनुसार उन्होंने इसे धार्मिक मान्यता दी है. यह उनकी मजबूरी बन गई क्योंकि LGBT एक संक्रमण की तरह उभरा और ईसाई समाज को गिरफ्त में ले लिया. देखते देखते ईसाई समाज का एक बड़ा हिस्सा LGBT बन गया.

भारत में यह स्थिति नहीं है लेकिन यहाँ भी स्थिति में तेजी से बदलाव आया है. ऐसे में क्या शंकराचार्यों को ऐसे मुद्दे पर एक धर्म सभा नहीं करनी चाहिए और तद्नुसार निर्णय लेना चाहिए? क्या परिवर्तन प्रकृति का नियम नहीं है ? यह तर्क दिया जाता है कि हिन्दू समाज और पारिवारिक तन्त्र नियमों की इस कट्टरता के कारण ही अब तक बचा हुआ है. लेकिन हिन्दू समाज और परिवार अंदर से बजबजा भी तो रहा है. कुछ चीजों में सुधार की जरूरत है.

दूसरी बात ये है कि ईसाई जिन्हें म्लेच्छ कहा गया है उन्हें डॉलर के लिए लालची धंधेबाजों ने आश्रमों में शरण दे कर सन्यासी तक बना दिया है. इससे पवित्र सन्यास धर्म की बड़ी हानि हुई है. अब ये म्लेच्छ हिन्दुओं को धर्म ज्ञान देते हैं और बताते हैं वेद में क्या है. इस्कान में इन म्लेच्छों ने सन्यासी बनकर हजारों की संख्या में बच्चियों का बलात्कार किया. ऐसे में शंकराचार्य लोग एकमात्र बचे हुए हैं जो हिन्दू धर्म की तय मर्यादा के अनुसार चलते हैं और उपदेश करते हैं. ऐसे में उनकी बातों को हिन्दुओं को मानना ही चाहिए, लेकिन उन्हें थोडा प्रेक्टिकल भी होना पड़ेगा और समय के अनुसार चलना पड़ेगा. ज्यादा मनुवाद पर चलना और पौराणिक होना धर्म के लिए हितकर नहीं है.