Spread the love

यजुर्वेद तैत्तिरीय संहिता में नक्षत्रों को देवताओं का गृह या सदन कहा गया है अर्थात हर नक्षत्र तत्तदेवता का गृह है जैसे धनिष्ठा वसुओं का गृह है. मन्त्र के अनुसार -कृत्तिका प्रथमं विशाखे उत्तमम तानि देवनक्षत्राणि इति ! सताईस नक्षत्रों में उत्तरायण के नक्षत्र कृत्तिका से विशाखा तक देव नक्षत्र कहे गये हैं और दक्षिणायन के नक्षत्र अनुराधा से भरणी तक यम नक्षत्र कहे गये हैं.

भचक्र के 360 अंश को विषुवत वृत्त से बाँट दें तो विषुवत वृत्त के ऊपर और नीचे १८०-१८० अंश के दो अर्धवृत्त बन जायेंगे जिन्हें गोलार्ध कहा जाता है. विषुवत वृत्त के ऊपरी गोलार्ध को उत्तरी गोलार्ध और निचले गोलार्ध को दक्षिणी गोलार्ध कहते हैं. भचक्र में सत्ताईस नक्षत्रों की स्थिति इन गोलार्धों में कुछ इस तरह है – अश्वनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, स्वाति, अभिजीत, श्रवण, घनिष्ठा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती ये विषुवत वृत्त के उत्तर अर्थात उत्तरी गोलार्ध मे स्थित हैं. हस्त, चित्रा, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, शतभिषा ये नक्षत्र विषुवत वृत्त के दक्षिण अर्थात दक्षिणी गोलार्ध में स्थित हैं.

सत्ताईस नक्षत्रों के दो गोलार्धों में स्थित होने के कारण इनका उदय और अस्त का समय अलग अलग होता है. कुछ नक्षत्र दक्षिण गोलार्ध में ज्यादा बेहतर दृश्य हैं तो कुछ उत्तरी गोलार्ध में ज्यादा दृश्य हैं. वराहमिहिर ने भचक्र की २४ अंश की पट्टी में नक्षत्रों के स्थान का निर्धारण तीन वीथियों में किया है. वराहमिहिर ने भचक्र की २४ अंश की पट्टी (जिसे दक्ष सूत्र या सम्वत्सर चक्र कहते हैं) को तीन भागों बंटा है- दक्षिण पट्टी ४ अंश की, मध्य पट्टी ८ अंश की और १२ अंश की उत्तर दिशा की पट्टी , पुन: इन तीन पट्टियों को उन्होंने तीन तीन वीथियों में विभाजित किया है जिनमे तीन तीन नक्षत्र स्थित हैं.

उत्तर मार्ग में पहली वीथी का नाम है नाग वीथी और इसमें तीन नक्षत्र हैं – अश्विनी, भरणी और कृतिका.
दूसरी वीथी का नाम है गज वीथी और इसमें तीन नक्षत्र हैं – रोहिणी, मार्गशिर्ष और आद्रा.
तीसरी ऐरावत वीथी है और इसमें तीन नक्षत्र हैं – पुनर्वसु, पुष्य और अश्लेषा.
मध्य मार्ग के तीन वीथी हैं. पहली है आर्ष वीथी जिसमें – मघा, पूर्व फाल्गुनी और उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र स्थित हैं। दूसरी गोवीथी में तीन नक्षत्र हैं – हस्त, चित्रा और स्वाति. तीसरी जरद् गव वीथी में तीन नक्षत्र हैं – विशाखा, अनुराधा और ज्येष्ठा। दक्षिण मार्ग की पहली वीथी को अज कहते हैं और इसमें तीन नक्षत्र हैं – मूल, पूर्व आषाढ़, उत्तर आषाढ़। दूसरी मृग वीथी में तीन नक्षत्र हैं – श्रवण, धनिष्ठा और शतभिषा. तीसरी वैश्य-वानर वीथी में तीन नक्षत्र हैं – पूर्व भाद्रपद, उत्तर भाद्रपद और रेवती.

हिन्दू धर्म के शास्त्रों के अनुसार अगस्त्य के उत्तर और अजवीथी (मूल, पूर्व आषाढ़, उत्तर आषाढ़) के दक्षिण में मृगवीथी (श्रवण-धनिष्ठा-शतभिषा) दक्षिणायन का पितृयान पथ है जहाँ मुनिजन रहते हैं और वेदों का गायन और यज्ञ इत्यादि करते हैं और वैदिक धर्म की मर्यादा की स्थापना के लिए अपने उत्तरकालीन संतानों के यहाँ आते रहते हैं. नागवीथी के उत्तर (अश्विनी, भरणी कृत्तिका) और सप्तऋषियों के दक्षिण उत्तरायण का मार्ग है जहाँ 88 हजार उर्ध्वरेता ऋषि रहते हैं. इन्हीं उर्ध्वरेता मुनियों के अवतार होते हैं ऐसा माना जाता है. पृथ्वी लोक में यही भगवान होते हैं.