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साधकों को अपने साधना में उन्नति के अनुसार उन्हें सिद्धियाँ मिलती हैं. अष्ट सिद्धियाँ दुर्लभ हैं. अणिमा , महिमा, लघिमा, गरिमा तथा प्राप्ति प्राकाम्य इशित्व और वशित्व ये सिद्धियां कहलाती हैं. हनुमान चालीसा में वर्णन है कि हनुमान जी को यह शक्ति स्वरूप सीता के अनुग्रह से प्राप्त हुआ था और वे इसे किसी को प्रदान भी कर सकते थे. यह रामकृष्ण परमहंस आदि सिद्धों को ही ये अष्टसिद्धियाँ उपलब्ध होती हैं. इसके इतर कुछ सोलह सिद्धियों का वर्णन मिलता है. यह भी किसी एक व्यक्ति में होना दुर्लभ है विशेषरूप से कलियुग में तो एकदम दुर्लभ है. इन सिद्धियों को 16 कलाओं से भी जोड़ कर देखा जाता है. जिस प्रकार सोलह कलाओं से चन्द्रमा पूर्ण होता है उसी प्रकार इन सिद्धियों से पूर्णता आती है. ये सोलह सिद्धियाँ निम्नलिखित हैं –

1. वाक् सिद्धि: एक सिद्धि विशेष हैं. यह उनको प्राप्त होती है जो सत्यवादी होते हैं. वे जो कह देते हैं वह घटित हो जाता है. पुराने काल में सिद्ध ऋषि-मुनियों में ये सिद्धि होती थी और इसी कारण वे श्राप या वरदान देने में सक्षम थे. कुछ असाधारण व्यक्तियों में भी ऐसी शक्तियां होती थी. जैसे शांतनु ने अपने पुत्र भीष्म को इच्छा मृत्यु और द्रोण ने अपने पुत्र अश्वत्थामा को चिरंजीवी होने का वरदान दिया था. कई बार जब व्यक्ति अपने चरम आवेग या भावना में होता है या गहरे पीड़ित और आहत होता है तो उसकी आह रूप में उसके मुख से निकली हुई बात सच हो जाती है.

2. दिव्य दृष्टि: यह वह शक्ति है जिसके माध्यम से किसी भी व्यक्ति के भूत, वर्तमान एवं भविष्य का ज्ञान हो जाता हैं. यह सिद्धि साधक को त्रिकालदर्शी बनती है. दिव्य दृष्टि में सभी कुछ आंखों के सामने होता दिखता है चाहे वो कहीं भी घटित हो रहा हो. सिद्ध ऋषियों के पास ऐसी दिव्य दृष्टि होती थी. श्रीकृष्ण ने गीता ज्ञान के लिए अर्जुन को और महर्षि व्यास ने संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की थी. सभी प्रमुख देवताओं और सप्तर्षियों में ये सिद्धि स्वाभाविक रूप से होती है.

3. प्रज्ञा सिद्धि: इस सिद्धि को प्राप्त कर साधक समस्त ज्ञान का अधिकारी हो जाता है. उसके पास संसार का सारा ज्ञान होता है. योगसूत्र के ऋतम्भरा प्रज्ञा द्वारा इसी का वर्णन किया गया है. महर्षि व्यास, गौतम बुद्ध, रामकृष्ण आदि को यह प्रज्ञा प्राप्त थी.

4. दूरश्रवण: योग की यह एक अद्भुत सिद्धि है. इस सिद्धि को प्राप्त करने पर साधक कही भी हो रहे किसी भी वार्तालाप को सुन सकता है. उसे बहुत दूर हो रही गुप्त बातें भी सुन पडती है. इस सिद्धि से जो वार्तालाप भूतकाल में हो चुका हो उसे भी अगर पुनः सुनना चाहे तो वह सुन सकता है. सिद्ध ऋषियों में ये सिद्धि हुआ करती थी. महावीर हनुमान के पास भी ये सिद्धि थी. कुछ मायावी राक्षसों के पास भी ऐसी सिद्धियां होती थीं.

5. जलगमन: इस सिद्धि वाला साधक जल पर गमन कर सकता है जैसे वो भूमि पर विचरण करता है. सिद्ध ऋषियों के पास ये सिद्धि होती थी. रामकृष्ण परमहंस के पास यह सिद्धि थी. वर्तमान युग में अनेक सिद्धों के पास यह सिद्धि थी. देवरहा बाबा के पास यह सिद्धि थे. वे तो जल समाधि लगाते थे.

6. वायुगमन: इस सिद्धि को प्राप्त करने वाला साधक वायुमार्ग से कही भी जा सकता है. इस सिद्धि को प्राप्त योगी अपने रूप को सूक्ष्म बना कर एक लोक से दूसरे लोक में भी गमन कर सकता है. उनकी गति इतनी तीव्र होती है कि वे तत्काल ही एक स्थान से दूसरे स्थान तक जा सकते हैं. बजरंगबली इस सिद्धि के एक प्रसिद्ध उदाहरण हैं. उनके अतिरिक्त रामायण में वर्णित मायावी राक्षसों में भी ये सिद्धि थी. मेघनाद ने इस सिद्धि के बल पर ही आकाश में रह कर लक्ष्मण से युद्ध किया था.

7. अदृश्यकरण: इस सिद्धि थोड़ी कठिन सिद्धि और उपरोक्त सिद्धियों से एककदम आगे की सिद्धि है. आकाश तत्व को भी विजित कर लेने वाला योगी अपने आप को अदृश्य कर सकता है और उसी रूप में किसी भी स्थान पर जा सकता था. मायावी राक्षसों के पास ये सिद्धि हुआ करती थी. कई सिद्ध ऋषि अदृश्य होकर विभिन्न स्थानों पर विचरण कर सकते थे.

8. विषोका: जिस साधक के पास यह सिद्धि होती है वह अपने आप को अनेक रूप में परिवर्तित कर सकता है. ऐसा व्यक्ति एक स्थान पर किसी एक रूप में और दूसरे स्थान पर किसी अन्य रूप में उपस्थित रह सकता हैं. राक्षसों में ये सिद्धि हुआ करती थी. श्रीकृष्ण ने अपनी माया से लीला में ऐसा कई बार किया था जब वे एक ही समय पर कई स्थानों पर उपस्थित रहते थे.

9. देवक्रियानुदर्शन: इस सिद्धि को प्राप्त करने के बाद साधक विभिन्न देवताओं का सानिध्य प्राप्त कर लेता है. जिस देवता का स्मरण करता है वह देवता उसके समक्ष उपस्थित हो जाता है. इस सिद्धि से वह देवताओं को अपने अनुकूल बना कर उनसे उचित सहयोग ले सकता है. पुराणों में वर्णित दुर्वासा, भृगु, वशिष्ठ इत्यादि ऐसे कई ऋषि इसका उदाहरण है.

10. कायाकल्प: कायाकल्प यानि “शरीर का पूर्ण परिवर्तन”. इस सिद्धि को पूर्ण रूप से प्राप्त करने के बाद साधक का शरीर निरोगी और वज्र तुल्य हो जाता है. वह कभी बूढा नहीं होता. यदि उसका शरीर वृद्ध एवं जर्जर भी है तब भी इस सिद्धि के बल पर वो पुनः अपने आप को युवा बना सकता है. ऐसे कई ऋषि थे जिन्होंने अपने वृद्ध आयु को छोड़ कर यौवन को पुनः प्राप्त किया. भागवत पुराण में वर्णन है कश्यप ऋषि ने स्वयं हो पूर्ण युवा बना लिया था. कई ऐसे ऋषि थे जिनके बारे में पुराणों में वर्णन है जो अजर हैं. इस सिद्धि से अश्विन कुमारों ने च्यवन ऋषि का काया कल्प कर दिया था.

11. सम्मोहन: ये बहुत प्रसिद्ध सिद्धि है. सम्मोहन कई प्रकार का होता है. इससे साधक किसी को भी अपने अनुकूल कर सकता है और उनसे जो भी चाहे वो करवा सकता है. मनुष्य तो मनुष्य, इस सिद्धि को प्राप्त साधक पशु-पक्षियों को भी अपने अनुकूल कर सकते हैं. इसे वशीकरण भी कहते हैं. रावण वशीकरण विद्या में माहिर था. माना जाता है कि नाग जाति के लोगों में स्वाभाविक रूप से सम्मोहन की सिद्धि होती थी. सिद्ध पुरुष किसी को भी सम्मोहित कर सकते हैं. मनोविज्ञान में भी इसका प्रयोग किया जाता है. तीव्र सम्मोहन करने की योग्यता सिर्फ साधकों में ही होती है.

12. गुरुत्व: गुरुत्व सिद्धि प्राप्त होने पर मनुष्य गरिमावान हो जाता है. प्राचीन काल में गुरु का पद अत्यंत महान माना जाता था. देवताओं के गुरु बृहस्पति और दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य को सर्वश्रेष्ठ गुरु के रूप में मान्यता प्राप्त है. उनके अतिरिक्त वशिष्ठ, परशुराम एवं द्रोण के गुरुत्व की भी बहुत ख्याति है. भगवान शंकर को जगतगुरु कहा गया है.

13. पूर्ण पुरुषत्व: इस सिद्धि से साधक बचपन में भी अपने पूर्ण पुरुषत्व और बल को प्राप्त कर सकता है. श्रीराम और श्रीकृष्ण में ये सिद्धि बाल्यकाल से ही विद्यमान थी. इसी सिद्धि के बल पर श्रीकृष्ण ने बचपन में ही पूतना, भौमासुर इत्यादि कई दैत्यों का वध कर दिया. 16 वर्ष की आयु में ही उन्होंने चाणूर, मुष्टिक एवं कंस जैसे महावीरों का वध कर दिया. पांडवों में भीम के पास भी ये सिद्धि थी. श्रीराम के पुत्र लव और कुश ने भी इसी सिद्धि के बल पर अपने बचपन में ही पूरी अयोध्या की सेना को परास्त कर दिया था.

14. सर्वगुणसंपन्न: कुछ ऐसे उत्तम पुरुष होते हैं जिनमे संसार के सभी उत्कृष गुण समाहित होते हैं. ऐसे व्यक्ति को सर्वगुणसम्पन्न कहा जाता है. श्री कृष्ण को सर्वगुण सम्पन्न पूर्ण पुरुष माना जाता है. संसार में ऐसा कोई भी उत्तम गुण नहीं था जो उनमे नाम हो. श्रीराम को “पुरुषोत्तम” कहा जाता है. कई ऐसी स्त्रियाँ भी हैं जिनमे ये सिद्धि थी. सीता एवं द्रौपदी ऐसी ही स्त्रियाँ थी जो सर्वगुणसम्पन्न थी. इस सिद्धि को प्राप्त करने के बाद साधक की प्रसिद्धि पूरे विश्व में फ़ैल जाती है और वो अपने इन गुणों का प्रयोग लोक कल्याण के लिए करते हैं. 

15. इच्छा मृत्यु: इस सिद्धि को प्राप्त साधक अपनी इच्छानुसार अपनी मृत्यु के काल का चुनाव कर सकता है. अर्थात उनकी इच्छा के बिना स्वयं काल भी उन्हें छू नहीं सकता है. इस सिद्धि को प्राप्त करने वाले अपनी इच्छा अनुसार एक शरीर को त्याग कर दूसरा शरीर धारण कर सकता है. भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु की सिद्धि प्राप्त थी. आधुनिक काल में रामकृष्ण को यह सिद्धि प्राप्त बताई जाती है. भीष्म को पिता शांतनु से इच्छा मृत्यु का वरदान मिला था.

16. अनुर्मि: इस सिद्धि को प्राप्त व्यक्ति पर सृष्टि की किसी भी घटना का कोई प्रभाव नहीं पड़ता. ऐसा व्यक्ति भूख-प्यास, सुख-दुःख, सर्दी-गर्मी, भावना-दुर्भावना इत्यादि से परे होता है. उसके लिए जीवन एवं मृत्यु सामान होती है. यह योगी वीतराग और समदर्शी होता है. जो सिद्ध पुरुष ईश्वर का वास्तविक स्वरुप जान लेते हैं वो स्वाभाविक रूप से इस सिद्धि को प्राप्त कर लेते हैं. श्रीकृष्ण ने भी गीता में अर्जुन को इसका ज्ञान दिया था.