रामायण और श्रीरामचरित मानस की कथा के अनुसार सीताजी के विवाह के लिए राजा जनक ने स्वयंवर का आयोजन कराया था. इस स्वयंवर में शर्त रखी गई थी जो शिव धनुष तोड़ेगा उसी के साथ सीताजी का विवाह होगा. राम ने शिवजी के धनुष को तोड़ा तब राजा जनक ने सीताजी से ऋषि महर्षियों की उपस्थिति में विधिविधान से उनका विवाह कराया . विवाह के बाद राम और सीता कई दिनों तक जनकपुरी में ही रहे. उनकी सुहागरात जनकपुर में ही मनी. इसके बाद बिदाई हुई और सीता अयोध्या आईं. पहली बार ससुराल आई सीताजी को सासुओं नें मुंहदिखाई की रस्म में कई मूल्यवान जेवर, रत्न, माणिक्य आदि दिए गए. अयोध्या की महारानी कौशल्या ने भी अपनी प्रिय बहू सीता का स्वागत किया और मुंहदिखाई की रस्म निभाई. इस मौके पर राम की सौतेली माता रानी कैकेयी ने भी सीताजी की मुंहदिखाई की और उन्हें एक बहुमूल्य तोहफा दिया जो ऐतिहासिक है.
रामायण के अनुसार कैकेयी ने सीता माता को मुंहदिखाई में एक भव्य और खूबसूरत भवन भेंट किया था. यह कनक भवन था जिसमें बहुमूल्य रत्न लगे थे. यह महल सोने से निर्मित था इसलिए इसका नाम कनक भवन पड़ा. कनक भवन आज भी अयोध्या में सीता मन्दिर के रूप में मौजूद है. टीकमगढ़ की रानी वृषभानु कुंअर ने अठारहवीं शताब्दी के अंत में कनक भवन का जीर्णाेद्धार कराया था.

टीकमगढ़ के राजा प्रताप सिंह जूदेव की पत्नी रानी वृषभानु अयोध्या गईं तो कनक भवन की दुर्दशा देख वे दुखी हो उठीं थीं. इतिहासकारों के अनुसार सन 1887 में वे फिर अयोध्या गईं और कनक भवन के तत्कालीन महंत लक्ष्मणदास से इसके जीर्णाेद्धार की इच्छा व्यक्त की. उनकी मंजूरी के बाद रानी ने ओरछा के इंजीनियर व कारीगरों को अयोध्या ले जाकर कनक भवन का दोबारा निर्माण कराया. करीब चार साल में नया कनक भवन बनकर तैयार हुआ. 1891 में यहां विधि विधान से राम की मूर्ति स्थापित कर उसकी प्राण प्रतिष्ठा कराई गई.

त्रेता युग में जब पहली बार कनक भवन बनवाया गया था तब यह इन्द्राणी के महल से भी सुंदर और अनूठा था. रामायणी सम्प्रदाय के ग्रंथों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि कैकेयी को कनक भवन बनाने का विचार सपने में दर्शन के माध्यम से आया. दरअसल राजा दशरथ श्रीराम और सीता के लिए अयोध्या में सुंदर भवन बनवाना चाहते थे. उसी दौरान कैकेयी को सपने में कनक भवन दिखा जिसके बारे में उन्होंने राजा दशरथ से चर्चा की. कैकेयी को सपने में दिखी छवि के आधार पर दशरथ ने रानी की ईच्छा रखते हुए भव्य कनक भवन बनवाया था. सोने के इस सुंदर भवन का निर्माण दशरथ के आदेश पर शिल्पी विश्वकर्मा ने किया था जब सीता विवाह के बाद पहली बार अयोध्या आई तो कैकेयी ने उन्हें रत्नों से जड़ा हुआ सोने का यह भवन मुंह दिखाई में भेेंट कर दिया. यह सीता को मिली सबसे महंगी मुंह दिखाई थी.

