Spread the love

हमने आरएसएस उर्फ़ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत का भाषण नहीं सुना और न देखा है. पहले भी कभी न सुना और न देखा है. दशहरा पर आरएसएस यह कार्यक्रम करती है क्योंकि यह विजय दिवस है -विजयादशमी. इस दिन आरएसएस नागपुर में शस्त्र पूजा करती है. शस्त्र पूजा क्यों ? शास्त्र पूजा क्यों नहीं ? शस्त्र किसके लिए ? आरएसएस का कौन है दुश्मन ? पिछले 97 साल अर्थात स्थापना के समय से ही आरएसएस का सबसे बड़ा दुश्मन मुसलमान है. आरएसएस की स्थापना मुस्लिम के प्रति घृणा से हुई और यह घृणा लाखों कार्यकर्ताओं में, देश की जनता में पिछले नौ दशकों से भरी जा रही है.

पिछले 9 वर्षों में भाजपा और मोदी सरकार ने इस घृणा को परवान चढाया और ‘सिर तन से जुदा’ की हद तक गये. दंगा, मुस्लिमों की लिंचिंग , उनके घर भाजपा सरकार द्वारा राज्यों में गिराना, उनके खिलाफ आग उगलना, मस्जिदों के सामने हनुमान चलीसा पढना, सोशल मीडिया पर भाजपा का पूरा IT विंग द्वारा 24X7 घृणा का माहौल बनाते रहना और गोदी मीडिया तो पाकिस्तान में ही रहती है. क्या मोहन भागवत इससे अनजान हैं ? चुनाव के समय भाजपा के नेता रैली में मुस्लिम के खिलाफ जहर ही उगलते हैं. मोहन भागवत मोदी-योगी इत्यादि के पिछले चुनावों के भाषण क्यों नहीं देखते ?

अब जबकि 2024 का चुनाव आ गया है और भाजपा पूरी तरह बिखर गई है, हर मुद्दे पर मोदी के ललाट पर असफलता का टीका लग चुका तो भागवत को मुस्लिम याद आने लगे हैं. पिछले दो साल से भागवत का स्वर मुस्लिम तुष्टिकरण का बन गया है या यह कहें कि आरएसएस गिरगिट की तरह रंग बदलने की फ़िराक में है अर्थात हिंदुत्व का ठप्पा से मुक्त होकर सेक्युलर बनना चाहती है. पिछले दिनों रामायण तक को भागवत ने जाति विशेष का धर्म ग्रन्थ बता डाला और ब्राह्मणों को ईविल बता डाला. G-20 समिट में शिवलिंग के फब्बारे बना कर भी अरब मुस्लिम का तुष्टिकरण किया गया, यह सन्देश देने की कोशिस की गई कि भाजपा इन चीजों को नहीं मानती, सिर्फ आस्था की राजनीति करती है. इसकी अन्य मिसालें भी हैं- मसलन ncert की टैक्स्ट बुक से मुगल इतिहास के चैप्टर निकालना लेकिन अरब देशों के सामने बनियों की तरह गिडगिडाना और बताना कि अकबर भारत का सबसे सेक्युलर शासक था.

भाषण में भागवत ने कहा कि भावना भड़काकर लोगों के वोट लेना ठीक नहीं है. पिछले दो चुनाव में तो संघ ने यही किया, भावना भड़का कर, आग लगाकर वोट लिया. भागवत ने अपने भाषण में कहा कि आखिर एक ही देश में रहने वाले इतने पराए कैसे हो गए? यह तुमने किया पिछले दशकों में, यह विभाजन तुम्हारी घृणा आधारित राजनीतिक विचारधारा ने किया. पिछले दिनों भरे संसद में बीएसपी सांसद दानिश अल्वी को बीजेपी सांसद रमेश विधूड़ी ने जो कुछ कहा उस पर एक्शन नहीं लिया गया बल्कि विधूड़ी को और जिम्मेदारी थमा दी गई. तेलंगाना के टी.राजा. सिंह जो देशभर में बड़े HATEMONGER के रूप में ख्यातिलब्ध हैं और जिन्हें भाजपा ने बड़े दबाव में पार्टी से निष्काषित किया था उसे फिर चुनाव आते ही शामिल कर लिया गया. क्या यह मोहन भागवत को नहीं पता है ? क्या भाजपा बिना आरएसएस के चलती है ? भाजपा कोई अलग तो है नहीं, यह आरएसएस ही तो है जिसके सभी नेता आरएसएस की घृणा की पाठशाला से उत्तीर्ण हैं !

भागवत ने पिछले दिनों कहा कि हिन्दू का खून और मुस्लिम का खून एक ही है. कैसे ? इसको एक्सप्लेन नहीं किया गया ! यदि खून एक ही था तो तुमने मस्जिद नहीं गिराना था. क्या भागवत हिन्दुओं को मूर्ख समझते हैं? भागवत अक्सर यह भी बताने की कोशिस करते हैं जिसमे एक धमकी का स्वर होता है कि मुस्लिम खुद को समय के हिसाब ढाल ले क्योंकि समय पर हिंदुत्व का कब्जा है. यदि नहीं ढलता तो खैर नहीं. दशहरा भाषण में भी भागवत ने कहा -“मुस्लिम समुदाय को भी काल और परिस्थितियों के हिसाब से ढलने की आदत डालनी होगी. खान -पान-पहनावा को लेकर मुस्लिम समुदाय को अपनी रिजिडिटी कम करनी होगी.अयोध्या के पास बन रही बाबरी मस्जिद की डिजायन अगर भारतीय वास्तुकला को ध्यान में रखकर बनाई जाती तो ये लगता कि ये समुदाय बदली परिस्थितियों को खुद को ढाल रहा है. पर ऐसा नहीं है हुआ. अभी हाल ही में फैसला हुआ कि मस्जिद की डिजायन अरेबियन स्टाइल में बनेगा. भारत मां का विरोध छोड़ना होगा.”

यह धमकी है कि मेरे अनुसार खुद को ढाल लो. क्यों ? भारत के सम्विधान ने सबको, ईच्छानुसार खाने, पीने, पहनने और अपना घर बनाने की स्वतंत्रता दी है, इसमें भारत मां का क्या विरोध है?. क्या bollywood बिकिनी पहनती हैं तो यह भारत का विरोध है ? तुम भी हाफ पेंट से फुल पैंट पर आ गये ? हाफ पैंट पहले ही इटालियन था अब तुम फुल पैंट पहन कर फ्रेंच बन गये !. इसमें भारत माता का घोर विरोध नहीं है क्या ?.

मोहन भागवत बरगलाना छोड़ें, यह देश इतना मूर्ख नहीं है जितना वे समझते हैं. मोहन भागवत मेरी सलाह लें और हाफ पेंट उतार कर लाठी भाजना छोड़ दे और भारतीय संस्कृति के अनुसार चले.

उपनिषद में कहा गया है- “सर्वभूतेषु चात्मानं ततो न विजुगुप्सते.” जब सब अपनी आत्मा ही हो गये तो घृणा का कोई कारण नहीं है” यही भारत की देशना है.