श्रीऋणमोचनमहागणपति स्तोत्र एक बहुत सिद्ध स्तोत्र है. यदपि यह ब्रह्म पुराण के अंतर्गत है लेकिन इसका प्रतिदिन लाखों लोगों द्वारा अनुष्ठान किया जाता है. पूजकों ने इसके प्रभाव काअनुभव किया है. इससे ऋण की मुक्ति तुरंत होती है. कोई बहुत बड़ा ऋण हो तो छह महीने इसका विधिपूर्वक पाठ करने से यह फलदायी होता है. इस स्तोत्र के देवता ऋणमोचक महागणपति हैं. इसमें गणपति के सुंदर नाम भी हैं.
पाठ विधि-
सुबह जल्दी उठकर स्नान करके घर के मंदिर को स्वच्छ करके एक चौकी पर लाल रंग का कपडा बिछाना चाहिए. तदुपरांत गणेश जी की प्रतिमा को पुष्प पर विराजमान करें. गणेश ही का अवाहन करके उनका पंचोचार पुजन करें. दीपक घी का ही जलाएं. पूजन के बाद ऋणमोचन महागणपति स्तोत्र का पाठ आरम्भ करें. यह पाठ बुधवार को करना सबसे शुभ माना जाता है.
विनियोग-
अस्य श्रीऋणमोचनमहागणपतिस्तोत्रस्य शुक्राचार्य ऋषिः, अनुष्टुप्छन्दः, श्रीऋणमोचक महागणपतिर्देवता ।
मम ऋणमोचनमहागणपतिप्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ॥
ऋष्यादि-न्यास –
भगवान् शुक्राचार्य ऋषये नमः शिरसि, ऋण-मोचन-गणपति देवतायै नमः हृदि, मम-ऋण-मोचनार्थे जपे विनियोगाय नमः अञ्जलौ।
स्तोत्र पाठ –
रक्ताङ्गं रक्तवस्त्रं सितकुसुमगणैः पूजितं रक्तगन्धैः
क्षीराब्धौ रत्नपीठे सुरतरुविमले रत्नसिंहासनस्थम् ।
दोर्भिः पाशाङ्कुशेष्टाभयधरमतुलं चन्द्रमौलिं त्रिणेत्रं
ध्यायेत् शान्त्यर्थमीशं गणपतिममलं श्रीसमेतं प्रसन्नम् ॥
स्मरामि देव देवेशं वक्रतुण्डं महाबलम् ।
षडक्षरं कृपासिन्धुं नमामि ऋणमुक्तये ॥ १॥
एकाक्षरं ह्येकदन्तमेकं ब्रह्म सनातनम् ।
एकमेवाद्वितीयं च नमामि ऋणमुक्तये ॥ २॥
महागणपतिं देवं महासत्वं महाबलम् ।
महाविघ्नहरं शम्भोः नमामि ऋणमुक्तये ॥ ३॥
कृष्णाम्बरं कृष्णवर्णं कृष्णगन्धानुलेपनम् ।
कृष्णसर्पोपवीतं च नमामि ऋणमुक्तये ॥ ४॥
रक्ताम्बरं रक्तवर्णं रक्तगन्धानुलेपनम् ।
रक्तपुष्पप्रियं देवं नमामि ऋणमुक्तये ॥ ५॥
पीताम्बरं पीतवर्णं पीतगन्धानुलेपनम् ।
पीतपुष्पप्रियं देवं नमामि ऋणमुक्तये ॥ ६॥
धूम्राम्बरं धूम्रवर्णं धूम्रगन्धानुलेपनम् ।
होम धूमप्रियं देवं नमामि ऋणमुक्तये ॥ ७॥
भालनेत्रं भालचन्द्रं पाशाङ्कुशधरं विभुम् ।
चामरालङ्कृतं देवं नमामि ऋणमुक्तये ॥ ८॥
इदं त्वृणहरं स्तोत्रं सन्ध्यायां यः पठेन्नरः ।
षण्मासाभ्यन्तरेणैव ऋणमुक्तो भविष्यति ॥ ९॥
इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे श्रीऋणमोचनमहागणपतिस्तोत्रं सम्पूर्णम् । ऋणहरस्तोत्रम्

