
ज्योतिष की मान्यता के अनुसार सप्ताह के सातों दिन सात ग्रहों और उनके देवताओं को समर्पित हैं. रविवार का दिन सूर्य देवता या सूर्य भगवान का माना जाता है. रविवार के दिन सूर्य देवता को जल अर्पित करना और व्रत करना अति शुभ माना जाता है. सूर्य अर्घ्य देने से आयु और बल की वृद्धि होती है और धन की प्राप्ति होती है.
रविवार के दिन भगवान सूर्य की उपासना करने से व्यक्ति की हर मनोकामना पूर्ण होती हैं. लेकिन अगर यह व्रत विधि विधान से नहीं करें तो इसके दुष्परिणाम भी देखने को मिल सकते हैं.
रविवार के दिन भगवान सूर्य की पूजन की पूरी विधि (Ravivar Vrat Puja Vidhi)-
पूजन विधि
– सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर स्नान करके साफ वस्त्र धारण कर लें.
– इसके बाद मंदिर में भगवान सूर्य की मूर्ति की अथवा साक्षात् सूर्य की विधि विधान से पंचोपचार पूजा करें.
– इसके लिए भगवान को स्नान कराने के बाद सुगंध, पुष्प अर्पित करें.
– पूजा के बाद रविवार व्रत की कथा सुनें और दूसरों को भी सुनाएं.
– कथा सुनने के बाद भगवान सूर्य की धूप दीप से आरती करें.
– अब एक तांबे के कलश में जल लेकर उसमें लाल फूल और चावल डालकर सूर्य देव के मंत्र का उच्चारण करें और सूर्य देव को जल अर्पित कर भोजन ग्रहण कर सकते हैं.
सूर्य मंत्र –
ॐ घृणिं सूर्य्य: आदित्यः
ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा
ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:
ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ
ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः
ॐ सूर्याय नमः
ॐ घृणि सूर्याय नमः
रविवार व्रत कथा-
प्राचीन काल में एक बुढ़िया थी. वह नियमित रूप से रविवार का व्रत करती थी. रविवार के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर बुढ़िया स्नानादि से निवृत्त होकर, आंगन को गोबर से लीपकर, स्वच्छ करती तदोपरांत सूर्य भगवान की पूजा करती तथा कथा सुनकर सूर्य भगवान को भोग लगाकर दिन में एक समय भोजन करती. इसी तरह रविवार का व्रत करती। सूर्य भगवान की कृपा से बुढ़िया को किसी प्रकार की कोई चिन्ता व कष्ट नहीं था. उसका घर धन-धान्य से भरा हुआ था। उस बुढ़िया को सुखी देख उसकी पड़ोसन उससे बहुत जलती. बुढ़िया रोजाना पड़ोसन के आंगन में बंधी गाय का गोबर लाती और अपना घर लीपती.
शनिवार के दिन रात को पड़ोसन ने अपनी गाय को घर के भीतर बांध दिया ताकि बुढ़िया अपना घर न लीप सके। रविवार को गोबर न मिलने से बुढ़िया अपना आंगन नहीं लीप सकी. आंगन न लीप पाने के कारण उस बुढ़िया ने सूर्य भगवान को भोग भी नहीं लगाया और उस दिन स्वयं भी भोजन नहीं किया. सूर्यास्त होने पर बुढ़िया भूखी-प्यासी सो गई. रात्रि में सूर्य भगवान ने उसे स्वप्न में दर्शन दिए और व्रत न करने तथा उन्हें भोग न लगाने का कारण पूछा. बुढ़िया ने बहुत ही करुण स्वर में पड़ोसन के द्वारा घर के अन्दर गाय बांधने और गोबर न मिल पाने की बात बोली.
सूर्य भगवान ने अपनी अनन्य भक्त बुढ़िया की परेशानी का कारण जानकर उसके सब दु:ख दूर करते हुए कहा, हे माता, तुम प्रत्येक रविवार को मेरी पूजा और व्रत करती हो. मैं तुमसे अति प्रसन्न हूं और तुम्हें ऐसी गाय प्रदान करता हूं जो तुम्हारे घर-आंगन को धन-धान्य से भर देगी. तुम्हारी सभी मनोकामनाएं पूरी होगी. स्वप्न में उस बुढ़िया को ऐसा वरदान देकर सूर्य भगवान अंतरध्यान हो गए. प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उस बुढ़िया की आंख खुली तो वह अपने घर के आंगन में सुन्दर गाय और बछड़े को देखकर हैरान हो गई.
गाय को आंगन में बांधकर उसने जल्दी से उसे चारा लाकर खिलाया। पड़ोसन ने उस बुढ़िया के आंगन में बंधी सुन्दर गाय और बछड़े को देखा तो वह उससे और अधिक जलने लगी। तभी गाय ने सोने का गोबर किया। गोबर को देखते ही पड़ोसन की आंखें फट गईं। पड़ोसन ने उस बुढ़िया को आसपास न पाकर तुरन्त उस गोबर को उठाया और अपने घर ले गई तथा अपनी गाय का गोबर वहां रख आई। सोने के गोबर से पड़ोसन कुछ ही दिनों में धनवान हो गई। गाय प्रति दिन सूर्योदय से पूर्व सोने का गोबर करती और बुढ़िया के उठने के पहले ही पड़ोसन उस गोबर को उठाकर ले जाती। बहुत दिनों तक बुढ़िया को सोने के गोबर के बारे में कुछ पता ही नहीं चला। बुढ़िया पहले की तरह हर रविवार को भगवान सूर्यदेव का व्रत करती रही और कथा सुनती रही।
सूर्य भगवान को जब पडोसन की चालाकी का पता चला तो उन्होंने एक दिन तेज आंधी चलाई। आंधी का प्रकोप देखकर बुढ़िया ने अपनी गाय को घर के भीतर बाँध दिया। अब पडोसन सोने का गोबर न ले जा सकी। सुबह उठकर बुढ़िया ने सोने का गोबर देखा तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ। उस दिन के बाद बुढ़िया गाय को घर के भीतर बाँधने लगी। सोने के गोबर से कुछ ही दिनों में वह बुढ़िया बहुत धनी हो गई।
बुढ़िया के धनी होने से पडोसन और बुरी तरह जल-भुनकर राख हो गई। अबकी बार उसने अपने पति को नगर के राजा के पास भेजा और बुढ़िया के पास सोने का गोबर देने वाली गाय के बारे में बताया। राजा ने अपने सैनिक भेजकर बुढ़िया की गाय लाने का आदेश दे दिया।
सैनिक बुढ़िया के घर पहुँचे। उस समय बुढ़िया सूर्य भगवान को भोग लगाकर स्वयं भोजन ग्रहण करने वाली थी। राजा के सैनिक जबर्दस्ती गाय और बछडे को महल की ओर ले चले। बुढ़िया ने प्रार्थना की, बहुत रोई-चिल्लाई लेकिन राजा के सैनिक नहीं माने। गाय व बछडे के चले जाने से बुढ़िया को बहुत दु:ख हुआ। उस दिन उसने कुछ नहीं खाया और भूखी-प्यासी सारी रात सूर्य भगवान से गाय व बछडे को लौटाने के लिए प्रार्थना करती रही।
गाय देखकर राजा बहुत खुश हुआ। सुबह जब राजा ने सोने का गोबर देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उधर सूर्य भगवान को भूखी-प्यासी बुढ़िया को इस तरह प्रार्थना करते देख उस पर बहुत दया आई। उसी रात सूर्य भगवान ने राजा को स्वप्न में कहा- राजन्! बुढ़िया की गाय व बछडा तुरंत लौटा दो, नहीं तो तुम पर विपत्तियों का पहाड टूट पडेगा। तुम्हारे राज्य में भूकम्प आएगा। तुम्हारा महल नष्ट हो जाएगा।
सूर्य भगवान के स्वप्न से बुरी तरह भयभीत राजा ने प्रात: उठते ही गाय और बछडा बुढ़िया को लौटा दिया। राजा ने अपनी तरफ से भी बहुत-सा धन देकर बुढ़िया से अपनी गलती के लिए क्षमा माँगी। राजा ने पडोसन और उसके पति को उनकी इस दुष्टता के लिए दंड भी दिया।
इसके बाद राजा ने राज्य में घोषणा करवाई कि सभी स्त्री-पुरुष रविवार का व्रत करें। जनता ने भी ऐसा ही किया। रविवार का व्रत करने से सभी लोगों के घर धन-धान्य से भर गए। चारों ओर खुशहाली छा गई। सभी लोगों के शारीरिक कष्ट दूर हो गए। नि:संतान स्त्रियों की गोद भर गई। राज्य में सभी स्त्री-पुरुष सुखी जीवन-यापन करने लगे।
रविवार की आरती-
कहूँ लगि आरती दास करेंगे, सकल जगत जाकि जोति विराजे॥
सात समुद्र जाके चरणानि बसे, कहा भयो जल कुंभ भरे हो राम।
कोटि भानु जाके नख की शोभा, कहा भयो मंदिर दीप धरे हो राम।
भार उठारह रोमावली जाके, कहा भयो शिर पुष्प धरे हो राम।
छप्पन भोग जाके नितप्रति लागे, कहा भयो नैवैद्य धरे हो राम।
अमित कोटि जाके बाजा बाजे, कहा भयो झंकार करे हो राम।
चार वेद जाके मुख की शोभा, कहा भयो ब्रह्म वेद पढ़े हो राम।
शिव सनकादिक आदि ब्रह्मादिक, नारद मुनि जाको ध्यान धरें हो राम।
हिम मंदार जाको पवन झकोरें, कहा भयो चँवर ढुरे हो राम।
लख चौरासी बन्दे छुड़ाये, केवल हरियश नामदेव गाये। हो रामा
॥ इति रविवार की आरती समाप्तम्॥