
शैव सम्प्रदाय में त्रयोदशी सभी तिथियों में श्रेष्ठ मानी गई है. त्रयोदशी भगवान शिव के पूजा की विशेष तिथि है. ऐसा कहा गया है कि इस एक तिथि में प्रदोष काल में शिव पूजन सहस्रगुना फलदायक और मोक्ष दायक होता है. हर महीने की त्रयोदशी महत्वपूर्ण है क्योंकि हर महीने के आदित्यगण अलग अलग होते हैं. शिव ही सूर्य के अधिदेवता हैं इनकी सूर्य मंडल में ही रूद्र रूप में उपासना की जाती है. सूर्य देव को सभी ग्रहों का राजा माना जाता है. ज्योतिष में सूर्य को आत्मा, मान-सम्मान, राजा, उच्च पद, सरकारी सेवा, लीडरशिप आदि का कारक माना जाता है. माघ महीने की त्रयोदशी तिथि को पड़ने वाले प्रदोष व्रत का विशेष महत्व होता है क्योंकि यह महीना भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है. इस बार रविवार को त्रयोदशी है इस लिए इसे सूर्य प्रदोष व्रत कहा जायेगा. यह प्रदोष व्रत 19 फरवरी दिन रविवार को किया जायेगा. रवि प्रदोष व्रत को करने से रोगशांति, भौतिक उन्नति, ज्ञान और व्यापार में वृद्धि तथा धन लाभ होता है. इस प्रदोष व्रत से रवि दोष का प्रभाव कम होता है. रवि प्रदोष व्रत के साथ शिव का विधिवत पूजन आवश्यक है. प्रदोष काल में ही यह पूजन सम्पन्न करें.
प्रदोष व्रत मुहूर्त –
पंचांग के अनुसार माघ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 9 फरवरी को शाम 07:25 मिनट पर शुरू होगी. इस तिथि का समापन 10 फरवरी को शाम 06:57 मिनट पर होगा. इस प्रकार रवि प्रदोष व्रत 9 फरवरी 2025, दिन रविवार को रखा जाएगा.
भगवान शिव की कृपा पाने के लिए स्नान आदि करने के बाद सफेद, पीले, लाल या लाल रंग के वस्त्र धारण करके ही पूजा करें. भगवान शिव का गंगाजल, दूध, दही और शहद से अभिषेक करें. अक्षत, चंदन, धतूरा और बेलपत्र से भगवान शिव की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए. पूजा में भावना का महत्व है. भावना से भगवान को जो कुछ भी अर्पित किया जाता है वह भगवान को प्राप्त होता है.