अयोध्या में 22 जनवरी को होने वाला प्राणप्रतिष्ठा कार्यक्रम पूर्ण रूप से अधर्म है तथा अशास्त्र सम्मत है. यह बिल्डिंग मन्दिर नहीं है क्योंकि इसमें मन्दिर के प्रमुख अंग ही नहीं हैं. मन्दिर के दो तीन अंग ही बने हुए हैं. सामने प्रकट हो रहे अनेक सिम्पटम द्वारा कहा जा सकता है कि यह अधूरी बिल्डिंग राहु-केतु द्वारा अधिग्रहित हो चूकी है. मन्दिर में देवता के निवास न करने से पूजा-पाठ का फल असुरों को प्राप्त हो जाएगा जिससे असुरों का बल बढ़ सकता है. यह जनता के लिए बहुत विनाशकारी हो सकता है. इस कारण जनता पीड़ित हो सकती है, उनका अशुभ हो सकता है, सुख-शांति खत्म हो सकती है. ऐसा लगता है राहु-काल में भूमि पूजन कर नरेंद्र मोदी ने आसुरी शक्तियों को मन्दिर में स्थापित कर दिया है जिस कारण देश की जनता का सिर्फ अहित ही हो रहा है, जनता की सुख-शांति चली गई है. देश की अर्थव्यस्था इस कदर कर्ज में डूब चुकी है कि विदेशी कर्ज GDP से अधिक हो गया है.
सभी शास्त्र स्पष्ट कहते हैं कि शिखरहीन और ध्वजहीन मन्दिर में असुर, पिसाच आदि निवास करने लगते हैं. इस बात का प्रमाण सभी प्रमुख हिन्दू मन्दिर शिल्प और धर्म शास्त्र दे रहे हैं. इन ग्रंथो में भगवद्गीता, प्रतिष्ठित विष्णु धर्मोत्तर पुराण, अग्नि पुराण, प्रतिष्ठा मयूख, विश्वकर्मा जी द्वारा विरचित क्षीरार्णव, प्रयोग मंजरी इत्यादि हैं.
खुद ही शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी के के मुख से सुनें –

