रामकृष्ण परमहंस के बड़े भाई रामकुमार एक सिद्ध ज्योतिषी भी थे। उनकी ज्योतिष सिद्धि के बारे में वर्णन करते हुए सारदानन्द लिखते हैं -” ऐसा सुना जाता है कि रामकुमार को दैवीशक्ति प्राप्त थी। शास्त्र अध्ययन के फलस्वरूप इससे पूर्व ही उनमे आद्याशक्ति की उपासना के प्रति विशेष श्रद्धा उत्पन्न हुई थी।अभीष्ट देवी का नित्यपूजन करते समय एकदिन उन्हें दिव्य दर्शन मिला और ऐसा अनुभव होने लगा कि मानो देवी अपनी अँगुलियों द्वारा उनकी जीभ पर ज्योतिषशास्त्र में सिद्धि लाभ करने के निमित्त कोई मन्त्र लिख रहीं हैं। तब से रोगियों को देखते ही रोग ठीक होगा या नहीं यह समझ जाते थे, उस क्षमता के प्रभाव से जिस रोगी के सम्बन्ध में जो कुछ कहते थे, वही होता था।”
एकबार कार्यवश रामकुमार कलकत्ता जाकर गंगा स्नान कर रहे थे। कोई धनी व्यक्ति उस समय सपरिवार गंगास्नान करने आये एवं उनकी धर्मपत्नी के नहाने के लिए पालकी गंगाजल में उतारी गई। उसमे बैठकर ही युवती स्नान करने लगी। रामकुमार ने ऐसा स्नान पूर्व में कभी नहीं देखा था अत: वे उस और देखने लगे। उनकी दृष्टि क्षणमात्र के लिए पालकी में अवस्थित उस युवती पर जा पड़ी। पूर्ववत दैवी प्रभाव से उसकी मृत्यु की बात उन्हें विदित हो गई, वे बोल पड़े ” हाय ! आज जिसे इतने समारोह के साथ नहलाया जा रहा है, कल उसे सबके सम्मुख गंगा जी में प्रवाहित करना पड़ेगा।” उस धनी व्यक्ति ने इस बात को सुन लिया। उनकी बात की सत्यता की परीक्षा कर असत्य साबित कर रामकुमार को अपमानित करने के इरादे से उसने आग्रह पूर्वक उन्हें घर आमंत्रित किया। युवती के पूर्ण स्वस्थ होने के कारण इस प्रकार की घटना की कोई सम्भावना नहीं थी लेकिन अंत में वही हुआ और धनिक ने उन्हें सम्मान पूर्व दक्षिणा आदि देकर विदा किया।
रामकुमार की दैवी सिद्धि और ज्योतिष की भविष्यवाणी के बारे में एक अन्य घटना का भी उल्लेख इस प्रकार है -शादी के बाद जब रामकुमार की पत्नी घर आई तो शुभ हुआ और घर की उन्नति हुई थी। लेकिन एक दिन अपनी धर्मपत्नी के भाग्य को देख कर उन्होंने भविष्यवाणी करते हुए कहा-“यदपि कि यह सुलक्षणा है, किन्तु गर्भसंचार होते ही इसकी मृत्यु अनिवार्य है.”
रामकुमार की पत्नी को दीर्घ काल तक गर्भ नहीं हुआ। किन्तु पैतीस वर्ष की आयु में जब पहली बार गर्भसंचार हुआ तब छत्तीसवर्ष की आयु में एक पुत्र को जन्म देने के बाद वो दिवंगत हो गई थी। रामकृष्ण परमहंस ने ज्योतिष विद्या के बारे में कहा था कि यह उसे ही हस्तगत होता है जो साधक है। उन्हें अपने जन्म नक्षत्र और तिथि का ज्ञान भली भांति था। रामकृष्ण ने एक दिन इस प्रकार का रामप्रसाद का गीत गाया –
एबार काली तोमाय खाबो (खाबो खाबो गो दीं दयामयी)
खाबो खाबो बोलि गो मा उदरस्थ ना करिबो।
एइ हृदयपद्मे बीसाइया, मनोमानसे पूजिबो।
(तारा गंडयोगे जन्म आमार)
गंडयोगे जनमिले से होय मा-खेको छेले ।
ए बार तुमि खाओ कि अमि खाई मा, दूटार एकटा कोरो जाबो!
-हे काली, अबकी बार तुम्हे खा लूँगा। ओ दीन दयामयी, तुम्हे जरुर खाऊंगा। ‘खाऊंगा-खाऊंगा’ तो कहता हूँ किन्तु उदरस्थ नहीं करूंगा। इस हृदयकमल में बिठा लूँगा और मन द्वारा मानसपूजा करूंगा। मेरा जन्म गंडयोग नक्षत्र में हुआ है)। गंडयोग नक्षत्र में जन्म लेने वाला बालक मां को खाने वाला होता है। इस बार तुम मुझे खाओगी मां या मैं तुम्हे खाऊंगा, दो में से एक तो कर ही जाऊँगा।

