कार्तिक मास में पड़ने वाली पहली एकादशी है रमा एकादशी. रमा लक्ष्मी जी का एक नाम है, इसे रम्भा एकादशी भी कहते हैं. कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रमा एकादशी कहा जाता है. इस दिन श्री हरि विष्णु की पूजा करने और व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं प्राप्त होती हैं. यह कार्तिक एकादशी विष्णु को बहुत प्रिय है. सभी एकादशियों में रमा एकादशी को सबसे शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है. यह एकादशी दिवाली के चार दिन पहले आती है. रमा एकादशी व्रत को सबसे महत्वपूर्ण एकादशी में से एक माना जाता है. इसके करने से न केवल पापों का नाश होता है बल्कि लक्ष्मी की भी कृपा होती है.
मुहूर्त-
कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की रमा एकादशी तिथि की शुरुआत 8 नवंबर 2023 को सुबह 08 बजकर 23 मिनट से हो रही है. अगले दिन 9 नवंबर 2023 को सुबह 10 बजकर 41 मिनट पर इसका समापन होगा. उदया तिथि के अनुसार 9 नवंबर को रमा एकादशी का व्रत रखा जाएगा. व्रत का पारण 10 नवंबर को सुबह 6 बजकर 39 मिनट से लेकर 8 बजकर 50 मिनट के बीच करना शुभ
व्रत कथा –
युधिष्ठर ने पूछा – स्वामी ! कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम हैं ? उसकी क्या विधि हैं तथा इस दिन किसकी पूजा की जाती हैं ? तथा उससे किस फल की प्राप्ति होती हैं ? यह बतलाइए.
भगवान वासुदेव ने कहा – हे राजन ! कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी के नाम से जाना जाता है इस व्रत में भगवान जनार्दन का पूजन किया जाता है .अब मैं इस एकादशी का महात्म्य सुनाता हूँ ध्यान पूर्वक सुनो.
राजन इस व्रत को विधि पूर्वक करना चाहिए, यह सब पापों को हरने वाली उत्तम तिथि है. समस्त संसार के अधिष्ठाता भगवान नारायण इस तिथि के देवता हैं. सम्पूर्ण संसार में इसके समान कोई तिथि नहीं है और व्रत नहीं है. हे राजन ! इसकी सुंदर कथा जो पुराणों में कही गई है उसे सुनिये.
प्राचीनकाल में मुचुकुन्द नाम का राजा था. वे भगवान विष्णु के परम् भक्त थे. सत्यवादी और धर्मपालक थे. उनका निष्कंटक राज्य हो गया. उनके एक पुत्री हुई जिसका नाम चन्द्रभागा था. राजा ने चन्द्रसेन के पुत्र शोभन के साथ उसका विवाह कर दिया .
हे नृप ! एक समय शोभन अपने ससुराल आये. उसी दिन पवित्र एकादशी व्रत आया. व्रत के दिन चन्द्रभागा विचार करने लगी कि हे इश्वर! अब क्या होगा क्यों की उनके यहाँ दशमी के दिन ढिढोरा पिटवा दिया जाता है की कल एकादशी है कोई भोजन नहीं करेगा. डंके की आवाज सुन शोभन ने अपनी पत्नी से पूछा – अब मुझे क्या करना चाहिए? चन्द्रभागा बोली – हे विभो ! मेरे पिता के घर पर एकादशी के दिन कोई भी भोजन नही कर सकता. हाथी घोड़े अन्य पशु पक्षी भी अन्न जल घास का सेवन नहीं करते है. आप मनुष्य होकर एकादशी के दिन कैसे भोजन कर सकते हैं. हे प्राणनाथ ! यदि आप भोजन करेंगे तो आपकी बड़ी निंदा होगी. हे प्रभो ! यदि आप भोजन करना चाहे तो घर से चले जाइये या मन में दृढ निश्चय कर लीजिये. शोभन बोला ! तुमने सत्य कहा है. मैं व्रत करूंगा जैसी प्रभु कृपा होगी वैसा ही होगा. ऐसा विचार कर शोभन ने यह व्रत किया. भूख प्यास से शरीर पीड़ित होने लगा वह बहुत दुखी हुआ भूख से व्याकुल होते सूर्यास्त हो गया. रात्रि जागरण हर्ष को बढ़ाने वाली थी परन्तु शोभन के लिए वह रात्रि अत्यधिक कष्टदायक थी. सूर्योदय होते ही शोभन की मृत्यु हो गई. राजा मुचुकुंद ने सम्मान के साथ चन्दन की लकड़ी से दाह – संस्कार करवाया . चन्द्रभागा अपने पिता के घर पर निवास करने लगी. हे नृप श्रेष्ठ ! रमा एकादशी के पूण्य के कारण शोभन को मन्दराचल के शिखर पर बसे अत्यत रमणीक देवपुर प्राप्त हुआ. वहा शोभन कुबेर के समान शोभा पाने लगे.
राजा मुचुकुन्द के नगर से सोमशर्मा नामक एक ब्राह्मण रहते थे , वे घूमते हुए मन्दराचल पर्वत पर गये. वहां उन्हें शोभन दिखाई दिए. राजा का दामाद जानकर वे उनके समीप गये. शोभन ने ब्राह्मण को पहचान कर शीघ्र हो आसन से उतर कर उनका सम्मान किया. उसके पश्चात शोभन ने अपने श्वसुर , पत्नी चन्द्रभागा तथा समस्त नगरवासियों की कुशलता पूछी.
सोमशर्मा ने कहा – राजन वहा सब कुशल है. यह तो अद्भुत नगर है. किस पुण्य कर्म के प्रभाव से आपको इस लोक में स्थान प्राप्त हुआ?
शोभन बोले – दिवजेन्द्र ! कार्तिक कृष्ण पक्ष की रमा नामक एकादशी का व्रत होता है, उसी के पुण्य प्रभाव के कारण मुझे इस लोक की प्राप्ति हुई. हे ब्राह्मण देवता ! मैंने श्रद्धाहीन होकर इस उत्तम व्रत को किया था. इसलिए मैं ऐसा मानता हूँ कि यह नगर सदा स्थिर रहने वाला नहीं है. आप मेरी पत्नी चन्द्रभागा से कहिये.
शोभन की बात सुन सोमशर्मा ब्राह्मण गये और उन्होंने सारी बात चन्द्रभागा को बतलाई. ब्राह्मण का वृत्तांत सुन चन्द्रभागा बोली- हे ब्राह्मण देवता ये सारा वृत्तांत स्वप्न है अथवा वास्तविक!
हे पुत्री ! मैंने तुम्हारे पति शोभन को अपनी आँखों से देखा है और स्वर्ग की तरह का सुशोभित लोक भी देखा है. उसने उसको अस्थाई बतलाया है, उसके अटल होने का उपाय करो.
चन्द्रभागा बोली – मुझे वहां ले चलिए मैं पति दर्शन को व्याकुल हो रही हूँ. मैं अपने एकादशी व्रत के पुण्य प्रभाव के कारण उस लोक को स्थाई बना दूंगी.
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं – राजन ! चन्द्रभागा की बात सुन ब्राह्मण देवता उसे साथ ले वामदेव के आश्रम पर गये. वहां ऋषि की मन्त्रशक्ति और एकादशी व्रत के पुण्य के सेवन से चन्द्रभागा का शरीर दिव्य हो गया . उसने दिव्य गति प्राप्त को प्राप्त हुई. प्रसन्नता से प्रफुलित वह पति के समीप पहुंची. शोभन पत्नी को देखकर अत्यधिक प्रसन्न हुआ और अपने वाम भाग में स्थान दिया. चन्द्रभागा प्रसन्नचित मुद्रा में अपने पति से बोली – हे स्वामी ! जो कुछ पुण्य मेरे पास हैं उसे सुनिए. जब 8 वर्ष की थी तभी से मैंने एकादशी व्रत विधिवत किये हैं. उस पुण्य के प्रभाव से तुम्हारा यह नगर कल्प के अंत तक स्थिर रहेगा तथा सभी प्रकार के वैभव स्थिर होंगे. हे नृप श्रेष्ठ ! ‘ रमा एकादशी ‘ के पूण्य प्रभाव से चन्द्रभागा अपने पति के साथ उस लोक में दिव्य रूप होकर सुख भोगने लगी.

