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हिन्दू धर्म में कुछ भी मन्त्र नहीं होता है. मन्त्र का एक निश्चित चरित्र है और उसका निश्चित स्वरूप होता है. नाम मन्त्र नहीं होता है. यदि नाम को मन्त्र माना जायेगा तो सभी नाम मन्त्र होंगे और उन नामों से मनुष्य को मुक्ति प्राप्त हो जायेगी. राम नाम मन्त्र नहीं और यह व्यक्ति की रक्षा नहीं कर सकता. यह भगवान का नाम भी नहीं है इसलिए यह किसी की रक्षा नहीं कर सकता. इस वक्तव्य में श्रुति ही प्रमाण है. रामायणी श्रुति को मानते ही नहीं ..श्रुतियां चिल्ला चिल्ला कर कह रही हैं ” ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्” लेकिन ये उसे नहीं मानते. यह प्रपंच करते हैं इसलिए ये पीड़ित रहते हैं और रक्षा के लिए या पीड़ा निवारण के लिए ग्रहों के रत्न पहनते हैं. जब तक मन्त्र में सेतु नहीं लगता मन्त्र में प्रभाव नहीं होता. जो सही मन्त्र हैं वे ग्रह प्रभाव या किसी प्रकार के बुरे प्रभाव से बचा देता है, ऐसा शास्त्र में लिखा है. शास्त्रों के अनुसार मन्त्रों में व्यक्ति को निरोग रखने की शक्ति है. गायत्री मन्त्र से व्यक्ति सैकड़ो वर्ष की उम्र पाता है और सभी रोगों से मुक्ति भी मिलती है. महामृत्युंजय मन्त्र से मनुष्य के प्राण तक बच जाते हैं.

राम नाम मन्त्र नहीं है इसका सबसे बड़े उदाहरण स्वयं कवि तुलसी दास हैं. तुलसी दास ने विधिवत राम मन्त्र गुरु से प्राप्त करके राम नाम आजीवन जपा था लेकिन तुलसीदास को न तो गरीबी से मुक्ति मिली थी और न ही कष्टों तथा रोगों से छुटकारा मिला था. ऐसे में मुक्ति की बात तो बहुत दूर की है. रामभद्राचार्य इस सन्दर्भ में दूसरा उदाहरण है. रामभद्राचार्य के बायो में लिखा है कि इसने चित्रकूट में 6 महीनों तक दुग्ध और फलों का आहार लेते हुए अपना प्रथम षाण्मासिक पयोव्रत अनुष्ठान सम्पन्न किया था और राम नाम का जप किया था. ऐसा 6 महीने का व्रत और राम नाम जप उसने आगे भी एक दो बार किया था लेकिन फिर भी वह अनेक प्रकार के भय, कष्ट,रोग और ग्रह के प्रकोप से पीड़ित है. जो साधक मन्त्रों का न्यास कर लेता है वह वज्र देह बन जाता है, उसके सामने आने पर यम भी भस्म हो जाता है. मन्त्रो के न्यास से मनुष्य किसी भी प्रकार के वाह्य प्रकोप से बच सकता है.

रामभद्राचार्य ने अनेक व्रत किये, हर महीने एकादशी किये और राम नाम जपा लेकिन फिर भी उसे ग्रहों के रत्न पहनने पड़ रहे हैं. एकदशी का क्या फायदा? स्पष्ट है राम भगवान नहीं है और राम नाम मन्त्र नहीं है. यदि राम मन्त्र होता तो वह जपने वाले को भयमुक्त करता और उसे ग्रह प्रकोप से भी बचाता.

मन्त्र शास्त्र के अनुसार हर नाम की अपनी गति है. हरएक नाम शब्द ब्रह्म की निम्नतर अभिव्यक्ति है. उस शब्द ब्रह्म की वेद भी अभिव्यक्ति है जो त्रिगुणात्मक है और कर्ममय है. श्रुति कहती है मन्त्र कर्ममय होने से पापविद्ध हो जाते हैं. यह कारण है कि भगवदगीता इत्यादि स्मृतियों में श्रुति सम्मत ईश्वर के नाम का जप का विधान किया गया है.
ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्।
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम्।।8.13।।
राम शब्द का जप करते हुए नहीं बल्कि एक अक्षर प्रणव का स्मरण करते हुए देह त्याग का आदेश दिया गया